जिन्होंने नहीं सुनी वो ‘धाँय!’, वे पढ़ें यह रिपोर्ट ताकि जान सकें कि एक आवाज़ कैसे बदल देती है ज़िंदगियाँ

भरवाड़ा की वह शाम सामान्य नहीं थी। हल्की हवा बह रही थी, बाजार में चूड़ी की खनखनाहट और बच्चों की चहल-पहल, ग्राहक थकी ज़ुबान में सौदा कर रहे थे और दुकानदार अंतिम मुनाफे की गिनती में डूबे थे। लेकिन तभी, वक़्त ने करवट ली। घड़ी की सुइयाँ जैसे डर से ठहर गईं और भरवाड़ा की गलियों में चीख गूँज उठी "गोली चल गई... सुरेश भैया को मार दिया!" वह दुकान, जहाँ वर्षों से साख जमा चुके सुरेश ठाकुर लोगों की मांग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र का स्वर्णाभूषण सजाया करते थे, उसी दुकान में उस दिन रक्त की धार बह रही थी. पढ़े पुरी खबर.......

जिन्होंने नहीं सुनी वो ‘धाँय!’, वे पढ़ें यह रिपोर्ट ताकि जान सकें कि एक आवाज़ कैसे बदल देती है ज़िंदगियाँ
जिन्होंने नहीं सुनी वो ‘धाँय!’, वे पढ़ें यह रिपोर्ट ताकि जान सकें कि एक आवाज़ कैसे बदल देती है ज़िंदगियाँ

दरभंगा: भरवाड़ा की वह शाम सामान्य नहीं थी। हल्की हवा बह रही थी, बाजार में चूड़ी की खनखनाहट और बच्चों की चहल-पहल, ग्राहक थकी ज़ुबान में सौदा कर रहे थे और दुकानदार अंतिम मुनाफे की गिनती में डूबे थे। लेकिन तभी, वक़्त ने करवट ली। घड़ी की सुइयाँ जैसे डर से ठहर गईं और भरवाड़ा की गलियों में चीख गूँज उठी "गोली चल गई... सुरेश भैया को मार दिया!" वह दुकान, जहाँ वर्षों से साख जमा चुके सुरेश ठाकुर लोगों की मांग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र का स्वर्णाभूषण सजाया करते थे, उसी दुकान में उस दिन रक्त की धार बह रही थी।

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अपराध का तांडव: स्वर्ण पर धंधा नहीं, अब जानें दाँव पर: गुरुवार, रात के नौ बज रहे थे। सुरेश ठाकुर अपनी दुकान समेटने ही वाले थे। तभी दो बाइकों पर छह अपराधियों का झुंड उनकी दुकान पर धावा बोलता है। दो बाहर तैनात, चार अंदर। यह कोई सामान्य चोरी नहीं थी, यह अपराधियों का पूर्वनियोजित हमला था। जैसे किसी सैन्य मिशन में पूरी रणनीति तैयार हो।

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भीतर घुसे चारों हथियारबंद थे। चिल्लाते हुए बोले: "लॉकर खोलो वरना जान से जाओगे!" सुरेश ने प्रतिरोध किया। उनकी आँखों में डर नहीं, साहस था। लेकिन अपराधियों ने उस साहस की कीमत उनके चेहरे से चुकता की एक गोली, ठीक होंठ के पास, और सुरेश ठाकुर ज़मीन पर गिर पड़े।

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लहू में लथपथ व्यवसायी और चीखती औरतें: घटना के समय दुकान में दो महिला ग्राहक मौजूद थीं। उन्होंने शोर मचाया, लेकिन अपराधियों की बंदूकें गूंगी कर गईं मोहल्ले को। बाहर तैनात बाइक सवार पहले ही तैयार थे हमलावर लूट के साथ भाग निकले। जिस दुकान में कभी मंगल गीत गूँजते थे, वहां उस रात सायरन और कराह गूंज रही थी।

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प्रशासन की गति और जनविश्वास की ठिठुरन: घटना के तुरंत बाद सिंहवाड़ा थाना, डीएमसीएच, फिर निजी अस्पताल तक भाग-दौड़ होती रही। एसडीपीओ टू ज्योति कुमारी और थानाध्यक्ष रंजीत कुमार मौके पर पहुंचे। चारों तरफ़ नाकेबंदी हुई, लेकिन अपराधी निकल चुके थे बिना किसी अवरोध के, बिल्कुल वैसे जैसे हमारे सिस्टम की नसें अब सुन्न हो चुकी हैं। क्या यह पहला हमला है? नहीं। लेकिन हर बार प्रशासन की प्रतिक्रिया वही होती है "जांच जारी है, जल्द गिरफ्तारी होगी।" जनता पूछ रही है, "कब तक?" कब तक इस जांच के नाम पर सन्नाटे के नीचे अपराध पनपते रहेंगे?

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एक व्यापारी नहीं, एक विश्वास घायल हुआ है: सुरेश ठाकुर सिर्फ़ एक स्वर्ण व्यवसायी नहीं थे, वह उस छोटे कस्बे की आस्था थे। उनके चेहरे पर लटकती तुलसी की माला, दुकान में बजते भजन, और ग्राहकों से उनका अपनापन इन सब पर उस रात गोली चली थी। वह गोली व्यवसाय पर नहीं, भरोसे पर चली थी। उस लूट में सिर्फ़ जेवरात नहीं, सद्भाव और सुरक्षा की चूड़ियाँ भी टूटी थीं।

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डॉक्टर की व्यथा “गोली अभी अंदर है, हालत गंभीर है”: जब सुरेश को अस्पताल लाया गया, डॉक्टर संजय कुमार ने तपाक कहा"गोली होंठ के ऊपर दाहिनी तरफ लगी है, अंदर फंसी है।" क्या अब उनके चेहरे की मुस्कान लौटेगी? क्या वे फिर उसी आत्मविश्वास से दुकान खोल पाएंगे? शायद नहीं। जिस चेहरे ने वर्षों तक भरवाड़ा की बेटियों के लिए मंगलसूत्र गढ़ा, उस चेहरे को आज भरवाड़ा के हालात ने कुचल डाला।

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न्याय की प्रतीक्षा में काँपता कस्बा: भरवाड़ा, सिंहवाड़ा, दरभंगा हर कोना आज चुप है। सुरेश ठाकुर के समर्थन में कोई मोमबत्ती मार्च नहीं निकली, न ही कोई नेता अस्पताल पहुँचा। क्योंकि यह हमला किसी 'वीआईपी' पर नहीं, एक 'साधारण नागरिक' पर हुआ है। लेकिन क्या जनता अब इतनी साधारण हो गई है कि उस पर हो रहे असाधारण अत्याचार भी साधारण हो चले हैं? समाप्ति नहीं, संघर्ष की शुरुआत है यह! इस घटना का अंत नहीं हुआ है। यह उस कड़ी की शुरुआत है जहाँ व्यापारी डर के साये में दुकान खोलेंगे, ग्राहक आशंका से घबराएँगे, और प्रशासन फिर किसी 'नई रणनीति' की घोषणा करेगा।

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लेकिन सच कहें तो...जब तक अपराधी का हौसला पुलिस से बड़ा होगा, जब तक गोली बयान देने वालों से तेज़ दौड़ेगी, तब तक भरवाड़ा की गलियों में फिर कोई सुरेश ठाकुर रक्तरंजित मिलेगा और फिर हम सब चुप रहेंगे। क्या आप इस चुप्पी के हिस्सेदार बनेंगे? यदि नहीं, तो उठिए। आवाज़ बनिए। इस भय के विरुद्ध लेखनी बनिए। सुरेश ठाकुर अकेले नहीं हैं, वह हम सब हैं।