दरभंगा के जमालपुर थाने में जब फरियाद बना अपराध दिव्यांग सगीर की हिम्मत को रौंदते हुए दारोगा सूर्यबली यादव ने दिखाई खाकी की हैवानियत… न्याय की तलाश में पहुँचा एसडीपीओ मनीष चंद्र चौधरी के दरबार!
दरभंगा के जमालपुर थाने से निकली एक घटना आज पूरे पुलिस महकमे के चेहरे पर सवाल खड़े कर रही है। यह सवाल सिर्फ एक व्यक्ति के अधिकार की बात नहीं है, यह सवाल उस व्यवस्था की आत्मा पर चोट करता है, जो संविधान की शपथ लेकर जनता की सेवा में तैनात होती है। यह कहानी है झगरुआ गांव के दिव्यांग मोहम्मद सगीर की एक ऐसे व्यक्ति की, जो अपनी अपाहिज पत्नी, वृद्ध पिता और छोटे भाई के साथ इंसाफ की उम्मीद में थाने की चौखट पर गया, लेकिन लौटा लात-घूंसे, गालियों और अपमान की जंजीरों में जकड़ा हुआ. पढ़े पुरी खबर........

दरभंगा के जमालपुर थाने से निकली एक घटना आज पूरे पुलिस महकमे के चेहरे पर सवाल खड़े कर रही है। यह सवाल सिर्फ एक व्यक्ति के अधिकार की बात नहीं है, यह सवाल उस व्यवस्था की आत्मा पर चोट करता है, जो संविधान की शपथ लेकर जनता की सेवा में तैनात होती है। यह कहानी है झगरुआ गांव के दिव्यांग मोहम्मद सगीर की एक ऐसे व्यक्ति की, जो अपनी अपाहिज पत्नी, वृद्ध पिता और छोटे भाई के साथ इंसाफ की उम्मीद में थाने की चौखट पर गया, लेकिन लौटा लात-घूंसे, गालियों और अपमान की जंजीरों में जकड़ा हुआ।
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थाने नहीं, अपमान का अड्डा: सोमवार की दोपहर जब मो. सगीर अपने भाई मो. सबीर के साथ किसी फरियाद को लेकर जमालपुर थाना पहुँचा, तब शायद उसने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि उसकी फरियाद की कीमत उसकी अस्मिता पर डंडे बरसाकर वसूली जाएगी। आरोप है कि थाने के दरोगा सूर्यबली यादव ने उनकी बात सुने बिना उनके हाथ से आवेदन छीनकर फेंक दिया, भद्दी-भद्दी गालियाँ दी और जब उन्होंने विरोध किया, तो दोनों भाइयों को पीटा गया। यह सब कुछ वहीं नहीं रुका। दिव्यांग सगीर को थाना हाजत में बंद कर दिया गया और उसके भाई को धमकाते हुए कहा गया '10 हजार रुपये लेकर आओ, तभी भाई को छोड़ेंगे, नहीं तो जेल भेज देंगे।' सोचिए, जब एक गरीब, असहाय, दिव्यांग अपनी बात लेकर थाने आता है, तो क्या उससे इसी बर्ताव की उम्मीद की जाती है?
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सगीर की आंखों में आँसू नहीं, अपमान की आग थी: गुरुवार को जब जनता दरबार लगा था, तब सगीर अपनी दिव्यांग पत्नी नाजमीन परवीन, वृद्ध पिता अलाउद्दीन और छोटे भाई सबीर के साथ एसडीपीओ बिरौल मनीष चंद्र चौधरी के समक्ष पहुँचा। उसकी आँखों में आँसू नहीं थे, क्योंकि आँसू उस दिन थाने में ही सूख चुके थे। उसकी आँखों में सिर्फ सवाल थे “क्यों सर, क्यों मुझे मारा गया? क्या दिव्यांग होना गुनाह है?”
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एसडीपीओ मनीष चंद्र चौधरी उम्मीद की अंतिम डोर: सगीर और सबीर जैसे लोग पुलिस के बड़े अधिकारियों को भगवान की तरह देखते हैं। उन्हें लगता है कि न्याय वहीं से मिलेगा। जनता दरबार में एसडीपीओ मनीष चंद्र चौधरी ने उनकी बात को न केवल धैर्यपूर्वक सुना, बल्कि यह भी भरोसा दिलाया कि जांच निष्पक्ष होगी और जो भी दोषी होगा, उस पर कार्रवाई की जाएगी। यह भरोसा सिर्फ सगीर के लिए नहीं, बल्कि उन हजारों लोगों के लिए उम्मीद है जो खाकी की सत्ता के दमन से डरे रहते हैं लेकिन लोकतंत्र में यकीन रखते हैं।
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सूर्यबली यादव बोले 'आरोप निराधार हैं': दारोगा सूर्यबली यादव ने अपने ऊपर लगाए आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि यह सब झूठ है। मगर सवाल उठता है कि क्या कोई दिव्यांग व्यक्ति, जो खुद चल नहीं सकता, जिसकी पत्नी भी विकलांग है, वो जनता दरबार की भीड़ में जाकर झूठ बोलेगा? क्या उसकी गरीबी और असहायता उसे झूठा बना देती है?
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जांच निष्पक्ष हो, न्याय सख्त हो! यह वक्त है जब एसडीपीओ मनीष चंद्र चौधरी को न केवल इस पूरे प्रकरण की गंभीरता से जांच करनी चाहिए, बल्कि अगर सच्चाई वही है जो सगीर कह रहा है, तो दारोगा सूर्यबली यादव को सिर्फ लाइन हाजिर नहीं, बल्कि निलंबित कर विभागीय कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए। क्योंकि अगर ऐसे मामलों पर सख्त कार्यवाई नहीं हुई, तो थाने आमजन के लिए डर और अपमान के अड्डे बनते चले जाएंगे।
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सगीर के आँसू समाज की आत्मा पर लगे धब्बे: यह घटना कोई सामान्य घटना नहीं है। यह इस बात का सूचक है कि थानों की आत्मा मरती जा रही है, वहां संवेदना नहीं बची है। दिव्यांग सगीर का अपमान दरअसल उस पूरी संवैधानिक व्यवस्था का अपमान है, जिसे हम 'जनता की पुलिस' कहते हैं।
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अंत में एक गुहार: एसडीपीओ साहब! सगीर बहुत उम्मीद लेकर आपके जनता दरबार में पहुँचा था। उसकी आँखों में आपकी वर्दी के प्रति सम्मान था, उसके शब्दों में आपके न्याय के प्रति भरोसा था। अब वक्त है कि आप उसे निराश न करें। आपकी एक निष्पक्ष जांच और सख्त कार्रवाई न सिर्फ सगीर को न्याय दिलाएगी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को यह विश्वास भी देगी कि “पुलिस अन्याय नहीं, न्याय की प्रतीक है।”