"दरभंगा सुधार गृह या नरक का दरवाज़ा? अमरजीत की लाश पूछ रही है—क्या पुलिस, प्रशासन और तंत्र ने मिलकर की हत्या? उम्र छुपाकर बंद किया, फिर पीट-पीटकर मार डाला—अब जवाब दो, किसका था ये 'सरकारी मर्डर'?"
दरभंगा के तथाकथित “पर्यवेक्षण गृह” में शुक्रवार को जो हुआ, वह न केवल एक 20 वर्षीय युवक की संदिग्ध मौत की त्रासदी है, बल्कि एक गूंगी और अंधी प्रशासनिक मशीनरी का घिनौना चेहरा भी सामने लाती है. पढ़े पुरी खबर.......

दरभंगा। रिपोर्ट: आशिष कुमार, प्रधान संपादक, मिथिला जन जन की आवाज: दरभंगा के तथाकथित “पर्यवेक्षण गृह” में शुक्रवार को जो हुआ, वह न केवल एक 20 वर्षीय युवक की संदिग्ध मौत की त्रासदी है, बल्कि एक गूंगी और अंधी प्रशासनिक मशीनरी का घिनौना चेहरा भी सामने लाती है।
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मर गया अमरजीत… लेकिन सवाल ज़िंदा हैं: समस्तीपुर जिले के टेहटा गाँव का रहने वाला अमरजीत कुमार, शुक्रवार की देर शाम पेट दर्द की शिकायत पर जब दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल लाया गया, तब डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। क्या यह सिर्फ एक मौत थी? या एक नियोजित हत्या, जिसे “पेट दर्द” का पर्दा ओढ़ा दिया गया?
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कहानी का कड़वा सच—किसने मारा अमरजीत को? सूत्रों से मिली जानकारी चौंकाने वाली है—अमरजीत ने एक दिन पहले सुधार गृह से भागने की कोशिश की थी। वह पकड़ा गया। और उसके बाद? उसी ‘बाल’ सुधार गृह में बंद कुछ कैदियों ने उसे पीट-पीटकर अधमरा कर दिया। ज़ख्म उसके चेहरे पर थे, लेकिन घाव उस तंत्र पर हैं, जो खुद को “न्याय व्यवस्था” कहता है।
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18 साल का नहीं था अमरजीत—फिर सुधार गृह में क्यों रखा गया? कागज़ों में उसकी उम्र 18 थी, लेकिन लहेरियासराय थाना प्रभारी दीपक कुमार खुद मानते हैं—अमरजीत लगभग 20 वर्ष का था। तो फिर यह कौन-सी व्यवस्था है जो बालिग आरोपी को बाल गृह में रखती है? क्या यह सिर्फ एक कागज़ी गलती थी, या जानबूझ कर किसी साजिश के तहत उसे वहाँ भेजा गया था?
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पर्यवेक्षण गृह या अत्याचार गृह? क्या दरभंगा का पर्यवेक्षण गृह सुधार के नाम पर युवाओं के शरीर और आत्मा को कुचलने का केंद्र बन चुका है? CCTV फुटेज खंगालने की बात हो रही है, लेकिन जनता जानती है—CCTV फुटेज गायब हो जाया करते हैं, जैसा कई मामलों में हुआ है।
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अधिकारियों की चुप्पी—सिस्टम की मिलीभगत या कायरता? पर्यवेक्षण गृह के अधीक्षक दिनेश, जो हर रोज़ बच्चों की ज़िम्मेदारी का हलफ उठाते हैं, इस पूरे मामले में “मैं वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित कर रहा हूँ” कहकर बच निकलते हैं। सवाल उठता है—क्या वे खुद कुछ नहीं जानते? या जानबूझ कर सच्चाई से मुंह मोड़ रहे हैं?
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प्रशासन से सवाल—उत्तर चाहिए, बहाने नहीं!
अमरजीत की असली उम्र क्या थी?
उसे बाल गृह में किस आधार पर रखा गया?
CCTV फुटेज की जांच कब तक पूरी होगी?
मारपीट में शामिल अन्य बंदियों की पहचान और कार्रवाई कब होगी?
पर्यवेक्षण गृह की मेडिकल व्यवस्था कैसी है, जहाँ “पेट दर्द” मौत में बदल जाता है?
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यह चेतावनी है, निवेदन नहीं: मिथिला जन जन की आवाज इस मामले को यहीं नहीं छोड़ेगी। यह सिर्फ अमरजीत की बात नहीं है, यह हर उस गरीब, लाचार बच्चे की बात है, जो सिस्टम की गलियों में इंसाफ की भीख माँगते हुए दम तोड़ देते हैं। अब खामोशी नहीं चलेगी। जवाब चाहिए—तुरंत।