दरभंगा में आम की कैरेट अब सिर्फ़ फल नहीं ढोते, अब वो शराबबंदी की चूकी नीतियों का बोझ भी उठाते हैं लेकिन जब SSP के निर्देश और केवटी थाना की मुस्तैदी ने उन बोतलों को बीच राह पकड़ लिया, तब हमारी रिपोर्ट ने सिर्फ़ शराब नहीं, उस पूरे सिस्टम की बेबसी भी उघाड़ दी!
जब समाज सो रहा था, तब पुलिस जाग रही थी यह वाक्य अब पोस्टरों का सौंदर्यशास्त्र भर नहीं रहा। कभी-कभी यह ज़मीनी हकीकत में उतरकर अपने होने की सार्थकता भी सिद्ध करता है। केवटी में दरभंगा पुलिस द्वारा की गई शराब बरामदगी की यह घटना भी उसी 'कभी-कभी' की बानगी है। लेकिन इस घटना की तह में उतरिए, तो यह सिर्फ विदेशी शराब की बरामदगी नहीं, यह हमारे तंत्र, नीति, व्यापार, नैतिकता और सामाजिक गिरावट का फ्लैशबैक भी है जिसे साहित्यिक भाषा में कहा जाए तो सभ्यता के आम के बीच सड़ती हुई आत्मा की खोज. पढ़े पुरी खबर.......

दरभंगा: जब समाज सो रहा था, तब पुलिस जाग रही थी यह वाक्य अब पोस्टरों का सौंदर्यशास्त्र भर नहीं रहा। कभी-कभी यह ज़मीनी हकीकत में उतरकर अपने होने की सार्थकता भी सिद्ध करता है। केवटी में दरभंगा पुलिस द्वारा की गई शराब बरामदगी की यह घटना भी उसी 'कभी-कभी' की बानगी है। लेकिन इस घटना की तह में उतरिए, तो यह सिर्फ विदेशी शराब की बरामदगी नहीं, यह हमारे तंत्र, नीति, व्यापार, नैतिकता और सामाजिक गिरावट का फ्लैशबैक भी है जिसे साहित्यिक भाषा में कहा जाए तो "सभ्यता के आम के बीच सड़ती हुई आत्मा की खोज।"
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आम के कैरेटों में लिपटी हुई सभ्यता: कहते हैं आम भारत का राष्ट्रीय फल है मिठास और रस का प्रतीक। पर अब यही आम, शराब की डिब्बों पर चादर बन गया। यह कैसा विकास है, जहां आम फल नहीं, ढाल बन गया? जहां किसी बच्चे को आम का कैरेट देखकर लार नहीं, डर आ जाए कि कहीं अंदर फिर कोई 'रॉयल' न निकले! यह दृश्य मात्र दृश्य नहीं, एक प्रश्न है हमारे व्यवस्था के मुंह पर "क्यों इतने वर्षों बाद भी हम शराब की बोतलों को आम की टोकरियों में छिपाकर लाते हैं? क्या यह प्रशासन की जीत है, या समाज की चुप्पी?"
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शराब माफिया की सभ्यता और कानून की चुप्पी: शराबबंदी कानून बिहार में वर्षों से लागू है, पर इस कानून का सच भी किसी भरे हुए कार्टून की तरह 'लेबल' में चमकता है और अंदर से खोखला होता जा रहा है। रॉयल व्हिस्की और 7 PM नाम से ही अंदाज़ा लगाइए, कितना 'सभ्य' और 'शहरी' तस्कर रहा होगा! उसकी बोतलों की घुंघुरू की तरह खनकती आवाज़ें केवटी के रातों की खामोशी को चीरती होंगी। पर तब पुलिस कहां थी? जब 1074 लीटर शराब पार हो रही थी, क्या कोई चेकपोस्ट भी शराब के नशे में था? या फिर शराब से भी ज़्यादा नशे में थी व्यवस्था की अनदेखी?
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दरभंगा पुलिस का एक्शन आशा की झलक या अपवाद का नमूना? केवटी थाना की यह कार्रवाई स्वागत योग्य है। पुलिस ने जिस मुस्तैदी से वाहन को रोका, शराब को जब्त किया, और प्राथमिकी दर्ज की वह सराहनीय है। पर क्या यह रोज़ का नियम बनेगा या आज की 'हैडलाइन' बनकर कल की 'फाइल' में दब जाएगा?
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एसएसपी जगुनाथ रेड्डी जलारेड्डी की कोशिशों को देखकर यह विश्वास जगता है कि दरभंगा में एक ईमानदार प्रयास जारी है, पर सवाल यह है "क्या यह प्रयास अकेले पर्याप्त है?"
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कानून के लाठी के नीचे नीति की चुप्पी: एक पिकअप वैन, 124 कार्टून शराब, और फिर पुलिस की प्रेस रिलीज़ यह कहानी जब हम रिपोर्ट में लिखते हैं तो लगता है जैसे सच बोल रहे हैं। पर ज़रा सोचिए... ये शराब आई कहां से? सीमा पार की हर पोस्ट क्या सच में सतर्क थी? या फिर यह सब मिलकर किया गया एक व्यापारिक गठजोड़ है जिसमें 'वसूली', 'बांटवारा' और 'भूल' तीन स्तंभ हैं? यदि ईमानदारी सिर्फ एक थाना तक सीमित रह जाए और शराब तस्कर 'रूट' बदलते रहें, तो क्या यह कार्रवाई सच में प्रभावी कही जाएगी?
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समाज के हिस्से की ज़िम्मेदारी और पत्रकारिता की पीड़ा: यह घटना उन तमाम अभिभावकों के लिए एक अलार्म है जो सोचते हैं कि "हमारा बेटा तो सिर्फ आम खरीदने गया है।" अब आम खरीदने के बहाने शराब की सप्लाई हो रही है, और समाज मूकदर्शक है। पत्रकार के रूप में जब हम यह लिखते हैं, तो सच मानिए, शब्दों से ज़्यादा आंसू बहते हैं। क्योंकि हम जानते हैं कि कल यह खबर अखबार के तीसरे पन्ने पर छोटी सी कॉलम बन जाएगी, और शराब माफिया नया रास्ता खोज लेगा।
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जब आम की पेटी से शराब निकलने लगे, तो समझ लीजिए समाज में सिर्फ शराबबंदी कानून नहीं टूटा है बल्कि नैतिकता की रीढ़ भी चटक चुकी है। केवटी की यह घटना एक 'रेड' नहीं, एक 'रिवील' है। यह उजागर करती है कि अब नशा सिर्फ बोतलों में नहीं, नीतियों में भी घुल चुका है। और जब तक पुलिस के इस तरह के ऑपरेशन व्यवस्था का हिस्सा नहीं, बल्कि अपवाद रहेंगे तब तक आम में शराब और समाज में धोखे की मिलावट जारी रहेगी।
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गश्ती की गूंज और कानून की लौ: केवटी थाना की बड़ी सफलता: जब व्यवस्था नींद में हो, तब गश्ती का मतलब सिर्फ गाड़ी घुमाना होता है। लेकिन केवटी थाना की पुलिस टीम ने इस परिभाषा को पूरी तरह बदल दिया। यह कोई आम रात नहीं थी। यह वह रात थी जब इंस्पेक्टरों की आँखों में नींद नहीं, कर्तव्य जाग रहा था।124 कार्टूनों में बंद 1074 लीटर शराब को अगर सड़क पर गिरा दिया जाता, तो शायद मिट्टी भी सोंधी नहीं, नशे में डूब जाती। लेकिन इससे पहले कि कोई पिकअप अपने गंतव्य तक पहुँचे, केवटी थाना की गश्ती टीम ने समय को पकड़ लिया और समय ही नहीं, तस्करी की साँसे भी।
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इस पूरे अभियान की सफलता कई वजहों से 'बड़ी' मानी जा रही है: तस्करों का पैटर्न समझना और पकड़ना आसान नहीं था। शराब को आम के कार्टूनों में छिपाना बताता है कि सामने वाला कितना चतुर और योजनाबद्ध था। इसके बावजूद पुलिस की सूझबूझ ने इस ट्रिक को ध्वस्त कर दिया। केवटी थाना क्षेत्र से इतनी बड़ी मात्रा में शराब की बरामदगी पहली बार नहीं, लेकिन इस तरह की रणनीतिक कार्रवाई बेहद कम देखने को मिलती है। मतलब साफ है थाना सक्रिय है, सजग है और साहसी भी।
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पुलिस के लिए यह एक मनोबल बढ़ाने वाला क्षण है। क्योंकि जब पूरा तंत्र शराबबंदी को लेकर सवालों के घेरे में रहता है, तब ऐसी कार्रवाई पुलिस की ईमानदारी पर मुहर लगाती है। गश्ती नहीं, गवाही थी यह कि अब हर चुप्पी के नीचे नींद नहीं, एक लड़ाई पल रही है। यह सफलता इस बात की गवाही है कि अगर थाना-स्तर पर भी अधिकारी जिम्मेदारी समझें, तो कानून सिर्फ किताबों में नहीं, सड़कों पर भी दिख सकता है।