"न अंकों की दौड़, न दिखावे की होड़— सिर्फ मेहनत, अनुशासन और विश्वास से रची सफलता की कहानी; दरभंगा पब्लिक स्कूल की ऐतिहासिक उपलब्धि और आयुषी रानी की शिखर यात्रा!"

जब चारों ओर शिक्षा-प्रणालियों की आलोचना होती है, जब अंकसूची की दौड़ में बच्चों की मासूमियत कुचली जाती है, तब कहीं-कहीं ऐसे विद्यालय भी उगते हैं जो सिर्फ पाठ्यक्रम नहीं पढ़ाते, बल्कि चरित्र का निर्माण करते हैं। दरभंगा पब्लिक स्कूल, जो दरभंगा के दिल्ली मोड़ पर स्थित है, ऐसा ही एक संस्थान है — जहाँ दीवारें नहीं, संस्कार बोलते हैं; जहाँ घंटियों की आवाज़ से पहले बच्चों के सपनों की धड़कन गूंजती है. पढ़े पुरी खबर.......

"न अंकों की दौड़, न दिखावे की होड़— सिर्फ मेहनत, अनुशासन और विश्वास से रची सफलता की कहानी; दरभंगा पब्लिक स्कूल की ऐतिहासिक उपलब्धि और आयुषी रानी की शिखर यात्रा!"
"न अंकों की दौड़, न दिखावे की होड़— सिर्फ मेहनत, अनुशासन और विश्वास से रची सफलता की कहानी; दरभंगा पब्लिक स्कूल की ऐतिहासिक उपलब्धि और आयुषी रानी की शिखर यात्रा!"

दरभंगा:- जब चारों ओर शिक्षा-प्रणालियों की आलोचना होती है, जब अंकसूची की दौड़ में बच्चों की मासूमियत कुचली जाती है, तब कहीं-कहीं ऐसे विद्यालय भी उगते हैं जो सिर्फ पाठ्यक्रम नहीं पढ़ाते, बल्कि चरित्र का निर्माण करते हैं। दरभंगा पब्लिक स्कूल, जो दरभंगा के दिल्ली मोड़ पर स्थित है, ऐसा ही एक संस्थान है — जहाँ दीवारें नहीं, संस्कार बोलते हैं; जहाँ घंटियों की आवाज़ से पहले बच्चों के सपनों की धड़कन गूंजती है।

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वर्ष 2025 के सीबीएसई कक्षा 12वीं बोर्ड परीक्षा में जब परिणाम आए, तो यह विद्यालय फिर एक बार "गौरव की गाथा" में परिवर्तित हो गया। हर कोना, हर प्रांगण, हर शिक्षक की आँखों में एक ही चमक थी संघर्ष की जीत, साधना का प्रतिफल और शिक्षा की सच्ची परिभाषा।

100% सफलता: आँकड़ों से ऊपर, आत्मा से भरी कहानी: इस बार दरभंगा पब्लिक स्कूल ने 100% पासिंग रिजल्ट देकर न केवल शैक्षणिक मानकों पर खरा उतरने का प्रमाण दिया, बल्कि यह सिद्ध किया कि सच्ची शिक्षा वही है जो किसी को भी पीछे न छोड़ती हो।

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विद्यालय के 22% छात्र-छात्राओं ने 90% से अधिक अंक प्राप्त किए, और कई छात्रों ने 85% से ऊपर की श्रेणी में अपना नाम दर्ज कराया। ये संख्या नहीं, उन नींदें हैं जो बच्चों ने छोड़ी थीं, वो त्याग हैं जो अभिभावकों ने किए थे, और वो पसीना है जो शिक्षकों ने हर एक उत्तर-पत्र की तैयारी में बहाया था।

जब एक बेटी बनी जिले की शान: आयुषी रानी की कहानी: आयुषी रानी, एक सामान्य परिवार से आने वाली असाधारण छात्रा, आज मिथिला की बेटियों के लिए एक प्रतिमान बन गई हैं। 96.6% अंक प्राप्त कर उन्होंने न केवल विद्यालय में टॉप किया, बल्कि पूरे दरभंगा जिले की कॉमर्स टॉपर बन गईं।

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उनकी आंखों में झील की गहराई है और स्वप्नों में आकाश की ऊँचाई। उनका सपना है एक चार्टर्ड अकाउंटेंट बनना न केवल अपने परिवार के लिए, बल्कि समाज में एक प्रेरणास्रोत बनने के लिए।

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जब उनसे पूछा गया कि इतनी सफलता का रहस्य क्या है, तो उन्होंने मुस्कुरा कर कहा:"मेरे माता-पिता, मेरे गुरुजन और मेरे स्कूल का अनुशासन बस यही मेरी सफलता का रहस्य है।" उनके पिता श्री विश्वनाथ साह और माता श्रीमती डॉली कुमारी की आँखों में नमी थी गर्व की नमी, जिसमें वर्षों का परिश्रम और त्याग बह रहा था।

कॉमर्स संकाय: जहाँ केवल गणित नहीं, स्वप्न जोड़े जाते हैं। आयुषी के साथ-साथ कॉमर्स संकाय के अन्य विद्यार्थियों ने भी विद्यालय की गरिमा को ऊँचाइयों पर पहुँचाया।

सत्यम राय – 92.8%

ज्योत्सना – 92.2%

आदित्य राय – 91.4%

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इन सभी छात्रों की आँखों में कोई कॉर्पोरेट टावर नहीं, बल्कि एक ऐसे भारत की छवि है, जहाँ ईमानदारी, नैतिकता और व्यावसायिक ज्ञान मिलकर भविष्य गढ़ते हैं।आयुष चौधरी और योगेश कुमार दो नाम, दो ध्रुव, पर एक समान आकांक्षा ज्ञान का सृजन। दोनों ने 93% अंक प्राप्त किए, और आज उनके चेहरे पर वह चमक है जो किसी प्रयोगशाला की ट्यूबलाइट से अधिक तेज़ है। ये वही छात्र हैं, जो कभी विद्यालय की लैब में केमिकल मिलाकर चौंकते थे, अब जिनके सपनों में IIT, NIT और वैश्विक रिसर्च संस्थान हैं।

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प्राचार्य और प्रबंधन की दृष्टि: जहाँ नेतृत्व बनता है सौम्यता का पर्याय: डॉ. मदन कुमार मिश्रा, विद्यालय के प्राचार्य, केवल एक शैक्षणिक अधिकारी नहीं, बल्कि शब्दों और संवेदनाओं के संतुलन के मूर्त स्वरूप हैं। उन्होंने कहा: "इस सफलता में केवल बच्चों की मेहनत नहीं, बल्कि हर शिक्षक की निःस्वार्थ तपस्या और हर अभिभावक की आस्था सम्मिलित है। आयुषी जैसी बेटियाँ विद्यालय की आत्मा हैं।"

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वहीं विद्यालय प्रबंधन से डॉ. विशाल गौरव, जो खुद एक दूरदर्शी और समर्पित शिक्षाविद हैं, ने कहा:"दरभंगा पब्लिक स्कूल केवल अंकों की फैक्ट्री नहीं, बल्कि एक विचार है, जो हर छात्र को सोचने, समझने और समाज के लिए जीने की प्रेरणा देता है। यह परिणाम उसी विचारधारा की पुष्टि है।"

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दरभंगा पब्लिक स्कूल आज केवल एक विद्यालय नहीं, बल्कि एक संभावनाओं का तीर्थ बन चुका है। यहाँ हर कक्षा एक तीर्थकुंड है, हर शिक्षक एक पुरोहित, और हर विद्यार्थी एक साधक, जो ज्ञानरूपी मोक्ष की ओर अग्रसर है। जब दरभंगा की सड़कों पर किसी बच्ची के हाथ में रिपोर्ट कार्ड हो और उसकी माँ गर्व से मुस्कराती हो — तो जान लीजिए, वह मुस्कान दरभंगा पब्लिक स्कूल की ही देन है।

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"यह सफलता नहीं, एक संस्कृति है।

यह परिणाम नहीं, एक परंपरा है।

और यह विद्यालय नहीं, एक विचारधारा है—

जहाँ हर बच्चा बनता है भविष्य का दीपक।"