हे लोकतंत्र! तू अब थाने में कैद है दरभंगा डीएमसीएच की सड़ी हुई सेहत, कुढ़नी की दलित बच्ची की लाश, और स्वास्थ्य मंत्री के मौन पर युवाओं की चीख को पुलिस ने पांच घंटे तक घोंटा, फिर पीआर बाउंड की बेड़ियों में बांध दिया, पढ़ें इस रिपोर्ट को जो न किसी मंत्री की चाटुकार है, न किसी दल की दलाल सिर्फ़ उस जनता की आवाज़ है जिसे अस्पताल से ज़्यादा अब रिपोर्ट पढ़ने की ज़रूरत है!
जब सत्ता के गलियारों में मंत्रियों के काफिले सरपट दौड़ते हैं, तब लोकतंत्र अक्सर किनारे बैठा पसीने में लथपथ इंतज़ार करता है इस आशा में कि कोई उसकी भी सुध लेगा। दरभंगा डीएमसीएच की धूल फाँकती दीवारों और इमरजेंसी वार्ड की बदबूदार परछाइयों के बीच, आज एक बार फिर वही लोकतंत्र घायल हुआ जब कुछ जागरूक युवाओं ने अपने सवालों की गठरी लेकर स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे के सामने खड़ा होने की कोशिश की. पढ़े पुरी खबर.......

दरभंगा, दिनांक: 25 जून 2025: जब सत्ता के गलियारों में मंत्रियों के काफिले सरपट दौड़ते हैं, तब लोकतंत्र अक्सर किनारे बैठा पसीने में लथपथ इंतज़ार करता है इस आशा में कि कोई उसकी भी सुध लेगा। दरभंगा डीएमसीएच की धूल फाँकती दीवारों और इमरजेंसी वार्ड की बदबूदार परछाइयों के बीच, आज एक बार फिर वही लोकतंत्र घायल हुआ जब कुछ जागरूक युवाओं ने अपने सवालों की गठरी लेकर स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे के सामने खड़ा होने की कोशिश की। लेकिन जवाब देने की जगह उन्हें मिला पाँच घंटे का हिरासत, पुलिस थाने की दीवारें, और एक पीआर बाउंड की बेबसी। इस रिपोर्ट में हम किसी एक पक्ष या व्यक्ति की वकालत नहीं कर रहे, बल्कि एक व्यवस्था की उस परछाई पर रोशनी डाल रहे हैं जो खुद बीमार है और अब सवालों से डरने लगी है।
बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था: आईसीयू में एक राज्य का भविष्य: बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था दशकों से संकट में रही है। कभी डॉक्टरों की कमी, कभी दवाओं की अनुपलब्धता, तो कभी भ्रष्टाचार की पोल। दरभंगा के डीएमसीएच (Darbhanga Medical College & Hospital) की हालत तो ऐसी है कि मरीज खुद से जल्दी इलाज की उम्मीद छोड़ देता है। इस पृष्ठभूमि में जब 25 जून 2025 को बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे दरभंगा आए, तो आम जनता को यह लगा कि शायद अब उनके दुख-दर्द को कोई सुनेगा। लेकिन इस आशा के साथ आए कुछ सामाजिक कार्यकर्ता और छात्र-युवाओं के हाथ में फूल नहीं, सवाल थे। यही सवाल इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को खटक गए।
कौन थे ये युवा, और क्या थी उनकी मांगें?
इन युवाओं में प्रमुख रूप से समाजसेवी प्रियंका झा, छात्र नेता दीपक झा, और युवा संघर्षशील मृत्युंजय चौधरी शामिल थे। इनके साथ कई अन्य स्थानीय युवक-युवतियाँ भी थे जिनका उद्देश्य था:
1. दरभंगा डीएमसीएच की बदहाली की ओर मंत्री का ध्यान आकर्षित करना।
2. मुजफ्फरपुर के कुढ़नी क्षेत्र में एक दलित बच्ची की मौत, जो पटना पीएमसीएच की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण हुई, उस पर जवाबदेही तय करना।
3. राज्य में आमजन को हो रही स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों पर संज्ञान लेना।
कोई झंडा नहीं था, कोई मंच नहीं, कोई राजनीतिक आकांक्षा नहीं बस कुछ चिट्ठियाँ, कुछ आँकड़े, और कुछ आँसू जो सवालों में बदल गए थे।
स्वागत नहीं, गिरफ्तारी मिली: जब ये युवा डीएमसीएच परिसर में मंत्री के आने की सूचना पर पहुंचे, तो वे सुरक्षा घेरे से पहले ही रोक दिए गए। कुछ ने विनम्रता से बात करने की कोशिश की, लेकिन दरभंगा पुलिस ने बिना कोई स्पष्ट कारण बताए इन्हें हिरासत में ले लिया। बेता थाना, जो शहर से कुछ दूरी पर स्थित है, इन सभी को वहीं ले जाया गया।
पाँच घंटे का मौन, बिना केस, बिना वकील: बेता थाना में इन युवाओं को बिना कोई FIR या आरोप पत्र के बैठाया गया। न तो कोई पूछताछ की गई, न किसी वकील से संपर्क की अनुमति दी गई। मोबाइल फोन भी जब्त कर लिए गए। अंदरूनी सूत्रों ने बताया कि थाने को उच्च स्तर से मौखिक आदेश मिला था कि इन युवाओं को कार्यक्रम समाप्त होने तक ‘नज़रबंद’ रखा जाए। यह हिरासत लोकतंत्र पर एक प्रश्नचिह्न है। जब कोई अपराध नहीं हुआ, कोई कानून नहीं टूटा, तब क्या सिर्फ सवाल पूछना ही गुनाह बन गया?
छोड़ने की शर्त: चुप्पी की कीमत पर पीआर बाउंड: करीब पाँच घंटे बाद शाम होते-होते इन सभी को Personal Recognizance Bond (PR Bond) पर छोड़ा गया। इसका अर्थ यह होता है कि व्यक्ति यह शपथ देता है कि वह भविष्य में कोई ‘ऐसी गतिविधि’ नहीं करेगा। सवाल यह उठता है कि क्या लोकतंत्र में स्वास्थ्य सेवा पर सवाल उठाना अब ‘आपत्तिजनक गतिविधि’ मानी जाती है?
दीपक झा ने बाहर आते ही कहा:
"यह गिरफ्तारी नहीं, लोकतंत्र का गला घोंटना है। मंत्री जी से सवाल पूछने की कीमत अब थाने की दीवारों में कैद होकर चुकानी पड़ती है। लेकिन हम डरने वाले नहीं हैं। हमारी लड़ाई बिहार की जनता के लिए है।"
प्रियंका झा ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा:
"अगर मंत्री मंगल पांडे में ज़रा भी नैतिकता है तो वे कुढ़नी की बच्ची की मौत की ज़िम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दें। वरना यह लड़ाई गांव-गांव तक पहुंचेगी।"
मौन मंत्री, मूक सरकार: मंत्री मंगल पांडे का दौरा तो सम्पन्न हो गया, लेकिन उन्होंने न तो मीडिया से इस गिरफ्तारी पर बात की, न ही किसी तरह की सफाई दी। सवाल यह है कि एक मंत्री जो स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी उठाते हैं, क्या वे आलोचना और सवालों से इतने डरते हैं कि आम छात्रों से मिलने में असमर्थ हैं?
ADVERTISEMENT
इस घटना का सबसे बड़ा असर उन युवाओं पर हुआ जो देश के लोकतंत्र में भरोसा रखते हैं। उन्हें यह संदेश गया कि अब सच्चाई बोलने की कीमत चुकानी पड़ती है कभी जेल में, कभी थाने में, और कभी पीआर बाउंड की मुहर पर। यह घटना दरभंगा तक सीमित नहीं है। यह सवाल पटना, मुजफ्फरपुर, गया, भागलपुर तक गूंजेगा। यह पीढ़ी जानती है कि व्यवस्था को बदलने के लिए संघर्ष करना पड़ता है, और यह संघर्ष अब शुरू हो चुका है।
ADVERTISEMENT
इन युवाओं ने स्पष्ट कर दिया है कि वे इस घटना के खिलाफ शांतिपूर्ण लेकिन व्यापक जन आंदोलन चलाएंगे। सोशल मीडिया पर #JusticeForKudhniGirl और #SaveBiharHealth ट्रेंड करने लगे हैं। सवालों को दबाने की कोशिशों ने अब उन्हें और धार दे दी है। वे सिर्फ मंत्री के इस्तीफे की मांग नहीं कर रहे, बल्कि एक जन-जांच आयोग की भी मांग कर रहे हैं जो बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की वास्तविकता को उजागर करे।
ADVERTISEMENT
थाने की दीवारों से टकराती आवाजें: जब एक बच्ची इलाज के बिना मरती है, जब मां अस्पताल की फर्श पर दम तोड़ती है, जब डॉक्टर वार्ड में अनुपस्थित होते हैं तब सरकार की आंखें मूँद जाती हैं। लेकिन जब कोई इन पर सवाल उठाता है, तब पुलिस जाग जाती है, थाने के गेट बंद हो जाते हैं, और लोकतंत्र की आत्मा काँप उठती है।इस पूरे घटनाक्रम ने दरभंगा की सड़कों पर एक गूंज छोड़ दी है। यह गूंज किसी एक दिन की नहीं है, यह एक संघर्ष की शुरुआत है। जिस दिन जनता का सवाल सत्ता से ज़्यादा ताक़तवर बन जाएगा, उसी दिन लोकतंत्र स्वस्थ होगा। तब तक, ये सवाल पूछे जाते रहेंगे...
ADVERTISEMENT
(इस रिपोर्ट में प्रयुक्त नाम, स्थान, बयान और तथ्य संवाददाता द्वारा स्वतंत्र रूप से संकलित एवं सत्यापित किए गए हैं। किसी भी प्रकार की राजनीतिक अभिप्रेरणा से यह लेख मुक्त है।)