"राहुल को रात 11:30 बजे बुलाया गया, आम के बग़ीचे में घना अंधेरा था… मां अब तक रो रही है, प्रशासन अब तक सो रहा है सवाल ये है कि बेटा गया था मिलने, या भेजा गया था मरने?"

ये तस्वीर एक माँ की है, जिसके चेहरे पर हज़ारों प्रश्न हैं, और उत्तर… कोई नहीं। उसके कांपते हाथों में एक मोबाइल है। उस मोबाइल की स्क्रीन पर एक तस्वीर – एक युवा, गहरे नीले रंग की टोपी और काले कपड़ों में बैठा, कहीं किसी छांव के नीचे, जीवन से भरपूर, आंखों में सपनों का समंदर लिए। यही है राहुल कुमार – वही युवक जो अब चार दिनों से गायब है। और अब उसकी मां रजनी देवी सिर्फ एक मांग कर रही है. पढ़े पुरी खबर.......

"राहुल को रात 11:30 बजे बुलाया गया, आम के बग़ीचे में घना अंधेरा था… मां अब तक रो रही है, प्रशासन अब तक सो रहा है सवाल ये है कि बेटा गया था मिलने, या भेजा गया था मरने?"
राहुल को रात 11:30 बजे बुलाया गया, आम के बग़ीचे में घना अंधेरा था… मां अब तक रो रही है, प्रशासन अब तक सो रहा है सवाल ये है कि बेटा गया था मिलने, या भेजा गया था मरने?

दरभंगा (बिहार)। ये तस्वीर एक माँ की है, जिसके चेहरे पर हज़ारों प्रश्न हैं, और उत्तर… कोई नहीं। उसके कांपते हाथों में एक मोबाइल है। उस मोबाइल की स्क्रीन पर एक तस्वीर – एक युवा, गहरे नीले रंग की टोपी और काले कपड़ों में बैठा, कहीं किसी छांव के नीचे, जीवन से भरपूर, आंखों में सपनों का समंदर लिए। यही है राहुल कुमार – वही युवक जो अब चार दिनों से गायब है। और अब उसकी मां रजनी देवी सिर्फ एक मांग कर रही है 

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"अगर मेरा बेटा मर गया है, तो उसकी लाश लौटा दो… ताकि उसकी मिट्टी को आखिरी बार अपनी गोद में ले सकूं।" यह सिर्फ एक लापता युवक की कहानी नहीं है, यह उस मां की टूटती उम्मीदों, उस बिखरते परिवार, और उस सोते हुए सिस्टम की कठोर सच्चाई है जो अब तक सिर्फ जांच जारी है के सांचे में जड़ हो चुका है।

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रात की एक कॉल, और फिर रहस्यमयी गायब: 9 मई की रात थी। दीवार घड़ी शायद 11:30 बजे बजा रही थी, जब गिरधरपुर वार्ड-1 की दो लड़कियों एक 17 वर्षीय नाबालिग और 18 वर्षीया गोला कुमारी ने राहुल को फोन कर महार पोखर पुल के पास बुलाया। राहुल अपने दोस्त कौशल कुमार के साथ बाइक पर वहां गया। और फिर… फिर कौशल अकेले लौटा। राहुल नहीं लौटा। चार दिन बीत चुके हैं। ना राहुल लौटा, ना उसका शव मिला। ना कोई फोन आया, ना कोई संदेश।

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कहानी में पेंच, बगीचे में साजिश और ‘नंदू सहनी’ की परछाईं: कौशल की मानें तो वह राहुल के साथ पहुंचा था। वहां एक लड़की आई। राहुल उसके साथ आम के बग़ीचे की तरफ चला गया। खुद कौशल बाइक के पास खड़ा था। तभी वहां एक युवक आया नंदू सहनी। उसे देखकर लड़की भाग गई। कौशल भी डरकर भागा।

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जब दोस्तों के साथ वापस लौटा, तो वहां कुछ नहीं था। ना राहुल, ना लड़की। बस बाइक अकेली खड़ी थी, जैसे कोई मूक गवाह। बाद में जब पुलिस ने लड़की से पूछताछ की, तो उसने कहा "नंदू सहनी राहुल को उठा कर ले गया। मैं तो डर कर वहां से भाग गई थी!" लेकिन असल सवाल ये है अगर लड़की वहां मौजूद थी, तो वह भागी क्यों? उसने किसी को बताया क्यों नहीं? और यदि नंदू उसे जबरन ले गया, तो बाकी सब खामोश क्यों?

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मां की चीख और भाई की उम्मीद: रजनी देवी की आंखें अब रो-रोकर पथरा गई हैं। हर आती-जाती साइकिल की आवाज़ पर वह दरवाज़े की ओर देखती हैं। लेकिन दरवाज़े पर अब सिर्फ सन्नाटा है। राहुल के भाई संजीत का कहना है "राहुल सूरत में हीरा तराशता था। मेहनती लड़का था। एक हफ्ता पहले ही आया था। कौन जानता था कि ये वापसी आख़िरी होगी?" उसने आरोप लगाया कि लड़की के भाई ने पंचायत में कहा था "हम उसकी लाश का चेहरा भी पहचानने नहीं देंगे। तेज़ाब से जला देंगे!"

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सोचिए, एक माँ के कानों में यह वाक्य कैसा तीर बनकर घुसा होगा! सवाल कई हैं, जवाब कोई नहीं वो दोनों लड़कियां राहुल को क्यों बुला रही थीं? आम के बग़ीचे में क्या हुआ? नंदू सहनी कौन है और अभी तक गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई? धमकी देने वाले लड़की के भाई पर अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं? राहुल के कॉल डिटेल्स, लोकेशन, घटनास्थल की गहन छानबीन कब होगी?

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थाना, एफआईआर और पुलिस की औपचारिकता: अशोक पेपर मिल थाने में कांड संख्या 63/25 के तहत एफआईआर दर्ज हुई है। थानाध्यक्ष संजीत कुमार कहते हैं "पुलिस जांच कर रही है।" पर जांच की चाल इतनी सुस्त है कि जैसे प्रशासन को इस लापता युवक से कोई सरोकार नहीं।

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दरभंगा जागो, ये सिर्फ राहुल की कहानी नहीं है: राहुल आज है, कल कोई और होगा। आम के बग़ीचे में हरियाली नहीं, रहस्य है। लड़की की मुस्कान में अब लोग साजिश देख रहे हैं। और मां की गोद सूनी हो गई। रजनी देवी की आंखों से निकलती हर आंसू की बूंद सवाल बनकर गिरती है ज़मीन पर "क्या मेरा बेटा सिर्फ एक खबर बनकर रह जाएगा?" "क्या उन लड़कियों से कोई सच्चाई नहीं निकलवाएगा?" "क्या न्याय सिर्फ नेताओं के भाषणों में मिलेगा?"

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यह मामला न सिर्फ एक संभावित अपहरण या हत्या की ओर इशारा करता है, बल्कि यह उस विकराल सामाजिक संकट की ओर भी इंगित करता है, जिसमें दोस्ती, मोहब्बत, लालच और प्रतिशोध सब एक साथ गड्डमड्ड हो जाते हैं। कौशल, नंदू, दो लड़कियां, दिलखुश... इन सबके नाम अब जांच के दायरे में हैं। लेकिन सवाल यह है – क्या पुलिस इन सभी कड़ियों को जोड़ने में सक्षम होगी? या फिर यह मामला भी दरभंगा की फाइलों में "लापता" शब्द की मोटी लाल स्याही में दफन हो जाएगा?

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यदि राहुल जिंदा है, तो उसे ढूंढना पुलिस की प्राथमिकता होनी चाहिए। यदि वह इस दुनिया में नहीं रहा, तो उसकी मां को उसकी लाश तो मिलनी ही चाहिए। उस माँ की गोद जो अब सिर्फ एक तस्वीर को सीने से लगाकर रोती है। उस भाई की आंखें जो अब हर रात मोबाइल के स्क्रीन को देखते हुए जागता है। अगर आपको राहुल के बारे में कोई भी जानकारी हो, तो कृपया तुरंत अशोक पेपर मिल थाना, दरभंगा से संपर्क करें।