सड़क जाम से उठी आग, लोहे की रॉड से बरपा कहर दरभंगा बस स्टैंड पर घायल पुलिसकर्मी, भागता अपराधी और लोहिया चौक तक फैली दहशत

लहेरियासराय थाना क्षेत्र के बस स्टैंड पर बुधवार की शाम जो हुआ, वह महज़ एक मारपीट या सड़क जाम की बहस नहीं थी। वह दरअसल उस वर्दी की इज़्ज़त पर हमला था, जो जनता की सुरक्षा का प्रतीक है। वह क़ानून और अपराध के बीच की महीन रेखा का ध्वंस था। धूल, पसीना और खून से सनी वह सड़क गवाह बनी जहाँ एक ओर ऑटो चालक की ज़िद और हिंसक प्रवृत्ति खड़ी थी, वहीं दूसरी ओर वर्दीधारी पुलिसकर्मी अपने लहूलुहान माथे पर क़ानून का भार उठाए हुए थे. पढ़े पुरी खबर.......

सड़क जाम से उठी आग, लोहे की रॉड से बरपा कहर दरभंगा बस स्टैंड पर घायल पुलिसकर्मी, भागता अपराधी और लोहिया चौक तक फैली दहशत
वास्तविक कैमरे से नहीं उतरी यह तस्वीर, बल्कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता की कल्पना है—खून और धूल से लथपथ कानून की उस शाम को केवल समझाने के लिए प्रस्तुत।

दरभंगा: लहेरियासराय थाना क्षेत्र के बस स्टैंड पर बुधवार की शाम जो हुआ, वह महज़ एक मारपीट या सड़क जाम की बहस नहीं थी। वह दरअसल उस वर्दी की इज़्ज़त पर हमला था, जो जनता की सुरक्षा का प्रतीक है। वह क़ानून और अपराध के बीच की महीन रेखा का ध्वंस था। धूल, पसीना और खून से सनी वह सड़क गवाह बनी जहाँ एक ओर ऑटो चालक की ज़िद और हिंसक प्रवृत्ति खड़ी थी, वहीं दूसरी ओर वर्दीधारी पुलिसकर्मी अपने लहूलुहान माथे पर क़ानून का भार उठाए हुए थे।

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सड़क जाम से उपजा तूफ़ान: शहर के सबसे व्यस्त बस स्टैंड पर जाम लगना कोई नई बात नहीं। पर उस दिन जब थाना की गश्ती टीम सड़क खोलने पहुँची, तो हालात ने अचानक विद्रोही रूप ले लिया। पुलिस ने महज़ इतना कहा था कि ऑटो चालक अपना वाहन हटाए ताकि जनता को राहत मिल सके। लेकिन पतोर थाना क्षेत्र के अकबरपुर का रहने वाला मो. एजाज, जो पहले से ही अपराध की परतों में लिपटा हुआ था, ने यह सामान्य-सा निर्देश अपनी ‘आज़ादी’ पर हमला मान लिया।

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लोहे की रॉड और घायल वर्दी: कहते हैं कि अपराधी जब ज़िद पर उतरता है तो वह हथियार की तलाश नहीं करता, बल्कि आस-पास की हर चीज़ उसके लिए हथियार बन जाती है। एजाज ने भी अपने ऑटो से एक लोहे की मोटी रॉड निकाली और पुलिस कर्मियों पर हमला कर दिया।दरोगा राजेश कुमार रंजन लहूलुहान हो गए। एएसआई बालाकांत कुमार घायल होकर ज़मीन पर गिर पड़े। सिपाही अनिरुद्ध कुमार के माथे पर चोट के निशान दर्ज हो गए। सड़क पर अफरातफरी फैल गई। आम जनता ने भीड़ का रूप ले लिया कुछ तमाशबीन, कुछ डरे हुए, और कुछ पत्थर की तरह खामोश।

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भागता अपराधी, पीछा करती वर्दी: हमले के बाद आरोपी ऑटो चालक को क़ाबू में करने के लिए कई पुलिस कर्मियों को मशक्कत करनी पड़ी। किसी फ़िल्मी दृश्य की तरह वह थाना तक लाया गया, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से वहाँ से भी पुलिसकर्मियों को धक्का देकर वह भाग निकला। वर्दी की पकड़ से छूटता हुआ वह अपराधी लोहिया चौक की गलियों तक दौड़ा, और उसके पीछे 15–20 पुलिसकर्मी पसीना बहाते रहे।आख़िरकार शहर की सड़कों पर जब पुलिस ने चारों ओर से घेराबंदी की और हथियारों का भय दिखाया, तब जाकर कानून की जंजीरें उस पर चढ़ सकीं।

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अतीत का काला साया: दरभंगा की इस घटना ने यह भी उजागर कर दिया कि अपराध महज़ सड़क की बहस से जन्म नहीं लेता, बल्कि उसका बीज पहले से भीतर छुपा रहता है। आरोपी एजाज पहले भी अपराध की दुनिया का मेहमान रह चुका था। दो वर्ष पूर्व पत्नी की हत्या मामले में उसे डेढ़ वर्ष तक जेल की सलाखों के पीछे रहना पड़ा था। नौ महीने पहले ही वह जेल से बाहर आया था। लेकिन समाज सुधार की जगह उसने हिंसा को ही अपनी आदत बना लिया।

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वर्दी का लहू और कानून की परीक्षा: इस घटना ने न केवल तीन पुलिसकर्मियों को घायल किया, बल्कि पूरे पुलिस तंत्र पर सवाल खड़े कर दिए। आखिर क्यों एक अपराधी थाना परिसर से भागने में सफल हुआ? क्यों 20 पुलिसकर्मी मिलकर भी एक ऑटो चालक को काबू में करने में इतनी मशक्कत करते रहे? क्या यह प्रशासन की कमज़ोरी है या अपराधियों का बढ़ता दुस्साहस? दरभंगा की गलियाँ यह प्रश्न हवा में उछाल रही हैं।

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समाज का आईना: यह दृश्य महज़ पुलिस और अपराधी की लड़ाई नहीं थी, बल्कि हमारे समाज के आईने की दरार भी थी। भीड़ खड़ी रही, किसी ने वीडियो बनाया, किसी ने तमाशा देखा। लेकिन उस घायल वर्दी के लिए, जो कभी जनता के लिए ढाल बनती है, एक भी हाथ सहारे के लिए आगे नहीं आया।गुरुवार की सुबह आरोपी एजाज को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। पर सवाल यही है कि क्या यह हिरासत समाज को राहत देगी? या कुछ महीनों बाद वही अपराधी फिर किसी सड़क पर खड़ा होकर कानून और वर्दी का मज़ाक उड़ाएगा?

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बस स्टैंड की उस शाम ने यह साबित कर दिया कि कानून और अपराध के बीच संघर्ष अब केवल अदालतों और जेल की दीवारों तक सीमित नहीं रहा। वह सड़क पर, धूल में, और खून में उतर चुका है। घायल वर्दी हमें पुकार रही है क्या हम अब भी सुरक्षित हैं? या कानून केवल एक थका हुआ सिपाही है, जो ज़मीन पर गिरकर भी जनता की रक्षा का सपना देख रहा है?