पहले भी 12 घंटे के भीतर मिला था आदित्य जब मिथिला जन जन की आवाज़ समाचार ने उठाई थी आवाज़, तो छपरा जंक्शन से मिला था सुराग। अब वही बच्चा फिर से लापता है, और वही सिस्टम फिर से खामोश। माँ की आँखों में आँसू नहीं, बस पत्थर जैसी खामोशी बची है... दरभंगा अब संवेदनहीनता की परिभाषा बनता जा रहा है।
दरभंगा के आकाश में इन दिनों एक ही सवाल गूंज रहा है “आदित्य कहाँ है?” गांधी चौक की गलियों से लेकर टावर चौक तक हर आवाज अब इस प्रश्न का उत्तर मांग रही है।15 दिन बीत चुके हैं, और 13 साल का मासूम आदित्य खंडेलवाल अब भी लापता है। कभी जो माँ की गोद में खिलखिलाकर हँसता था, आज उसकी तस्वीर चौराहों पर टंगी है। घर का दरवाज़ा अब हमेशा आधा खुला रहता है, शायद इस उम्मीद में कि दरवाज़े से अचानक वही कदमों की आहट सुनाई दे, जो कभी “माँ!” पुकारते हुए घर में घुसा करता था। लेकिन अब बस सन्नाटा है लंबा, भारी, और टूटता हुआ सन्नाटा. पढ़े पूरी खबर.......

दरभंगा के आकाश में इन दिनों एक ही सवाल गूंज रहा है “आदित्य कहाँ है?” गांधी चौक की गलियों से लेकर टावर चौक तक हर आवाज अब इस प्रश्न का उत्तर मांग रही है।15 दिन बीत चुके हैं, और 13 साल का मासूम आदित्य खंडेलवाल अब भी लापता है। कभी जो माँ की गोद में खिलखिलाकर हँसता था, आज उसकी तस्वीर चौराहों पर टंगी है। घर का दरवाज़ा अब हमेशा आधा खुला रहता है, शायद इस उम्मीद में कि दरवाज़े से अचानक वही कदमों की आहट सुनाई दे, जो कभी “माँ!” पुकारते हुए घर में घुसा करता था। लेकिन अब बस सन्नाटा है लंबा, भारी, और टूटता हुआ सन्नाटा।
प्रशासन की चुप्पी और जनता की पुकार: आदित्य का परिवार दरभंगा प्रशासन के हर दफ्तर के चक्कर लगा चुका है। डीएम, एसएसपी, थानेदार सबने “देखते हैं” कहा, लेकिन किसी ने “करते हैं” नहीं कहा। पुलिस का जवाब अब दर्द का पर्याय बन चुका है।
कोई जानकारी मिले तो हमें बताइए। यह वही वाक्य है जो किसी माँ के दिल को हज़ार टुकड़ों में बाँट देता है। धरना टावर चौक पर हुआ, जहाँ सैकड़ों लोग जुटे। लोगों के चेहरों पर ग़ुस्सा था, आँखों में आंसू, और दिल में सवाल। सामाजिक कार्यकर्ता, युवा राजद के नेता राकेश नायक, महिलाएँ, छात्र, बच्चे सब एक स्वर में पुकार रहे थे। “आदित्य को खोजो!”
धरना में एक माँ ने कहा,“अगर मंत्री का बेटा खो जाए तो पुलिस चौबीस घंटे में निकाल लेती है, लेकिन हमारा बेटा गायब है तो किसी को फुर्सत नहीं।”यह वाक्य सिर्फ़ एक माँ का नहीं था यह हर उस परिवार की आवाज़ थी, जो दरभंगा में न्याय के इंतज़ार में है।
जब ‘मिथिला जन जन की आवाज’ ने कर दिखाया था चमत्कार: यह पहली बार नहीं है जब आदित्य गायब हुआ। कुछ महीने पहले भी वही घटना हुई थी। उस वक़्त निराश पिता थककर पहुंचे थे “मिथिला जन जन की आवाज समाचार” के दफ़्तर आँखों में दर्द, आवाज़ में टूटन और एक ही उम्मीद “संपादक जी, मेरा बेटा वापस ला दीजिए।”उस समय प्रधान संपादक आशीष कुमार ने आदित्य पर एक विशेष रिपोर्ट प्रकाशित की थी एक ऐसी रिपोर्ट जिसने प्रशासन की नींद उड़ा दी। वह खबर मिथिला के हर कोने में फैल गई दरभंगा से पटना तक और वहाँ से छपरा तक गूँज उठी। और चमत्कार हुआ... सिर्फ़ 12 घंटे के भीतर, छपरा जंक्शन पर आदित्य बरामद कर लिया गया। छपरा पुलिस ने जानकारी दी, दरभंगा पुलिस ने परिवार को सूचना भेजी और वह बच्चा, जो घर से खो गया था, पत्रकारिता की सच्ची शक्ति से वापस लौट आया। वह दिन दरभंगा की पत्रकारिता के इतिहास में दर्ज हो गया। क्योंकि उस दिन “मिथिला जन जन की आवाज” ने साबित किया था कि अगर पत्रकार कलम से इंसानियत की लड़ाई लड़े, तो हर सिस्टम झुक जाता है।
लेकिन अब वही कहानी फिर दोहराई जा रही है... फर्क सिर्फ़ इतना है कि इस बार सिस्टम और भी सुन्न है। आदित्य फिर गायब है। माँ फिर वही हैं, बस आँखें अब सूख चुकी हैं। पिता फिर वही हैं, बस अब शब्द नहीं बचे। लेकिन इस बार कुछ बदल गया है अब भरोसा नहीं बचा है, बस निराशा और आक्रोश है। धरना स्थल पर राकेश नायक ने कहा सरकार की संवेदना अब पैसे और पहचान की गुलाम हो गई है। आम आदमी की चीखें अब फाइलों में गुम हो जाती हैं। और जब उन्होंने यह कहा, तब भीड़ में बैठे एक पिता की आँखें भर आईं शायद उन्हें अपने खोए बेटे का चेहरा याद आ गया हो।
एक माँ की सूखी आँखें और दरभंगा की गीली आत्मा: धरना में जब प्रिया खंडेलवाल बैठी थीं, तो उनके सामने उनके बेटे की तस्वीर थी। उन्होंने कहा कुछ नहीं, बस देखा उस तस्वीर को। उनकी आँखों से आंसू नहीं निकले, क्योंकि वो पहले ही खत्म हो चुके थे। उन्होंने कहा, मैं अब रो भी नहीं सकती... बस इंतज़ार है, शायद मेरा आदित्य किसी दिन लौट आए। उनकी यह एक पंक्ति पूरे टावर चौक पर गूंज गई। लोगों ने मोमबत्तियाँ जलाईं, “आदित्य को खोजो” के नारे लगाए, और फिर भीड़ में एक खामोशी छा गई वो खामोशी जो किसी शहर की संवेदना की मौत पर उतरती है।
पत्रकारिता की पुकार यह सिर्फ़ एक बच्चा नहीं, एक चेतावनी है: दरभंगा में अब सिर्फ़ एक बच्चे की गुमशुदगी की कहानी नहीं चल रही, बल्कि एक सिस्टम की असफलता की गाथा लिखी जा रही है। हर बीतता दिन उस माँ के लिए नहीं, बल्कि समाज की आत्मा के लिए चुनौती है। और यही वजह है कि “मिथिला जन जन की आवाज समाचार” फिर से उसी जिम्मेदारी के साथ खड़ा है, जिसने एक बार आदित्य को वापस घर पहुँचाया था।हमारी कलम फिर चली है लेकिन इस बार सिर्फ़ खोजने के लिए नहीं, बल्कि जगाने के लिए। क्योंकि अगर दरभंगा अब भी नहीं जागा, तो कल किसी और घर से किसी और माँ की यही चीख़ सुनाई देगी “मेरा बेटा कहाँ है?”
यह सिर्फ़ एक रिपोर्ट नहीं है, यह उस माँ की सिसकी है जिसे सिस्टम ने अनसुना किया, यह उस पिता की थकान है जो अब भी दरवाज़े पर बैठा है, यह उस पत्रकार की कलम है जिसने सच्चाई को हथियार बनाया है। और यह वह पुकार है, जो अब मिथिला की हर गली से उठ रही है। “आदित्य को खोजो, इंसाफ को जगाओ!”