5 जून को दरभंगा की मिट्टी लेगी गर्व से अंगड़ाई जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी देंगे शहीद सूरज नारायण सिंह को वो सम्मान, जो दशकों से इतिहास का कर्ज बनकर चुप था
इतिहास सिर्फ तारीखों का संकलन नहीं होता। कभी-कभी वह आँसुओं की स्याही से लिखा जाता है, और उसके पन्ने वर्षों बाद भी धड़कते रहते हैं। ऐसा ही एक पन्ना, एक नाम, एक आत्मा शहीद सूरज नारायण सिंह। वे न किसी सरकारी किताब में ठीक से दर्ज हुए, न स्कूली पाठ्यक्रमों में उन्हें वो जगह मिली जिसके वे अधिकारी थे। परन्तु जिस धरती ने उन्हें जन्म दिया, उस दरभंगा ने अब उन्हें उचित श्रद्धांजलि देने की ठान ली है. पढ़े पुरी खबर.......

दरभंगा: इतिहास सिर्फ तारीखों का संकलन नहीं होता। कभी-कभी वह आँसुओं की स्याही से लिखा जाता है, और उसके पन्ने वर्षों बाद भी धड़कते रहते हैं। ऐसा ही एक पन्ना, एक नाम, एक आत्मा शहीद सूरज नारायण सिंह। वे न किसी सरकारी किताब में ठीक से दर्ज हुए, न स्कूली पाठ्यक्रमों में उन्हें वो जगह मिली जिसके वे अधिकारी थे। परन्तु जिस धरती ने उन्हें जन्म दिया, उस दरभंगा ने अब उन्हें उचित श्रद्धांजलि देने की ठान ली है।
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5 जून 2025, नेहरू स्टेडियम, पोलो मैदान, दरभंगा। यही वह दिन होगा, जब एक युगपुरुष को यथोचित सम्मान देने की तैयारी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी खुद उस माटी पर आएंगे, जहाँ सूरज बाबू ने अपना जीवन लोकहित में अर्पित कर दिया था।
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एक स्वतंत्रता सेनानी, जो जमीन के मालिक नहीं, जमीर के बादशाह थे: पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह ने जब यह घोषणा की कि यह कार्यक्रम केवल एक औपचारिक सभा नहीं, बल्कि एक इतिहास के ऋण की भरपाई है तो उनके स्वर में केवल भावनाएँ नहीं थीं, वह एक समर्पण था उस पीढ़ी के नाम, जिसने बिना प्रचार-प्रसार के देश की नींव में खुद को गाड़ दिया।
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सूरज नारायण सिंह, एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे, जो जमींदार कुल में जन्में, लेकिन उन्हें संपत्ति ने नहीं, समाज की पीड़ा ने परिभाषित किया। उन्होंने अपनी पूरी ज़मीन गरीबों में बाँट दी और स्वतंत्रता संग्राम के लिए खुद को अर्पित कर दिया। उनके जीवन की कहानी किसी उपन्यास से कम नहीं परंतु विडंबना यह रही कि उनके नाम की इबारत इतिहास के हाशियों में धुँधली होती चली गई। आज जब उनकी स्मृति में यह भव्य आयोजन किया जा रहा है, तो यह केवल कार्यक्रम नहीं, बल्कि उनके साथ हुई ऐतिहासिक चूक का प्रायश्चित है।
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मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की मौजूदगी, एक युगपुरुष को युगों तक पहुँचाने की कोशिश: इस आयोजन का उद्घाटन प्रातः 11 बजे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार करेंगे। वे स्वयं उन जननायकों में गिने जाते हैं जो इतिहास की उपेक्षित गलियों में झाँकने का साहस रखते हैं। इस अवसर पर उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी समापन समारोह की गरिमा बढ़ाएंगे। साथ ही कई मंत्री, सांसद, विधायक, साहित्यकार और सामाजिक कार्यकर्ता इस समारोह में उपस्थित रहेंगे।
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पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह ने कहा,"यह हमारा सामूहिक दायित्व है कि सूरज बाबू को वह स्थान दिलाएँ, जिसके वे सच्चे अधिकारी थे। उनकी कुर्बानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, यह बिहार की अस्मिता और भारत की आत्मा की गाथा है।"
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स्मृति सभा नहीं, आत्मा का जागरण: यह दो घंटे का आयोजन कई स्तरों पर एक आध्यात्मिक पुनर्संवाद है जहाँ केवल मंच नहीं सजेगा, बल्कि उस आत्मा को भी पुकारा जाएगा जिसने देश को आज़ाद हवा में साँस लेने का अधिकार दिलाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के माध्यम से शहीद की जीवनी, संघर्ष और आदर्शों को जनमानस तक पहुँचाया जाएगा। सुरक्षा व्यवस्था से लेकर मेहमानों के स्वागत तक, हर पहलू की तैयारी जोरों पर है। दरभंगा प्रशासन, नगर निगम और राजनीतिक कार्यकर्ताओं की टीमों ने आयोजन को ऐतिहासिक और यादगार बनाने का जिम्मा उठा लिया है।
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एक शहर, जो अपने सपूत को नहीं भूला: दरभंगा, जिसे कभी राजाओं की नगरी कहा जाता था, आज एक शहीद को राजा जैसा सम्मान देने जा रहा है। जब नेहरू स्टेडियम में हजारों लोग सूरज नारायण सिंह के बलिदान को सुनेंगे, देखेंगे और समझेंगे तब यह आयोजन सिर्फ कार्यक्रम नहीं रहेगा, बल्कि वह प्रतिज्ञा बन जाएगा कि अब कोई सूरज बाबू, इतिहास के अंधेरे में नहीं डूबेगा।शहीद सूरज नारायण सिंह का जीवन न केवल प्रेरणा है, बल्कि वह एक ऐसा मशाल है, जो पीढ़ियों को जगाएगा। उनका स्मृति समारोह आने वाली नस्लों को यह बताएगा कि असली क्रांति बंदूकों से नहीं, आत्मबलिदान और सामाजिक समर्पण से होती है। 5 जून को जब दरभंगा का आसमान गूंजेगा 'अमर रहे सूरज बाबू' के नारों से तो समझिएगा, यह महज़ एक नारा नहीं, एक कालखंड का पुनर्जन्म है।