दरभंगा की वह सुबह जब सूरज नहीं खून उगा आंखोपुर में मनका तालाब के किनारे गुलजार का कटा गला मिला, बहादुरपुर की हवा भी कांपी, लेकिन सिस्टम ने फिर आंखें बंद कर ली; अब सवाल यह नहीं कि किसकी हत्या हुई… सवाल ये है कि अगला कौन होगा?

एक समय था जब यह नाम आते ही बुद्धि, विद्या और विरासत की त्रयी स्मृति में उतरती थी। मिथिला की सांस्कृतिक राजधानी कहलाने वाला यह शहर अब धीरे-धीरे अपराध की राजधानी बनने की ओर अग्रसर है। हर सुबह अख़बारों की सुर्खियाँ अब शोकगीत बन चुकी हैं। हर शाम को मातम में तब्दील करने का इंतज़ाम यहां के अपराधी कर देते हैं, और पुलिस प्रशासन ठंडे कंबल में लिपटी संवेदनहीनता की प्रतिमा बन चुका है. पढ़े पुरी खबर.......

दरभंगा की वह सुबह जब सूरज नहीं खून उगा आंखोपुर में मनका तालाब के किनारे गुलजार का कटा गला मिला, बहादुरपुर की हवा भी कांपी, लेकिन सिस्टम ने फिर आंखें बंद कर ली; अब सवाल यह नहीं कि किसकी हत्या हुई… सवाल ये है कि अगला कौन होगा?
दरभंगा की वह सुबह जब सूरज नहीं खून उगा आंखोपुर में मनका तालाब के किनारे गुलजार का कटा गला मिला, बहादुरपुर की हवा भी कांपी, लेकिन सिस्टम ने फिर आंखें बंद कर ली; अब सवाल यह नहीं कि किसकी हत्या हुई… सवाल ये है कि अगला कौन होगा?

दरभंगा की वह सुबह जब सूरज नहीं खून उगा आंखोपुर में मनका तालाब के किनारे गुलजार का कटा गला मिला, बहादुरपुर की हवा भी कांपी, लेकिन सिस्टम ने फिर आंखें बंद कर ली; अब सवाल यह नहीं कि किसकी हत्या हुई… सवाल ये है कि अगला कौन होगा? दरभंगा... एक समय था जब यह नाम आते ही बुद्धि, विद्या और विरासत की त्रयी स्मृति में उतरती थी। मिथिला की सांस्कृतिक राजधानी कहलाने वाला यह शहर अब धीरे-धीरे अपराध की राजधानी बनने की ओर अग्रसर है। हर सुबह अख़बारों की सुर्खियाँ अब शोकगीत बन चुकी हैं। हर शाम को मातम में तब्दील करने का इंतज़ाम यहां के अपराधी कर देते हैं, और पुलिस प्रशासन ठंडे कंबल में लिपटी संवेदनहीनता की प्रतिमा बन चुका है।

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फिर एक हत्या, फिर वही मौन, फिर वही वादा: बहादुरपुर थाना क्षेत्र के आंखोपुर गांव में सोमवार की सुबह जब मनका तालाब की तली में खून की लकीर बहती दिखी, तब गांववालों की चीखें आसमान फाड़ने लगीं। तालाब किनारे युवक का शव पड़ा था गला रेतकर निर्ममता से मारा गया था मोहम्मद गुलजार, उम्र महज़ 25 वर्ष। न कोई सरकारी सुरक्षा, न कोई सामाजिक संरचना। सिर्फ मौत, खून, और प्रशासन की कसमसाती चुप्पी।

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क्या अब दरभंगा का हर नौजवान इसी नियति का शिकार बनेगा? गुलजार कोई बड़ा अपराधी नहीं था। एक साधारण मजदूर था, जो लोहा बांधकर रोज़ी रोटी कमाता था। लेकिन समाज ने उसे गिरने दिया। एक-एक करके उसके अपने छूटते गए मां की मौत ने उसे तोड़ा, पिता से दूरी ने उसे बेसहारा किया, और नशे की लत ने उसे मार डाला... आखिर में शरीर को किसी ने मार डाला, लेकिन आत्मा तो वर्षों पहले दम तोड़ चुकी थी।

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किराए से बेदखली, समाज से बहिष्कार, और अंत में गला रेतकर अंत: गुलजार छह महीने से इधर-उधर भटक रहा था। महाराजगंज में मकान मालिक ने किराया न देने पर घर से निकाल दिया। रिश्तेदारों ने मुंह मोड़ लिया। सड़कों ने उसे शरण दी और अपराधियों ने मौत। जिस समाज में किसी के भूखे सोने पर किसी की नींद नहीं टूटती, उस समाज में हत्या होना अब खबर नहीं रही एक ‘न्यू नॉर्मल’ हो गया है।

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पुलिस, प्रशासन और राजनीति का त्रिकोणीय मौन: घटनास्थल पर पहुंचे सिटी एसपी अशोक कुमार ने औपचारिकता निभाई “FSL बुला लिया गया है। जांच चल रही है। आरोपी जल्द गिरफ़्तार होगा।” यह वही रटा-रटाया संवाद है, जो हर हत्या के बाद बोला जाता है। लेकिन सवाल यह है कि हत्या होने से पहले क्या कोई प्रयास किया गया था उसे रोकने का? क्या बहादुरपुर थाना को इस बात की भनक नहीं थी कि गुलजार नशेड़ियों की संगत में पड़ गया है? क्या चौक-चौराहों पर नशे की खुली बिक्री पर किसी की नज़र नहीं पड़ती? क्या यह जानबूझकर अनदेखी है या प्रशासन की नपुंसकता?

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नशे के साये में लुप्त होती दरभंगा की आत्मा: आज दरभंगा में सिर्फ हत्या नहीं हो रही, आज यहां पर मिथिला की आत्मा का वध हो रहा है। नशा अब सिर्फ युवाओं को नहीं निगल रहा, यह शहर की शांति, संस्कृति और समरसता को भी खा रहा है। गांजा, ब्राउन शुगर, शराब सब कुछ खुलेआम बिकता है और पुलिस की गाड़ी कभी नहीं दिखती।

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शहर नहीं, शवगृह बनता दरभंगा: मनका तालाब अब केवल जलाशय नहीं रहा, वह एक कब्रगाह है जहां मौत अपना चुपचाप घर बसा चुकी है। पहले हत्याएं अपवाद हुआ करती थीं, अब परंपरा बन चुकी हैं। कोई दिन ऐसा नहीं जब हत्या, लूट, बलात्कार, नशे की गिरफ्तारी की खबरें दरभंगा से न आती हों।

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शहर की गली-गली अब चीखती है “कब जागेगा प्रशासन?” क्या करेगा प्रशासन? क्या बोलेगा समाज? आज गुलजार मरा है, कल कोई और मरेगा। दरभंगा के नागरिकों से पूछिए क्या वे अब सुरक्षित हैं? जवाब मिलेगा “कभी भी कुछ भी हो सकता है। प्रशासन से कोई उम्मीद नहीं।” दरभंगा अब साहित्य, संस्कार और सभ्यता का नहीं, बल्कि सुस्ती, सड़ांध और सिलसिलेवार हत्याओं का शहर बन गया है। और जब तक पुलिस, प्रशासन और समाज इस मिलीजुली नपुंसकता से बाहर नहीं निकलते, तब तक हर मोहल्ले का अगला गुलजार मौत की बिछावन पर मिलेगा, और हम पत्रकारों की कलम फिर वही लिखेगी फिर हत्या... फिर खून... फिर प्रशासन मौन...