जब एक बेटे के सिर में गोली उतारी गई और पिता की आंखों में न्याय की लपटें जल उठीं: दरभंगा की उस स्याह रात से अदालत के कठोर फैसले तक, सुनील हत्याकांड में उम्रकैद और अर्थदंड से कांपा अपराधियों का गठजोड़

उस रात आसमान चुप था, लेकिन ज़मीन पर ज़ुल्म की नंगी परछाईं चल रही थी। 30 दिसंबर 2018 की वो रात सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि एक पिता की आंखों में जलते उस मंज़र की रात है जिसे कोई बाप दुश्मन को भी न दिखाए। बेटा, सुनील कुमार राय बाजार समिति का कर्मठ कर्मचारी, अपने बाप की चाय की दुकान पर रोज़ की तरह आया, लेकिन लौट कर कभी नहीं गया। उसका शरीर तो गया, पर उसकी आत्मा आज दरभंगा की अदालत में सज़ा की घोषणा के रूप में मुस्कुरा रही थी. पढ़े पुरी खबर......

जब एक बेटे के सिर में गोली उतारी गई और पिता की आंखों में न्याय की लपटें जल उठीं: दरभंगा की उस स्याह रात से अदालत के कठोर फैसले तक, सुनील हत्याकांड में उम्रकैद और अर्थदंड से कांपा अपराधियों का गठजोड़
जब एक बेटे के सिर में गोली उतारी गई और पिता की आंखों में न्याय की लपटें जल उठीं: दरभंगा की उस स्याह रात से अदालत के कठोर फैसले तक, सुनील हत्याकांड में उम्रकैद और अर्थदंड से कांपा अपराधियों का गठजोड़; फोटो: मिथिला जन जन की आवाज

दरभंगा, बिहार। उस रात आसमान चुप था, लेकिन ज़मीन पर ज़ुल्म की नंगी परछाईं चल रही थी। 30 दिसंबर 2018 की वो रात सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि एक पिता की आंखों में जलते उस मंज़र की रात है जिसे कोई बाप दुश्मन को भी न दिखाए। बेटा, सुनील कुमार राय बाजार समिति का कर्मठ कर्मचारी, अपने बाप की चाय की दुकान पर रोज़ की तरह आया, लेकिन लौट कर कभी नहीं गया। उसका शरीर तो गया, पर उसकी आत्मा आज दरभंगा की अदालत में सज़ा की घोषणा के रूप में मुस्कुरा रही थी।

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हत्या की वह रात: जब चाय की दुकान कत्लगाह बन गई घटना नगर थाना क्षेत्र के मिश्रटोला, नाग मंदिर के समीप स्थित उस चाय की दुकान पर हुई, जहां बाप-बेटे रोज़ी की चाय के प्यालों से जिंदगी का स्वाद खोजते थे। मगर उस रात स्वाद में बारूद घुली थी, रिवाल्वर की नली तप रही थी और रंजिश की आग में इंसानियत को जिंदा जलाने की तैयारी चल रही थी।

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रात के ठीक 9:00 बजे, जब सुनील दुकान पर बैठा था, तभी हथियारबंद भीड़ उसके चारों ओर ऐसे मंडराने लगी जैसे गिद्ध लाश पर। आरोपी विपिन राय अपने साथी चंदन राय, अमर कुमार, सुरेंद्र राय और लगभग 11 आदमियों के साथ वहां पहुंचा। जुबानी तकरार हुई, आंखों में नफरत का ज़हर उतरने लगा और फिर नाग मंदिर के समीप, भगवान की छांव में गोली चली। एक, सीधी सिर में। एकदम क़त्लनामा। एक ही पल में बेटा धराशायी, बाप तन्हा।

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प्राथमिकी: जब एक बाप की आवाज़ पुलिस डायरी में दर्ज हुई दर्द से कांपती आवाज़ में राम प्रकाश राय ने बेंता ओपी पुलिस को दिया गया अपना बयान ठेठ शब्दों में दर्ज कराया: “हमरा बेटा सुनील कुमार कुछ दिन से कह रहा था कि विपिन राय से दुश्मनी है बाबू, कुछ करेगा। हम सोचे कि गांव के लड़कों की बात है, ठंडी पड़ जाएगी। लेकिन आज हमार सब कुछ लुटा गइल।”

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इस बयान के आधार पर नगर थाना कांड संख्या 259/18 दर्ज हुआ और फिर शुरू हुई कानून की लंबी, जटिल, और कठिन यात्रा इंसाफ़ की खोज में।

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अदालत का कठोर निर्णय: हत्या की कीमत उम्रभर की कैद और 55 हज़ार का अर्थदंड: वर्षों की बहस और गवाहियों के तूफान के बाद, दरभंगा सिविल कोर्ट के प्रथम जिला एवं अपर सत्र न्यायाधीश संतोष कुमार पांडेय ने 30 मई 2025 को विपिन राय को दोषी ठहरा दिया। 3 जून को जब सज़ा सुनाई गई तो शब्दों में कानून की गरज थी।

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सजा का विवरण: धारा 302 (हत्या): आजीवन कारावास एवं ₹50,000/- का अर्थदंड धारा 27, शस्त्र अधिनियम: 3 वर्षों का कारावास एवं ₹5,000/- का अर्थदंड सभी सजाएँ एक साथ चलेंगी। यह सजा महज़ कानूनी आदेश नहीं, उस रात की प्रतिध्वनि थी, जो अब अदालत के गलियारों में गूंज रही थी।

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अभियोजन की धारदार पैरवी: एक-एक तर्क, जैसे गवाही की तलवार: इस मुकदमे में अपर लोक अभियोजक विष्णु कांत चौधरी ने कानून की धार को इतना पैना कर दिया कि विपिन की हर दलील खुद उसका गला काटने लगी। उनके सहयोगी मनीष कुमार सिन्हा ने गवाहों की गवाही को सलीके से अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया। वे किसी सर्जन की तरह केस की नब्ज़ पकड़कर उसका पोस्टमार्टम करते रहे हर तथ्य, हर फोरेंसिक साक्ष्य, हर चश्मदीद का बयान सब अदालत के सामने तटस्थ, पर तेज़ थे।

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दोषी कौन? एक बेटा छीनने वाला, और 11 सवाल अनुत्तरित: हालांकि अदालत ने सिर्फ विपिन राय को सज़ा दी, लेकिन पीड़ित परिवार का कहना है कि अपराधियों की संख्या अधिक थी। चंदन राय, अमर कुमार, सुरेंद्र राय और अन्य जिनका नाम प्राथमिकी में दर्ज है पर क्या कार्रवाई हुई, यह अब तक धुंधला है। क्या बाकी दोषी पुलिस की मिलीभगत से छूट गए? क्या दरभंगा की सड़कों पर आज भी कुछ हत्यारे खुली हवा में घूम रहे हैं? ये सवाल प्रशासन और समाज दोनों को कुरेदते हैं।

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दरभंगा की आत्मा कराह उठी, पर न्याय ने मरहम रखा मिथिला की इस सांस्कृतिक नगरी में हत्या कोई पहली नहीं, लेकिन जब मंदिर की छांव में किसी को गोली मारी जाती है, तो अपराध सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं होता यह सामाजिक पतन का प्रतीक बन जाता है। न्याय ने आज यह सन्देश दिया है कि कानून का हंटर भले देर से बरसे, पर जब पड़ता है तो चमड़ी के साथ-साथ आत्मा को भी झकझोर देता है।

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कानून अंधा नहीं है, बस धैर्य मांगता है: सुनील अब इस दुनिया में नहीं है, पर न्याय की यह कड़क दस्तक उसके पिता राम प्रकाश राय के जख्मों पर नमक नहीं, मरहम का काम कर रही है। इस रिपोर्ट के माध्यम से दरभंगा की अदालत, पुलिस और अभियोजन पक्ष को बधाई देना न्याय का अपमान होगा। यह तो वह न्यूनतम कर्म है जिसकी अपेक्षा हर पीड़ित करता है। अब ज़रूरत इस बात की है कि बाकी बचे नामजद अभियुक्तों की भी जवाबदेही तय हो, ताकि दरभंगा की धरती अपराध के आतंक से मुक्त हो सके। नहीं तो अगली चाय की दुकान पर कोई और सुनील बैठेगा... और कोई और बाप फिर एक नई प्राथमिकी में "अपने बेटे को याद" करता मिलेगा।