स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस में फर्जी एडीआरएम की गूंज: दरभंगा में पकड़ा गया नकली अफसर, वर्दी की धौंस, पहचान की नौटंकी और एक सोती हुई व्यवस्था का आईना जब नाम था आलोक कुमार झा और सच्चाई थी दुर्गा कांत चौधरी!

देश की इस धड़कती रेल व्यवस्था में हर रोज़ लाखों लोग चढ़ते हैं, उतरते हैं, मंज़िल की ओर बढ़ते हैं। लेकिन इस व्यवस्था की एक नाजुक नस है भरोसा। जब कोई उस भरोसे को ही पहन कर चलने लगे फर्जी वर्दी, झूठा पदनाम, और नकली रुतबा तो न केवल व्यवस्था शर्मसार होती है, बल्कि समूचा रेल तंत्र आत्ममंथन को विवश हो जाता है। दरभंगा जंक्शन जहां मिथिला की आत्मा सांस लेती है और पटरियों पर उम्मीदें दौड़ती हैं वहीं गुरुवार को एक ऐसा किरदार सामने आया जिसने रेलवे के माथे पर पसीने और जनता की आँखों में सवाल छोड़ दिए. पढ़े पुरी खबर........

स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस में फर्जी एडीआरएम की गूंज: दरभंगा में पकड़ा गया नकली अफसर, वर्दी की धौंस, पहचान की नौटंकी और एक सोती हुई व्यवस्था का आईना जब नाम था आलोक कुमार झा और सच्चाई थी दुर्गा कांत चौधरी!
स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस में फर्जी एडीआरएम की गूंज: दरभंगा में पकड़ा गया नकली अफसर, वर्दी की धौंस, पहचान की नौटंकी और एक सोती हुई व्यवस्था का आईना जब नाम था आलोक कुमार झा और सच्चाई थी दुर्गा कांत चौधरी!

दरभंगा: देश की इस धड़कती रेल व्यवस्था में हर रोज़ लाखों लोग चढ़ते हैं, उतरते हैं, मंज़िल की ओर बढ़ते हैं। लेकिन इस व्यवस्था की एक नाजुक नस है भरोसा। जब कोई उस भरोसे को ही पहन कर चलने लगे फर्जी वर्दी, झूठा पदनाम, और नकली रुतबा तो न केवल व्यवस्था शर्मसार होती है, बल्कि समूचा रेल तंत्र आत्ममंथन को विवश हो जाता है। दरभंगा जंक्शन जहां मिथिला की आत्मा सांस लेती है और पटरियों पर उम्मीदें दौड़ती हैं वहीं गुरुवार को एक ऐसा किरदार सामने आया जिसने रेलवे के माथे पर पसीने और जनता की आँखों में सवाल छोड़ दिए।

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जब नकली अफसर ने थामा एच-वन कोच, और शुरू हुआ रेल सुरक्षा बल का सच्चाई अभियान: 6 जून, गुरुवार की सुबह, गाड़ी संख्या 12562 स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस जब दरभंगा की सरज़मीं पर पहुँची, तो उसका एच-1 (फर्स्ट एसी) कोच एक अदृश्य अतिक्रमण का गवाह बन चुका था। एक युवक, भारी आवाज़ में आदेश देता, रौब झाड़ता, और खुद को "समस्तीपुर रेल मंडल का एडीआरएम - आलोक कुमार झा" बताता हुआ यात्रियों और कर्मचारियों को डांटने में व्यस्त था।

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लेकिन जब मंडल सुरक्षा नियंत्रण कक्ष, समस्तीपुर को इसकी भनक लगी तो दरभंगा आरपीएफ और राजकीय रेल पुलिस ने संयुक्त कार्रवाई का बिगुल फूँका। रेल पुलिस के अनुभवी निरीक्षक पुखराज मीणा के नेतृत्व में एक सटीक टीम तैयार हुई जैसे फर्ज़ की तलवार झूठ के किले पर चलने को बेताब हो।

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पर्दाफाश न चिह्न, न पहचान, सिर्फ अहंकार: जैसे ही ट्रेन दरभंगा प्लेटफॉर्म पर रुकी, टीम ने उसे चारों ओर से घेर लिया। जब उस व्यक्ति से पहचान पत्र मांगा गया तो वह बौखला गया। वह चिल्लाने लगा "तुम्हें नहीं पता मैं कौन हूँ! मैं तुम्हें सस्पेंड करवा दूँगा!"

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लेकिन सच्चाई एक शांत नदी होती है उसे न झूठ के पत्थर रोक सकते हैं, न दंभ की लहरें। सख्ती से पूछताछ हुई। उसका चेहरा झुका, आँखें काँपीं, और फिर सच उगल दिया गया। "मैं कोई अफसर नहीं... मेरा नाम दुर्गा कांत चौधरी है... मैं मधुबनी, सकरी थाना क्षेत्र, वार्ड-17 का रहने वाला हूँ..." इस कबूलनामे के साथ ही, उसके चेहरे से ‘अधिकार’ का नकाब उतर चुका था।

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शिकायत और केस कानूनी रेल की पटरी पर चढ़ा फर्जी का फर्ज: घटना को गंभीरता से लेते हुए CTETI दरभंगा के अधिकारी चंदेश्वर राय ने तत्काल लिखित शिकायत सौंपी। आरपीएफ प्रभारी निरीक्षक पुखराज मीणा ने अभियुक्त के विरुद्ध क़ानूनी कार्रवाई शुरू करते हुए मामला दर्ज कर दिया है। अब उसे रेलवे न्यायालय, समस्तीपुर में प्रस्तुत किया जाएगा जहाँ कानून की सच्ची पटरियों पर इस ‘जाली अफसर’ की गाड़ी रुकेगी।

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प्रश्न क्या केवल दुर्गा कांत ही दोषी है? या व्यवस्था की लापरवाही भी बराबर की हिस्सेदार है? इस घटना से एक गहरा प्रश्न उठता है। क्या कोई आम नागरिक इतनी हिम्मत से वर्दी और पदनाम का नाटक कर सकता है, यदि व्यवस्था की आंखों में नींद न हो? क्या रेलवे के हर स्टेशन पर वर्दीधारियों की पहचान सत्यापन की कोई तकनीक नहीं होनी चाहिए? जब व्यवस्था की आंख बंद हो, तो ठग अक्सर ‘आईएएस’ बन जाते हैं, और मासूम यात्री उन्हें सलाम ठोकते हैं।

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पुराने किस्से जब बिहार की पटरियों पर फरेब ने वर्दी पहनी थी: बिहार में यह घटना कोई पहली नहीं। 2022 में गया जी स्टेशन पर एक व्यक्ति फर्जी डीआरएम बनकर पकड़ा गया था। पटना जंक्शन पर भी एक युवक खुद को 'रेल मंत्रालय का विशेष दूत' बताकर फ्री यात्रा करता मिला था। मुजफ्फरपुर में भी टिकट निरीक्षक बन कर लूटपाट करने वाले गिरोह का भंडाफोड़ हुआ था। हर बार चेहरा बदलता है, स्क्रिप्ट वही रहती है झूठ, रुतबा, और व्यवस्था की चुप्पी।

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प्रशासन की भूमिका तारीफ़ के पात्र हैं दरभंगा के अफसर: इस पूरे घटनाक्रम में जो सबसे सुकून देने वाली बात है, वह है आरपीएफ दरभंगा की तत्परता और सटीक कार्रवाई। निरीक्षक पुखराज मीणा और उनकी टीम ने जिस सूझबूझ से सच्चाई की गुत्थी सुलझाई, वह काबिल-ए-तारीफ़ है।

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जब रेल व्यवस्था को आईना दिखाती है एक फर्जी वर्दी: इस घटना से यह सिद्ध हो गया कि रेलवे में न केवल गाड़ियों की निगरानी, बल्कि इंसानों की भी निगरानी जरूरी है। हर वो व्यक्ति जो रौब, वर्दी या झूठी पहचान के सहारे जनता को गुमराह करता है वह केवल अपराधी नहीं, बल्कि लोकतंत्र और व्यवस्था पर एक बदनुमा दाग है। दरभंगा की पटरियों पर आज एक ट्रेन नहीं रुकी थी... रुका था एक झूठ, थमा था एक दंभ, और शुरू हुई थी सच्चाई की एक नई यात्रा...

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अगर झूठ को वर्दी पहनने की आदत लग जाए, तो सच्चाई को तलवार उठानी ही पड़ती है… रेलवे केवल एक यात्रा का माध्यम नहीं है, यह उस व्यवस्था का प्रतीक है जो पूरे देश को जोड़ती है। और जब उस व्यवस्था के चेहरे पर कोई फरेब नकली मुस्कान लेकर उतरता है, तो यह सिर्फ़ एक व्यक्ति की गलती नहीं रह जाती यह एक सांस्कृतिक असावधानी, एक प्रशासनिक ढीलापन और एक सामाजिक चूक बन जाती है।

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क्या हमारी व्यवस्था इतनी लाचार हो चुकी है कि एक युवक एसी कोच में बैठकर खुद को एडीआरएम बताता है और कोई सवाल नहीं करता? आज सवाल दुर्गा कांत चौधरी पर नहीं है, सवाल हम सब पर है हमारी आँखों पर, हमारी चेतना पर और उस भरोसे पर, जो वर्दी देख कर झुक जाता है। अब समय आ गया है कि रेल व्यवस्था, सुरक्षा बल और समाज तीनों आत्मनिरीक्षण करें। क्योंकि अगली बार फर्जी अफसर ट्रेन में नहीं, शायद रेलवे बोर्ड की मीटिंग में मिल जाए।