संस्कृत सिर्फ भाषा नहीं… संस्कृति, विज्ञान, तार्किक क्षमता और अन्य भाषाओं की प्राण भी है: प्रतिकुलपति
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग के तत्त्वावधान में "ज्ञान- विज्ञान के क्षेत्र में मिथिला एवं कश्मीर का योगदान : संस्कृत वाङ्मय के परिप्रेक्ष्य" में द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आज विश्वविद्यालय के जुबली हॉल में उद्घाटन हुआ। पढ़ें पूरी खबर
दरभंगा:- ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग के तत्त्वावधान में "ज्ञान- विज्ञान के क्षेत्र में मिथिला एवं कश्मीर का योगदान : संस्कृत वाङ्मय के परिप्रेक्ष्य" में द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आज विश्वविद्यालय के जुबली हॉल में उद्घाटन हुआ, जिसमें प्रति- कुलपति, कुलसचिव, प्रो गोविंद चौधरी, प्रो राधाकांत ठाकुर, संकायाध्यक्ष, विभागाध्यक्ष, प्रो सुरेश्वर झा, डा विनय कुमार मिश्र, डा कामेश्वर पासवान, डा आर एन चौरसिया, डा ममता स्नेही, प्रो बैजनाथ मिश्र, डॉ पंकज मिश्र, प्रो संजय झा, डा शशिकांत पांडे, डा ज्योति प्रभा, प्रो रामजीवन सिंह, प्रो विनोद कुमार चौधरी, डा बैजू चौधरी, डा रामप्रीत राय सहित 250 से अधिक व्यक्तियों ने भाग लिया।
सम्मेलन के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रति कुलपति प्रोफेसर डॉली सिन्हा ने सम्मेलन के विषय को अत्यंत व्यापक एवं प्रासंगिक बताते हुए कहा कि संस्कृत भारतवर्ष की मूल भाषा है जो अत्यंत समृद्ध एवं वैज्ञानिक है, जिसका साहित्य अति विशाल है। नयी शिक्षा नीति में संस्कृत सहित सभी क्लासिकल भाषाओं को काफी महत्व दिया गया है। युवा पीढ़ी संस्कृत को बोधगम्य एवं सर्वजन सुलभ बनाने का सार्थक का प्रयास करें। उन्होंने कहा कि सामान्य लोग मानते हैं कि संस्कृत पूजा- पाठ की भाषा मात्र है, पर संस्कृत साहित्य में 95 प्रतिशत बातें ज्ञान- विज्ञान की हैं। विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रोफेसर मुश्ताक अहमद ने कहा कि संस्कृत सिर्फ वेद- पुराण, कर्मकाण्ड, वर्ग- धर्म की ही नहीं है, बल्कि यह काफी व्यापक एवं गौरवशाली भाषा है।
आज संस्कृत की महत्ता अधिक बढ़ रही है, क्योंकि यह हर क्षेत्र, धर्म, जाति व संप्रदाय के लोगों द्वारा पढी जा रही है। किसी भी भाषा का एक भौगोलिक क्षेत्र होता है, जहां रहने वाले सभी लोग उस भाषा को बोलते और समक्षते हैं। उन्होंने दारा शिकोह का उदाहरण देते हुए कहा कि वे 12 वर्षों तक संस्कृत का अध्ययन कर 100 से अधिक श्रेष्ठ पुस्तकों का फारसी भाषा में अनुवाद किया था जो आज भी सुरक्षित है। संस्कृत भाषा में ज्ञान के साथ ही विज्ञान की भी विस्तार से चर्चा है। मुख्य अतिथि के रूप में नेपाल से आए प्रोफ़ेसर गोविंद चौधरी ने संस्कृत की वर्तमान स्थिति की चर्चा करते हुए कहा कि आज अधिकतर लोग देवभाषा संस्कृत को छोड़कर अंग्रेजी भाषा की ओर उन्मुख हो रहे हैं तो फिर संस्कृत की रक्षा कैसे होगी? उन्होंने मिथिला की ज्ञान- विज्ञान परंपरा की चर्चा करते हुए कहा कि दक्षिण भारत से शंकराचार्य को भी शास्त्रार्थ करने के लिए मिथिला आना पड़ा था।
मुख्य वक्ता के रूप में केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, तिरुपति के पूर्व कुलपति प्रोफेसर राधाकांत ठाकुर ने कहा कि मिथिला उर्वर भूमि रही है। यहां अनेकानेक विद्वान उत्पन्न होते रहे हैं। संस्कृत हमारी संस्कृति एवं संस्कार की भाषा है, जिसके ज्ञान के बिना वर्तमान विज्ञान भी पूर्ण नहीं माना जा सकता है। विश्वविद्यालय के मानविकी संकायाध्यक्ष प्रोफेसर रमण झा ने कहा कि संस्कृत समस्त आर्य भाषाओं की जननी है जो मुख्यतया विद्वानों की भाषा रही है। मिथिला में संस्कृत सीखने के लिए पूरे देश से लोग आते रहे हैं। संस्कृत ज्ञान के बिना किसी भाषा में सौन्दर्य नहीं आ सकता है। लोक भाषा प्रचार समिति, बिहार के अध्यक्ष डा जयशंकर झा ने कहा कि मिथिला व कश्मीर का ज्ञान- विज्ञान के क्षेत्र में अत्यधिक योगदान रहा है। यह प्राचीन संस्कृत- विद्या के केन्द्र थे। आज संस्कृत वस्तुतः सबकी भाषा है।
उन्होंने महाकवि कल्हन लिखित राजतरंगिणी की चर्चा करते हुए कहा कि इसमें कश्मीरी- राजवंशों के 3500 वर्षों का क्रमबद्ध इतिहास निबद्ध है। बीआरबी कॉलेज, समस्तीपुर के प्रधानाचार्य डा बीरेन्द्र कुमार चौधरी ने बताया कि मिथि राजा के नाम पर मिथिला नामकरण हुआ है जो जगतजननी सीता की जन्मभूमि है। यहां याज्ञवल्क्य, वाचस्पति, जनक आदि विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक हुए हैं। सर्वमंगला वेद- विज्ञान शोध संस्थान, सिमरिया के डा घनश्याम झा ने कहा कि मिथिला वैदिक रिचाओं की प्रयोगशाला है। मिथिला का सिमरिया आदि कुंभस्थली है, जहां प्राचीन काल में समुद्रमंथन हुआ था। 1917 से यहां कुंभमेला का आयोजन प्रारंभ हुआ है। इस अवसर पर जे एन कॉलेज, नेहरा के प्रधानाचार्य डा अमरनाथ प्रसाद व आर सी एस कॉलेज, मंझौल के प्रधानाचार्य डा सत्यनारायण पासवान को अंबेडकर सम्मान, आर बी कॉलेज, दलसिंहसराय के प्रधानाचार्य डा संजय झा को कल्हन सम्मान, डा पंकज मिश्र व प्रो बैजनाथ मिश्र को कालिदास सम्मान, प्रो रामजीवन मिश्र को आर्यभट्ट सम्मान, स्वामी चिदात्मन जी महाराज को वैशम्यपायन सम्मान तथा बीआरबी कॉलेज, समस्तीपुर के प्रधानाचार्य डा बीरेन्द्र कुमार चौधरी को कालिदास सम्मान से सम्मानित किया गया।
अतिथियों का स्वागत करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो जीवानन्द झा ने बताया कि इस आयोजन में स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग के साथ कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा, स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग, स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग, जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा, स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग, आर के कॉलेज, मधुबनी, लोक भाषा प्रचार समिति, बिहार शाखा तथा केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, तिरुपति शामिल हैं। सम्मेलन में विभाग द्वारा तैयार स्मारिका, डा पंकज मिश्र लिखित मंडल मीमांसा तथा ज्ञान- विज्ञान के क्षेत्र में मिथिला व कश्मीर का योगदान पुस्तक का विमोचन किया गया। आगत अतिथियों का स्वागत पाग- चादर, किट तथा मोमेंटो से किया गया। उद्घाटन सत्र के उपरांत प्रो राधाकांत ठाकुर, प्रो वैद्यनाथ मिश्र, प्रो संजय झा तथा डा पंकज मिश्र की अध्यक्षता में तकनीकी संत्रों का आयोजन किया गया। डा कृष्णकांत झा के संचालन में आयोजित उद्घाटन सत्र में आयोजन सचिव डा नारायण झा ने धन्यवाद ज्ञापन किया।