शहीद को श्रद्धांजलि और डीएम की खोज: जब दरभंगा के मंच पर नीतीश कुमार ने मंच संचालन, मज़ाक और मर्यादा का कॉकटेल परोसा, और उपमुख्यमंत्री को मुस्कुराहट के साथ उठाकर जनता को राजनीति का रंगमंच दिखाया पढ़ें इस खास रिपोर्ट में वह हर क्षण जब प्रशासनिक अनुशासन बना आम जन की हँसी का कारण!

दरभंगा का ऐतिहासिक नेहरू स्टेडियम। मौका था, शहीद सूरज नारायण सिंह की पुण्यतिथि पर आयोजित भव्य स्मृति सभा का। यह आयोजन अपने आप में इतिहास की धड़कनों को सुनने जैसा था जहां एक ओर श्रद्धा, संवेदना और देशप्रेम की गूंज थी, वहीं दूसरी ओर सत्ता के गलियारे से आई हल्की-फुल्की हास्य की लहर ने इस मंच को मानवीयता की गरिमा से भर दिया. पढ़े पुरी खबर.......

शहीद को श्रद्धांजलि और डीएम की खोज: जब दरभंगा के मंच पर नीतीश कुमार ने मंच संचालन, मज़ाक और मर्यादा का कॉकटेल परोसा, और उपमुख्यमंत्री को मुस्कुराहट के साथ उठाकर जनता को राजनीति का रंगमंच दिखाया पढ़ें इस खास रिपोर्ट में वह हर क्षण जब प्रशासनिक अनुशासन बना आम जन की हँसी का कारण!
शहीद को श्रद्धांजलि और डीएम की खोज: जब दरभंगा के मंच पर नीतीश कुमार ने मंच संचालन, मज़ाक और मर्यादा का कॉकटेल परोसा, और उपमुख्यमंत्री को मुस्कुराहट के साथ उठाकर जनता को राजनीति का रंगमंच दिखाया पढ़ें इस खास रिपोर्ट में वह हर क्षण जब प्रशासनिक अनुशासन बना आम जन की हँसी का कारण!

दरभंगा का ऐतिहासिक नेहरू स्टेडियम। मौका था, शहीद सूरज नारायण सिंह की पुण्यतिथि पर आयोजित भव्य स्मृति सभा का। यह आयोजन अपने आप में इतिहास की धड़कनों को सुनने जैसा था जहां एक ओर श्रद्धा, संवेदना और देशप्रेम की गूंज थी, वहीं दूसरी ओर सत्ता के गलियारे से आई हल्की-फुल्की हास्य की लहर ने इस मंच को मानवीयता की गरिमा से भर दिया।

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस सभा में शामिल होने पहुंचे। उनके साथ बिहार सरकार के कई कद्दावर चेहरे उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, शिक्षा मंत्री, जल संसाधन मंत्री, स्थानीय विधायकगण और सांसद मौजूद थे। मंच पर जो गंभीरता थी, उसमें अचानक एक हल्की मुस्कान की रेखा तब दौड़ी, जब मुख्यमंत्री ने अपने चिर-परिचित अंदाज़ में दरभंगा के जिलाधिकारी को मंच से ही खोज डाला।

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"कहाँ हैं हमारे DM साहब?" यह सवाल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अचानक मंच से पूछा, और जैसे ही यह शब्द माइक से गूंजे, सभा स्थल पर बैठे हजारों श्रोता ठिठक गए। कुछ ने सिर घुमाया, कुछ ने मंच के पीछे नजरें दौड़ाईं। जैसे किसी स्कूल के क्लासरूम में प्राचार्य की आवाज गूंजे "फ्लैंक बेंच वाला छात्र कहाँ है?"

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मंच के पीछे से थोड़े सकुचाते और बेहद विनम्र भाव से जिलाधिकारी साहब प्रकट हुए मानो कोई शिष्य गुरु के सामने उपस्थित हो। मुख्यमंत्री ने मुस्कुराकर इशारा किया "इधर आइए।" और जिलाधिकारी भी हाथ जोड़ते हुए मंच की ओर बढ़े। इस दृश्य को देख कर उपस्थित जनसमूह से एक हल्की मुस्कान फूट पड़ी। नीतीश बाबू का यह अंदाज़, वर्षों पुराने कार्यकाल की वो शैली है, जो ना तो पूरी तरह शिष्टाचार से बाहर जाती है, ना ही पूरी तरह हास्य में तब्दील होती है। यह एक 'सरकारी अपनापन' है, जिसे सिर्फ बिहार की राजनीति समझ सकती है।

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इसी क्रम में एक और पल आया जब मुख्यमंत्री ने मंच पर बैठे बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को कुछ अलग ही लहज़े में संबोधित करते हुए उठ खड़े होने को कहा। उन्होंने कहा, "उठिए सम्राट जी, लोग देख लें आपको।" और सम्राट चौधरी ने भी एक राजनीतिक परिपक्वता के साथ मुस्कुराते हुए अपनी कुर्सी छोड़ी और हाथ जोड़कर जनता का अभिवादन किया। यह क्षण सभा के लिए एक 'ऑफिशियल चुटकी' जैसा था। जनता ने खूब तालियाँ बजाईं, कैमरों की फ्लैश लाइटें झपकीं और यह क्षण मंच से उतरकर सोशल मीडिया की गलियों तक जा पहुंचा।

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यह दरभंगा का एक अलग चेहरा था जहाँ एक ओर मुख्यमंत्री ने अपनी घोषणा में शहीद सूरज नारायण सिंह की स्मृति में उनके नाम पर चौक का नामकरण और प्रतिमा स्थापना की बात मान ली, वहीं दूसरी ओर उनके व्यवहार ने यह भी जता दिया कि सत्ता के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति भी कभी-कभी हास्य की चुटकी में गंभीरता की गाँठें खोल सकता है।

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सभा में उपस्थित लोग मंत्रमुग्ध थे किसी को शहीद की स्मृति की गरिमा भावुक कर रही थी, तो किसी को मंच से निकली मुस्कानें एक नई राजनीतिक ताजगी का संकेत दे रही थीं। नीतीश कुमार का यह अंदाज़ कोई नया नहीं, परंतु हर बार उतना ही ताज़ा होता है। विपक्ष भले ही उनके भाषणों में राजनीति तलाशे, लेकिन आम जनता ने उस दिन उनके सवालों में हँसी, उनके आदेशों में अपनापन, और मंचीय दृश्य में एक सुगंधित मानवीयता पाई।

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दरभंगा जैसे ऐतिहासिक नगर में जहाँ मिथिला की धरती सदैव गूंजती है बुद्धि और भक्ति की धुनों से, वहाँ यह दृश्य इस बात की तस्दीक करता है कि नेता भी इंसान होते हैं, और मंच भी केवल भाषणों का नहीं, भावनाओं का स्थान होता है। यह स्मृति सभा इतिहास की पुस्तक में दर्ज हो न हो, पर जनता की स्मृति में यह दृश्य देर तक जीवित रहेगा जहाँ एक मुख्यमंत्री मंच से जिलाधिकारी को खोजता है, और उपमुख्यमंत्री को मुस्कुराकर उठने को कहता है और सारा जनसमूह, तालियों और हँसी के संग, इस राजनीति की मानवीय कविता को पढ़ता है।