बहेड़ी कांड पर DIG मेश्राम का वज्र प्रहार: थानेदार पद से मुक्त, अफसरों पर कार्रवाई; दरभंगा पुलिस को अब मीटिंग नहीं, मैदान में उतरने का हुक्म!
बात बहेड़ी की है… पर गूंज पूरे दरभंगा में सुनाई दी। एक कांड, एक चूक, और एक सख्त महिला अफसर तीनों ने मिलकर उस सिस्टम की चीर-फाड़ कर दी, जो वर्षों से चाय की प्यालियों में न्याय घोल रहा था। डीआईजी स्वप्ना गौतम मेश्राम अब महज़ एक अफसर नहीं रहीं, वे दरभंगा की बेचैन रातों की उम्मीद बन गई हैं। और शायद यही कारण था कि बहेड़ी थाना कांड संख्या 333/24 पर उनकी समीक्षा ने तीन पुलिस अफसरों के पैरों तले की ज़मीन खिसका दी. पढ़े पुरी खबर........

दरभंगा: बात बहेड़ी की है… पर गूंज पूरे दरभंगा में सुनाई दी। एक कांड, एक चूक, और एक सख्त महिला अफसर तीनों ने मिलकर उस सिस्टम की चीर-फाड़ कर दी, जो वर्षों से चाय की प्यालियों में न्याय घोल रहा था। डीआईजी स्वप्ना गौतम मेश्राम अब महज़ एक अफसर नहीं रहीं, वे दरभंगा की बेचैन रातों की उम्मीद बन गई हैं। और शायद यही कारण था कि बहेड़ी थाना कांड संख्या 333/24 पर उनकी समीक्षा ने तीन पुलिस अफसरों के पैरों तले की ज़मीन खिसका दी।
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कहानी उस कांड की, जिसे फ़र्ज़ के नाम पर रफा-दफा किया जा रहा था: दिनांक –19.04.2024, कांड संख्या– 333/24, धाराएं –BNS की धारा 126(2) 115(2)/118(1)/110/303(2) 117/76/352/351(2)/3(5) सहित गंभीर आरोप शिकायत दर्ज हुई, पर जैसे फॉर्मलिटी पूरी की गई। जैसे थानेदारों को पहले से मालूम हो कि ये मामला जल्द ठंडा हो जाएगा। जैसे इंसाफ कोई टारगेट न हो, बल्कि एक बोझ हो जिसे अगली ट्रांसफर तक टालना ही काफी हो। अनुसंधान में ढील, पीड़ित पक्ष की उपेक्षा, पर्यवेक्षण की निष्क्रियता ये सारे दोष किसी एक अफसर पर नहीं, बल्कि पूरे तंत्र की सड़न पर उंगली उठाते हैं।
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डीआईजी की समीक्षा: जब दरभंगा में न्याय ने वर्दी पहनी: पुलिस उप-महानिरीक्षक (DIG), मिथिला क्षेत्र, दरभंगा स्वप्ना गौतम मेश्राम ना नर्म स्वर, ना नपी-तुली चेतावनी… बल्कि एक ऐसा निर्देश, जिसकी गूंज न केवल बहेड़ी थाना तक सीमित रही, बल्कि पूरे जिले में पुलिस महकमे को आइना दिखा गई।
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उनकी समीक्षा के बाद तय हुआ कि:
1.थानाध्यक्ष बहेड़ी, पुअनि वरुण कुमार गोस्वामी बर्खास्त नहीं, पर पद से मुक्त कर पुलिस केंद्र लहेरियासराय भेजे गए। दोष: कांड में शिथिलता, FIR को गंभीरता से न लेना, पीड़ित पक्ष को टालना।
2.अनुसंधानकर्ता पुअनि धर्मदेव सिंह यादव विभागीय जांच की जद में। दोष: सबूतों की अनदेखी, साक्ष्य संकलन में ढील, मामले को कमजोर करना।
3.तत्कालीन अंचल पुलिस निरीक्षक, पु.नि. राजकुमार मंडल पर्यवेक्षण में घोर लापरवाही के लिए कार्रवाई आरंभ। दोष: जिम्मेदारी का बोझ फाइलों में घुमा देना, और गुप्तचरों के बजाय अनुमान पर चलना।
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जनता पूछ रही है: क्या यह कार्रवाई "शुरुआत" है, या फिर "समाप्ति"? दरभंगा की जनता अब सिर्फ “स्थानांतरण” से संतुष्ट नहीं है। यह शहर एक रणनीतिक पुलिसिंग मॉडल की मांग कर रहा है जहां रात्रि गश्ती स्थायी हो, जहां थाने में दलाल नहीं, शिकायतकर्ता की बात सुनी जाए, जहां एफआईआर को रद्दी नहीं, दस्तावेज़ माना जाए, और जहां हर अफसर की एक सीमा तय हो कि अगर जनता का भरोसा टूटा, तो कुर्सी छूटे!
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DIG स्वप्ना मैडम! एक सुझाव नहीं, एक सख़्त आग्रह है... हम पत्रकारों ने आपको नगर थाना परिसर में गार्ड ऑफ ऑनर लेते हुए देखा। आपकी निगाहें सधी थीं, चाल में आत्मविश्वास था। पर बाहर, इन दीवारों से दूर, रात के अंधेरे में दरभंगा का दर्द अब भी करवटें बदल रहा है। यह शहर "मीटिंग नहीं", "मुठभेड़" मांगता है। यहां फाइलों की फटकार नहीं, चौराहों पर बूटों की गूंज चाहिए। यहां अपराधियों से ज्यादा खौफ जनता को उन थानों से है, जहां FIR दर्ज कराना किसी युद्ध जीतने से कम नहीं। “अगर आप चाहें तो दरभंगा की रातें बदल सकती हैं बस एक आदेश, एक निगरानी, और एक चौकसी इस नींद से भरे सिस्टम में आग लगा सकती है।”
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अंदरखाने की हलचल: अब थानेदार टेबल छोड़, ट्रांसफर टालने में लगे हैं! बहेड़ी कार्रवाई के बाद जिले भर के थानाध्यक्ष और निरीक्षक अब अपने कामों को दुरुस्त करने में जुट गए हैं। सूत्रों के मुताबिक, कई थानों में पुरानी केस डायरी खंगाली जा रही है, जिनमें घपले की आशंका हो। DIG मैडम की यह पहली बड़ी कार्रवाई नहीं होगी अगर सिस्टम न चेता, तो अगली सूची में और नाम जुड़ सकते हैं।
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जनता की जुबान से: अब "साहब सलाम" नहीं, "कानून का काम" चाहिए! "थाने में गया था बेटा के केस में, पर थानेदार ने कहा आप पहले आवेदन छोड़िए, हम देखेंगे..." "भाई की हत्या हो गई, और जांच अधिकारी बोले पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद आगे देखेंगे..." "CCTV फुटेज था, फिर भी एफआईआर नहीं दर्ज हुआ, कहा गया पहले अंचल से रिपोर्ट लाओ..." ऐसी शिकायतें थानों से हर रोज़ निकल रही हैं, और अगर DIG मेश्राम की कार्रवाई इसी तरह जारी रही, तो आने वाला समय दरभंगा पुलिस का 'पुनर्जन्म' हो सकता है।
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अपराधियों को खबर कर दीजिए दरभंगा अब करवट ले रहा है! यह शहर अब मौन नहीं रहेगा। यहां हर गली से आवाज़ आएगी "अगर सरकार चुप रही, तो कलम बोलेगी। अगर थाने चुप रहे, तो कैमरा बोलेगा। और अगर सिस्टम चुप रहा, तो जनता सड़क पर उतरेगी!" (अगली कड़ी में: पीड़ित परिवार की ज़ुबानी बहेड़ी की उस रात की सच्चाई)