पढ़िए ‘मिथिला जन जन की आवाज’ की वो रिपोर्ट, जिसमें राहुल और मनीष की दर्दनाक मौत से लेकर अब तक के 8 दिनों की पूरी दास्तान दर्ज है… हर वह लम्हा, हर वह सवाल और हर वह खामोशी, जो दरभंगा की सड़कों से लेकर लोगों के दिलों तक आज भी गूंज रही है…
कभी शिक्षा, संस्कृति और परंपरा का गौरवशाली केंद्र, आज अपराध की गिरफ्त में ऐसा जकड़ा हुआ है कि लोग अपने ही घरों से बाहर कदम रखने में डर रहे हैं। यहाँ इंसाफ़ की उम्मीद से ज्यादा मौत का डर भारी पड़ने लगा है। पिछले कुछ दिनों में जो घटनाएँ घटी हैं, उन्होंने न सिर्फ़ पुलिस-प्रशासन की पोल खोल दी है बल्कि समाज की रग-रग में सिहरन पैदा कर दी है. पढ़े पूरी खबर.......

दरभंगा: कभी शिक्षा, संस्कृति और परंपरा का गौरवशाली केंद्र, आज अपराध की गिरफ्त में ऐसा जकड़ा हुआ है कि लोग अपने ही घरों से बाहर कदम रखने में डर रहे हैं। यहाँ इंसाफ़ की उम्मीद से ज्यादा मौत का डर भारी पड़ने लगा है। पिछले कुछ दिनों में जो घटनाएँ घटी हैं, उन्होंने न सिर्फ़ पुलिस-प्रशासन की पोल खोल दी है बल्कि समाज की रग-रग में सिहरन पैदा कर दी है।
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पहला खून: राहुल कुमार की हत्या (24 सितम्बर 2025)
24 सितम्बर की शाम। एपीएम थाना क्षेत्र के एक निजी स्कूल के पास ज्वेलरी व्यवसायी राहुल कुमार (25 वर्ष) को अपराधियों ने गोली मार दी। स्थानीय लोग भागते हुए उन्हें DMCH लेकर पहुँचे, लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। राहुल लहेरियासराय थाना क्षेत्र के बाकरगंज दारू भट्टी निवासी बबलू साह के पुत्र थे। मेहनत से दुकान संभालते थे, जीवन की शुरुआत ही की थी, मगर अपराधियों की गोलियों ने परिवार की खुशियों को हमेशा के लिए लहूलुहान कर दिया। राहुल के पिता की चीखें, माँ का बेकाबू होकर बेहोश हो जाना और घर के आँगन में पसरा मातमी सन्नाटा… यह दृश्य पूरे मोहल्ले को हिला गया। लेकिन इससे भी बड़ा सवाल राहुल की हत्या को आठ दिन गुजर चुके, परिवार हर सुबह उम्मीद के साथ जागता है और हर रात मायूसी में रोकर सो जाता है… इसके बावजूद भी दरभंगा पुलिस हत्यारों तक नहीं पहुँच पाई।
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दूसरा खून: मनीष कुमार गुप्ता का शव (1अक्टूबर 2025)
राहुल की हत्या के ग़म में डूबा शहर अभी संभल भी नहीं पाया था कि आठ दिन, 192 घंटे, अनगिनत आंसू लेकिन इंसाफ़ का नाम तक नहीं एक और खून ने दरभंगा की आत्मा को झकझोर दिया। 1 अक्टूबर की शाम, सदर थाना क्षेत्र के रानीपुर स्थित दरभंगा-मुजफ्फरपुर फोरलेन पर ज्वेलरी व्यवसायी मनीष कुमार गुप्ता का शव बरामद हुआ। और यह शव सामान्य नहीं था छह टुकड़ों में बंटा हुआ। लोग दौड़े, भीड़ लगी, चारों तरफ सनसनी फैल गई। मनीष नगर थाना क्षेत्र के हसनचक गणेश मंदिर चौक निवासी वासुदेव प्रसाद गुप्ता के पुत्र थे। उनका दरभंगा टावर स्थित गंगा मार्केट में आभूषण का दुकान था। दोपहर तीन बजे घर लौटे, पर अचानक किसी का फ़ोन आया और वे मोबाइल छोड़कर निकल गए। उसके एक घंटे बाद उनका क्षत-विक्षत शव फोरलेन पर पड़ा मिला। परिजनों का कहना है यह सड़क हादसा नहीं, हत्या है। गोली मारकर मनीष की जान ली गई, फिर शव को सड़क पर फेंक दिया गया। गले की सोने की चेन, हाथों की अंगूठियाँ सब गायब हैं। लेकिन पुलिस ने पहले इसे हादसा बताने की कोशिश की। कहा ई-रिक्शा से गिरने पर मौत हुई। लोग भड़क उठे। सड़क पर पाँच घंटे जाम लगाया। पुलिस-प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी हुई। आखिरकार एसडीओ और एसडीपीओ को मौके पर आना पड़ा और हत्या की प्राथमिकी दर्ज कराने का आश्वासन देना पड़ा।
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भय और आक्रोश का शहर
राहुल और मनीष दोनों ज्वेलरी व्यवसायी। दोनों पर अपराधियों का हमला। दोनों मौत की नींद सुला दिए गए। और पुलिस? सिर्फ़ बयान दे रही है जाँच चल रही है।दरभंगा की जनता अब खुलकर कह रही है यह शहर अपराधियों के कब्ज़े में है। पुलिस सिर्फ़ लीपापोती कर रही है। इंसाफ़ का नाम लेना अपराधियों के सामने मज़ाक बन चुका है। व्यवसायी वर्ग दहशत में है ज्वेलरी का कारोबार पहले ही अपराधियों के लिए लालच का केन्द्र रहा है। अब हालात यह हैं कि दुकानदार हर दिन अपनी जान हथेली पर लेकर दुकान खोल रहे हैं। रंगदारी, गोलीकांड, हत्या यहाँ अब आम बातें बन चुकी हैं।
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मिथिला की अस्मिता पर हमला
मिथिला, जिसकी पहचान ज्ञान, शांति और संस्कृति से रही है, आज अपराधियों की हवस और प्रशासन की सुस्ती से कलंकित हो रही है। यह सिर्फ़ दो परिवारों का दर्द नहीं है यह पूरे दरभंगा, पूरे मिथिला की आत्मा पर हमला है। पुलिस और प्रशासन पर सवाल राहुल की हत्या को हुए पाँच दिन बीत गए, हत्यारे अब तक फरार। मनीष की हत्या पर पहले लीपापोती की कोशिश। आम जनता की पुकार दबाई जा रही है। प्रशासनिक मशीनरी बस “जाँच” शब्द का सहारा ले रही है। तो क्या अब दरभंगा का पुलिस सिस्टम अपराधियों के सामने घुटने टेक चुका है?
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जनता की आवाज मिथिला जन जन की आवाज
“मिथिला जन जन की आवाज समाचार” के इस विशेष पड़ताल के दौरान जो सबसे बड़ा सच सामने आया, वह यह है कि जनता अब थक चुकी है। लोग कह रहे हैं “अगर पुलिस अपराधियों को पकड़ नहीं सकती, तो हमें खुद सड़क पर उतरकर लड़ाई लड़नी होगी।” दरभंगा की गलियों से लेकर चौक-चौराहों तक यही आवाज़ गूंज रही है “हमारे बेटे, हमारे भाई, हमारे व्यवसायी सबको मारा जा रहा है। कब तक चुप रहेंगे?” राहुल और मनीष दो नाम, दो परिवार, दो कहानियाँ। लेकिन दोनों की मौत हमें एक ही सच बताती है दरभंगा अपराधियों की पकड़ में है और पुलिस-प्रशासन इस धरती के साथ न्याय करने में नाकाम साबित हो रहा है। अगर अब भी कार्रवाई नहीं हुई, अगर कातिलों को पकड़कर सज़ा नहीं मिली, तो यह शहर खून और मातम के अंधेरे में डूब जाएगा।