जब महंगाई की मार ने आमजन की थाली से रोटी छीन ली, जब शहर की भीड़ में भूख ने इंसानियत का गला घोंटना शुरू किया, तभी दरभंगा की धरती से उठी सेवा और संवेदना की नई रोशनी ‘गुंजन एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट’ ने ₹10 में भरपेट भोजन योजना की शुरुआत कर साबित कर दिया कि अब भी ज़िंदा है मानवता, अब भी साँस ले रही है करुणा, और अब भी कोई है जो भूखे के आँसू पोंछने को तत्पर है....

मिथिला की पवित्र धरती जहाँ शब्दों में संवेदना है, मिट्टी में करुणा है और हवा में सेवा की सुगंध। उसी धरती से आज उठी है एक ऐसी मानवीय पुकार, जिसने न सिर्फ़ भूख से जूझते चेहरों पर मुस्कान लौटाई, बल्कि यह साबित कर दिया कि जब तक दिल जीवित है, तब तक उम्मीद मर नहीं सकती। शहर के मध्य में स्थित “गुंजन एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट” के कैफेटेरिया परिसर में आज से शुरू हुई है वह सेवा, जो आने वाले समय में दरभंगा की मानवता की पहचान बन जाएगी ₹10 में भरपेट भोजन योजना। जहाँ भोजन नहीं, बल्कि सम्मान परोसा जा रहा है.... पढ़े पूरी खबर......

जब महंगाई की मार ने आमजन की थाली से रोटी छीन ली, जब शहर की भीड़ में भूख ने इंसानियत का गला घोंटना शुरू किया, तभी दरभंगा की धरती से उठी सेवा और संवेदना की नई रोशनी ‘गुंजन एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट’ ने ₹10 में भरपेट भोजन योजना की शुरुआत कर साबित कर दिया कि अब भी ज़िंदा है मानवता, अब भी साँस ले रही है करुणा, और अब भी कोई है जो भूखे के आँसू पोंछने को तत्पर है....
जब महंगाई की मार ने आमजन की थाली से रोटी छीन ली, जब शहर की भीड़ में भूख ने इंसानियत का गला घोंटना शुरू किया, तभी दरभंगा की धरती से उठी सेवा और संवेदना की नई रोशनी ‘गुंजन एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट’ ने ₹10 में भरपेट भोजन योजना की शुरुआत कर साबित कर दिया कि अब भी ज़िंदा है मानवता, अब भी साँस ले रही है करुणा, और अब भी कोई है जो भूखे के आँसू पोंछने को तत्पर है....

दरभंगा, मिथिला की पवित्र धरती जहाँ शब्दों में संवेदना है, मिट्टी में करुणा है और हवा में सेवा की सुगंध। उसी धरती से आज उठी है एक ऐसी मानवीय पुकार, जिसने न सिर्फ़ भूख से जूझते चेहरों पर मुस्कान लौटाई, बल्कि यह साबित कर दिया कि जब तक दिल जीवित है, तब तक उम्मीद मर नहीं सकती। शहर के मध्य में स्थित “गुंजन एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट” के कैफेटेरिया परिसर में आज से शुरू हुई है वह सेवा, जो आने वाले समय में दरभंगा की मानवता की पहचान बन जाएगी ₹10 में भरपेट भोजन योजना। जहाँ भोजन नहीं, बल्कि सम्मान परोसा जा रहा है

दोपहर के बारह बजते ही कैफेटेरिया के दरवाज़े खुलते हैं। अंदर एक मेज़ पर सजी हैं सादी थालियाँ किन्तु उनमें जो परोसा जा रहा है, वह सिर्फ़ चावल और दाल नहीं, बल्कि करुणा, संवेदना और सेवा का स्वाद है। मजदूर के थके हाथ, रिक्शा वाले की धूल से सनी हथेलियाँ, वृद्ध के कांपते उंगलियाँ सभी एक समान पंक्ति में बैठकर खाते हैं, बिना किसी भेदभाव के, बिना किसी उपेक्षा के। यहाँ कोई दान नहीं लेता, कोई एहसान नहीं जताता। हर व्यक्ति अपनी जेब से ₹10 देता है और वही दस रुपये उसके सम्मान का प्रतीक बन जाते हैं।

ट्रस्ट की पहल, समाज के दिल की आवाज़: “गुंजन एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट” ने यह कदम तब उठाया है, जब महंगाई की लहर हर थाली की रोटी को हल्का कर रही है। ट्रस्ट के प्रतिनिधि ने भावुक होकर कहा की “हमारे आसपास ऐसे लोग हैं जो रोज़ मेहनत करते हैं, पर कई बार पेट भर भोजन नहीं कर पाते। हमने सोचा, अगर दस रुपये में किसी को भरपेट खाना मिल जाए, तो शायद किसी की नींद भूख से नहीं टूटे।” उनकी आवाज़ में कोई दिखावा नहीं, केवल एक मानवीय संवेदना की लय थी।भूख के विरुद्ध यह सिर्फ़ एक योजना नहीं, एक आंदोलन है।

जब लोग समाजसेवा के नाम पर पोस्टर लगाते हैं, तब यह पहल बिना पोस्टर की मानवता बनकर उभर रही है। यह कोई सरकारी योजना नहीं, न किसी राजनीतिक मंच का वादा यह दरभंगा के कुछ संवेदनशील दिलों की पुकार है, जो भूख के विरुद्ध एक सच्ची लड़ाई लड़ रहे हैं। लोगों ने कहा यह सिर्फ़ खाना नहीं, करुणा की थाली है स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया देखने लायक थी। कोई आँसू पोंछते हुए बोला “आज पहली बार देखा कि कोई सिर्फ़ फोटो खिंचवाने के लिए नहीं, बल्कि सच में मदद करने आया है।” दूसरे ने कहा “यह ₹10 की थाली नहीं, यह समाज की थकी आत्मा के लिए जीवन का अमृत है।”

दरभंगा के लिए एक नई परंपरा की शुरुआत: इस योजना के माध्यम से दरभंगा ने एक बार फिर यह साबित किया है कि मिथिला की भूमि केवल बुद्धि की नहीं, बल्कि हृदय की भूमि है। यहाँ इंसानियत को पूजा माना जाता है और सेवा को धर्म। आज जब लोग स्वार्थ और दिखावे के घेरे में उलझे हैं, तब इस तरह की पहलें उस बुझती हुई लौ को फिर से प्रज्वलित करती हैं, जो हमें मनुष्य होने का अर्थ सिखाती हैं। शहर में गूंजा एक ही स्वर “सलाम है इस सोच को” लोगों के बीच चर्चा है “ऐसी योजना पूरे बिहार में शुरू होनी चाहिए।” कई कॉलेज छात्र, व्यापारी और समाजसेवी भी आगे आकर सहयोग का प्रस्ताव देने लगे हैं। कईयों ने कहा कि यह पहल केवल एक थाली नहीं, बल्कि समाज को जोड़ने वाली संवेदना की डोर है। जब किसी शहर की गलियों से भूख की पुकार कम होने लगे, जब दस रुपये की थाली किसी की गरिमा बचा ले, जब इंसानियत भूख पर विजय पा ले तब समझिए, वहाँ मानवता अब भी ज़िंदा है। और आज दरभंगा ने यह साबित कर दिया है।