जब दरभंगा की बेटियों ने मिट्टी से उठाकर सपनों को आसमान तक फेंका... मशाल प्रतियोगिता की लौ बनी हौसले की रौशनी, और खेल प्रभारी श्वेता भारती बनीं उस हर कदम की मूक प्रेरणा, जहाँ पसीने से लिखा गया उम्मीदों का घोषणापत्र

शहर की सुबहें जब ठंडी हवाओं से गुफ्तगू कर रही थीं, उसी दरम्यान विद्यालयों के मैदानों में पसीने की तपिश से उगते थे नए सूर्य। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा बिहार की छुपी हुई प्रतिभाओं को तलाशने और उन्हें राज्यस्तरीय मंच देने के उद्देश्य से शुरू की गई 'मशाल' योजना अब केवल खेल प्रतियोगिता नहीं रही, यह एक सामाजिक जागरण बन चुकी है. पढ़े पुरी खबर......

जब दरभंगा की बेटियों ने मिट्टी से उठाकर सपनों को आसमान तक फेंका... मशाल प्रतियोगिता की लौ बनी हौसले की रौशनी, और खेल प्रभारी श्वेता भारती बनीं उस हर कदम की मूक प्रेरणा, जहाँ पसीने से लिखा गया उम्मीदों का घोषणापत्र
मशाल प्रतियोगिता की लौ बनी हौसले की रौशनी, और खेल प्रभारी श्वेता भारती बनीं उस हर कदम की मूक प्रेरणा, जहाँ पसीने से लिखा गया उम्मीदों का घोषणापत्र; फोटो: मिथिला जन जन की आवाज

दरभंगा: शहर की सुबहें जब ठंडी हवाओं से गुफ्तगू कर रही थीं, उसी दरम्यान विद्यालयों के मैदानों में पसीने की तपिश से उगते थे नए सूर्य। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा बिहार की छुपी हुई प्रतिभाओं को तलाशने और उन्हें राज्यस्तरीय मंच देने के उद्देश्य से शुरू की गई 'मशाल' योजना अब केवल खेल प्रतियोगिता नहीं रही, यह एक सामाजिक जागरण बन चुकी है। राज्य शिक्षा विभाग एवं खेल मंत्रालय के संयुक्त तत्वावधान में दरभंगा नगर के विभिन्न संकुल संसाधन केंद्रों पर आयोजित तीन दिवसीय मशाल खेल प्रतियोगिता शनिवार को सजीव समापन के साथ अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँची। लेकिन यह समापन नहीं था, बल्कि उन बच्चों के भीतर जन्म ले रही एक नई शुरुआत थी जो खेल को केवल अंक नहीं, आत्मा मानते हैं।

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लालबाग स्थित प्लस टू एमएआरएम बालिका उच्च विद्यालय के प्रांगण में समापन समारोह की वह छवि लंबे समय तक स्मृतियों में जीवित रहेगी। यहाँ की खेल प्रभारी श्वेता भारती न सिर्फ आयोजन की संयोजिका रहीं, बल्कि प्रतिभागियों की प्रेरक दीपशिखा भी बनीं। जहाँ कुछ छात्र-छात्राएं झिझक रहे थे, वहीं श्वेता जी की मुस्कान और मार्गदर्शन उन्हें आत्मविश्वास की सरहदों तक पहुँचा रही थी। उन्होंने मैदान में बच्चों के साथ दौड़ लगाई, कूद में लय दी और हर हार को सीख में बदल दिया।

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समन्वयक राजकुमार पासवान, प्राचार्या साधना कुमारी, वसुंधरा मिश्रा की उपस्थिति में प्रतियोगिता के हर मोड़ पर अनुशासन, उत्साह और न्याय की त्रयी दिखाई दी। निर्णायक मंडल के गौर चंद्र चौधरी, सुनील पासवान और डॉ. एसएस कुमार जैसे अनुभवी चेहरों ने हर खिलाड़ी की ऊर्जा को दिशा दी। आदर्श मध्य विद्यालय में भी एचएम संजीव कुमार मिश्र की देखरेख में बच्चों ने खेलों के माध्यम से अपने भीतर की लड़ाई को मैदान में उतारा।

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श्वेता भारती, जिनके चेहरे पर पूरे आयोजन के दौरान थकान की एक लकीर तक नहीं दिखी, ने कहा "खेल सिर्फ दौड़ नहीं होती, यह जीवन के हर पड़ाव की तैयारी है। हम बेटियों को सिर्फ पढ़ा नहीं रहे, उन्हें दौड़ना सिखा रहे हैं, ताकि जब वे ज़िंदगी के मैदान में उतरें तो घुटने टेकने की बजाय लहर बनकर बहें।"

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उनका यह वाक्य जैसे पूरे समापन समारोह का केंद्रीय स्वर बन गया: खेल विधाएं जैसे एथलेटिक्स, साइकलिंग, कबड्डी, लंबी दौड़, ऊँची कूद आदि में जब छोटे-छोटे कदमों ने गति पकड़ी, तो दर्शकों की तालियाँ मैदान की मिट्टी में ऊर्जा बनकर समा गईं। यह केवल प्रतियोगिता नहीं थी यह उस भविष्य की दस्तक थी, जो गाँव-कस्बों के स्कूली बच्चों को खेल की मुख्यधारा में लाने का सपना देख रही है।

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डीपीओ प्रारंभिक शिक्षा एवं समग्र शिक्षा अभियान के मो. जमाल मुस्तफा ने आयोजन की सफलता पर प्रसन्नता जताते हुए समन्वयकों को धन्यवाद दिया। वहीं जिला शिक्षा पदाधिकारी केएन सदा ने इसे खेलों के माध्यम से प्रतिभा तलाशने की पहल बताया और कहा कि यदि ऐसी प्रतियोगिताएँ नियमित हों, तो दरभंगा जैसे जिलों से भी अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी निकल सकते हैं। इस प्रतियोगिता ने सिखाया कि जब स्कूलों में पढ़ाई के साथ-साथ खेल की मशाल जलाई जाती है, तब रोशनी सिर्फ मैदान में नहीं होती, जीवन के हर मोड़ पर दिखती है।