मान्यवर डीआईजी मैडम! दरभंगा के थानों में आपकी उपस्थिति आश्वस्त कर गई… अब कृपया इन रातों को भी संभाल लीजिए! जहाँ नींद में हैं रक्षक, वहाँ अपराधी शिकार ढूंढते फिरते हैं… हमें गार्ड ऑफ ऑनर नहीं, सड़कों पर आपकी प्रणाली की गूंज चाहिए!
पुलिस विभाग की सुस्ती पर आज एक महिला अफसर की पैनी नज़र और सख्त आवाज़ गूंज उठी। मिथिला क्षेत्र की पुलिस उप-महानिरीक्षक (डीआईजी) स्वप्ना गौतम मेश्राम ने दरभंगा नगर थाना और अंचल निरीक्षक कार्यालय, सदर का औचक निरीक्षण कर न केवल सिस्टम की धूल झाड़ी, बल्कि खामियों की गर्द को भी कठोर निर्देशों से साफ़ करने का प्रयास किया..... पढ़े पुरी खबर.....

बिहार/ दरभंगा :- पुलिस विभाग की सुस्ती पर आज एक महिला अफसर की पैनी नज़र और सख्त आवाज़ गूंज उठी। मिथिला क्षेत्र की पुलिस उप-महानिरीक्षक (डीआईजी) स्वप्ना गौतम मेश्राम ने दरभंगा नगर थाना और अंचल निरीक्षक कार्यालय, सदर का औचक निरीक्षण कर न केवल सिस्टम की धूल झाड़ी, बल्कि खामियों की गर्द को भी कठोर निर्देशों से साफ़ करने का प्रयास किया।
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सुबह जैसे ही डीआईजी कार्यालय परिसर में पहुँचीं, पूरे थाना परिसर में हलचल मच गई। उनकी आगवानी के लिए पुलिस बल तत्पर दिखा और गार्ड ऑफ ऑनर के साथ उन्हें सलामी दी गई। परंतु डीआईजी का ध्यान सिर्फ औपचारिकताओं पर नहीं था। वे सीधे थाने के भीतरी कमरे, मालखाना, फरियादी कक्ष और अभिलेख कक्ष की ओर बढ़ गईं, जहाँ कई वर्षों से बंद पड़े फाइलों की परतें जैसे उनका इंतज़ार कर रही थीं।
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थानों की हकीकत पर डीआईजी की तल्ख नज़र: नगर थाना की दीवारों पर लगे पोस्टर भले ही अपराध नियंत्रण के दावे कर रहे थे, लेकिन रजिस्टरों में दर्ज कई लंबित मामलों, गैर-तत्पर अनुसंधान, और जनशिकायतों के निराकरण में ढिलाई ने डीआईजी की भृकुटि तान दी। उन्होंने एक-एक अभिलेख का अवलोकन कर पूछा कि किसी FIR की फाइल एक साल से धूल क्यों खा रही है? "क्यों नहीं हुई अपराधियों की गिरफ्तारी?" "आम जनता को थाना में इज्जत से क्यों नहीं बैठाया जाता?"
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इन सवालों ने उस खामोश सिस्टम की नींव हिला दी, जो अब तक सिर्फ खानापूर्ति में विश्वास करता आया था। सदर अंचल निरीक्षक कार्यालय में मिलीं गंभीर कमियाँ: अंचल निरीक्षक कार्यालय, सदर में निरीक्षण के दौरान भी डीआईजी मेश्राम ने पाया कि कई अनुसंधान पदाधिकारी बिना उचित कागजी तैयारी के कार्य कर रहे थे। अभिलेखों के रख-रखाव में अनुशासन की कमी थी। जनता के साथ संवाद की कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं थी।
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उन्होंने स्पष्ट कहा: "थाना सिर्फ वर्दी पहनने की जगह नहीं है, यह जनता का न्यायालय है और जनता से बदसलूकी या लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।"
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निर्देशों में चेतावनी और सुधार की गुंजाइश दोनों: डीआईजी स्वप्ना गौतम मेश्राम ने निरीक्षण के बाद संबंधित थाना प्रभारी, अंचल निरीक्षक और पुलिस पदाधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए:
1. एक सप्ताह के भीतर सभी लंबित मामलों की स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करें।
2. जनता के साथ व्यवहार में शिष्टाचार और संवेदनशीलता सुनिश्चित की जाए।
3. महिला मामलों को प्राथमिकता के साथ हल किया जाए।
4. रात्रि गश्ती और अपराधियों पर नजरदारी को और सख्त किया जाए।
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वर्दी से नहीं, व्यवस्था से होगा सम्मान: डीआईजी का संदेश: डीआईजी मेश्राम का निरीक्षण मात्र एक ‘प्रोटोकॉल विजिट’ नहीं था। यह एक व्यवस्था को आईना दिखाने की कोशिश थी और वह भी ऐसी अफसर की ओर से जो सिर्फ कुर्सी की गरिमा से नहीं, अपने व्यवहार और सख्ती से पहचान बनाना जानती हैं।
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आज दरभंगा में उनके निरीक्षण से यह साफ हो गया कि मिथिला क्षेत्र की पुलिसिंग अब ‘नवाबी ढर्रे’ पर नहीं चलेगी। अब वर्दी सिर्फ पहनने भर की चीज़ नहीं, जवाबदेही का प्रतीक होगी। और उस जवाबदेही को सुनिश्चित कराने के लिए एक महिला डीआईजी डटकर खड़ी है।
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स्वप्ना मैडम! आपकी निरीक्षणीय उपस्थिति से दरभंगा की दीवारों ने राहत की सांस ली, गार्ड ऑफ ऑनर में गर्व था, व्यवस्था को आपके क़दमों की आहट मिली... पर अब इस शहर को आपकी नज़रें रातों में चाहिए! जहाँ अंधेरे में घरों की खिड़कियाँ कांपती हैं, और नींद से बोझिल जवानों की जगह अपराधी घूमते हैं! दरभंगा की गली-गली पुकार रही है हमें रणनीति नहीं, कार्रवाई चाहिए; बैठकों का एजेंडा नहीं, हर रात चलती गश्ती चाहिए… क्योंकि रात जब सोती है, तब दरिंदे जागते हैं, और बिना पहरे के शहर, श्मशान बनते देर नहीं लगती!
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एक सवाल: क्या दरभंगा के थानों की आत्मा अब जागेगी, या फिर एक और निरीक्षण, एक और गार्ड ऑफ ऑनर के साथ बीत जाएगा...?