"सिंदूर की अवमानना का विध्वंसकारी उत्तर: जब भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के वज्र प्रहार से आतंक के अड्डों को जलाया, और दरभंगा की धरती से उठी राष्ट्रगौरव की अग्निज्वाला!"
ये कोई साधारण सवेरा नहीं था... ये सूरज उस दिन भारतवर्ष के माथे पर अपनी रोशनी से नहीं, बलिदानियों के रक्त से सिंदूर रचकर उगा था। यह उन माँओं के आँसुओं की गरिमा का उत्तर था, जिनके लालों को पाकिस्तान की धरती पर धर्म पूछ कर गोलियों से भूना गया। यह प्रतिशोध की वह चिंगारी थी, जिसे इतिहास अब 'ऑपरेशन सिंदूर' के नाम से लिखेगा. पढ़े पुरी खबर......

बिहार/दरभंगा: ये कोई साधारण सवेरा नहीं था... ये सूरज उस दिन भारतवर्ष के माथे पर अपनी रोशनी से नहीं, बलिदानियों के रक्त से सिंदूर रचकर उगा था। यह उन माँओं के आँसुओं की गरिमा का उत्तर था, जिनके लालों को पाकिस्तान की धरती पर धर्म पूछ कर गोलियों से भूना गया। यह प्रतिशोध की वह चिंगारी थी, जिसे इतिहास अब 'ऑपरेशन सिंदूर' के नाम से लिखेगा।
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जब भारत की वायुसीमा से परे, पाकिस्तान की छाती में भारतीय सेना के मिसाइलों ने गूंजना शुरू किया, तब दुनिया की नींद टूटी। और जब पुष्टि हुई कि भारत ने 21 आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद कर दिया है, तो यह खबर नहीं रही, यह हर हिंदुस्तानी के रग-रग में दौड़ता हुआ राग बन गई राग राष्ट्रगौरव का, राग प्रतिशोध का।
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दरभंगा में गूंजा राष्ट्रगान, खनका शंख, बिखरा गुलाल: मिथिला की धरती, जिसे अब भी रामायण की स्मृति संजोए रखने का सौभाग्य प्राप्त है, उस दरभंगा की गलियों में जैसे ही खबर आई कि 'मिशन सिंदूर' सफल हुआ, उत्सव की ध्वनि बज उठी। यहाँ के राज परिसर में न ढोल बजे, न बाजा… फिर भी जैसे हर दिल नगाड़ा बन गया था।
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युवाओं की टोली ने भगवा ध्वज थाम कर जब विजय जुलूस निकाला, तो हवा भी 'जय श्रीराम' और 'वंदे मातरम्' के स्वर में डोलने लगी। मिठाइयों के दौर चले, लाल गुलाल की वर्षा हुई और हर चेहरा इस बात का प्रतीक बन गया कि "भारत अब वह सोया हुआ सिंह नहीं, जिसने अपनी आँखें खोल दी हैं।"
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विश्व हिंदू परिषद के जिला मंत्री राजीव प्रकाश मधुकर ने कहा, "यह सिर्फ सैन्य कार्रवाई नहीं, यह हर उस माँ के आँसू का प्रतिशोध है, जिसे पाकिस्तान ने उसके लाल से जुदा किया। यह सिंदूर की रक्षा में गूंजा भारत का शौर्य है। अब हम सिर्फ सहते नहीं, जवाब देते हैं – और वह भी चीरते हुए!"
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शब्दों से नहीं, अब शस्त्रों से बात होगी: प्रियांशु झा
जुलूस में युवा प्रियांशु झा ने आँखों में अंगारों की लपट लिए कहा"ऑपरेशन सिंदूर, पाकिस्तान के गाल पर तमाचा नहीं, उसकी आत्मा पर खरोंच है। यह उन मंदिरों का जवाब है जिन्हें बम से उड़ाया गया। यह उन बेटियों के लिए संदेश है, जिनके सिंदूर को मिटाने की कोशिश की गई। अब भारत को ललकारना मतलब अपनी कब्र खुद खोदना है।"
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जो धर्म पूछकर मारते हैं, अब उन्हें पहचान कर जलाया जाएगा: इस रिपोर्ट का सबसे भावुक पक्ष था—लोगों की वो हुंकार जो सिर्फ पाकिस्तान के लिए नहीं थी, बल्कि उन देशी गद्दारों के लिए भी थी, जो 'भारत माता की जय' बोलने में हिचकते हैं। "हमारी सहनशीलता अब हमारे राष्ट्रविरोधियों की ढाल नहीं बनने दी जाएगी,"राजीव प्रकाश ने गरजते हुए कहा। "जो इस देश में रहकर इस देश की जड़ें काटना चाहते हैं, उन्हें अब सिंदूर नहीं, अंगारे दिखेंगे।"
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नाम नहीं, भावनाओं की फ़ौज उमड़ी थी: इस विजय जुलूस में शामिल लोगों की कोई जाति नहीं थी, कोई पार्टी नहीं थी—बस एक ही धर्म था: राष्ट्रधर्म।
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वहाँ मुन्ना ठाकुर, विकास सन्नी, पंकज वाड़ी, बिक्कू कुमार, सौरभ सुमन, चेतन बारी, पूजा, आरती, सीता, वर्षा, जयंत, अजय... सब एक स्वर में 'भारत माता की जय' के घोष में लिप्त थे। यह नजारा वही था जो आज़ादी के आंदोलन के दौरान होता था जैसे कोई अदृश्य भगतसिंह आज फिर से इन जनमानस में उतर आया हो।
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भारत बदल चुका है... और ये शुरुआत है: मोदी सरकार की इस कार्रवाई ने सिर्फ आतंकी ठिकानों को नहीं, पाकिस्तान की छवि को भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर रौंद कर रख दिया है। यह अब सिर्फ भारत की सीमा की रक्षा नहीं, आत्मसम्मान की वापसी है। 'ऑपरेशन सिंदूर' अब केवल एक नाम नहीं रहा, यह एक विचार बन गया है कि अब भारत सहन नहीं करेगा, अब वह अपनी पीठ नहीं दिखाएगा, अब वह रणचंडी के रूप में प्रतिकार करेगा।
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"हर बार हम शांति का राग अलापें, यह जरूरी नहीं… कभी-कभी वज्रधारी कृष्ण भी युद्धभूमि में उतरते हैं। और जब सिंदूर पर आच आई, तो भारत ने चुप्पी नहीं, चिंगारी से उत्तर दिया।" यह कहानी अभी खत्म नहीं हुई… यह तो शुरुआत है उस भारत की, जिसकी आंखें अब खुल चुकी हैं… और जिसकी प्रतीक्षा अब कोई नहीं करेगा—बल्कि जिसका ललकार सब महसूस करेंगे।