14 जून की वो घड़ी जब दरभंगा के बाघमोड़ बना दरभंगा पुलिस की दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रतीक जहाँ SHO सुधीर ने मोर्चा संभाला और SSP-SP की उपस्थिति में चलाया गया अपराधियों के विरुद्ध कड़ा समकालीन अभियान!

दरभंगा शहर की नब्ज़ को अगर किसी ने करीब से थामा है, तो वह है पुलिस की वो रात जो चुपचाप दस्तक देती है और फिर धमाके से उतरती है सड़कों पर। 14 जून की रात ऐसी ही एक दस्तक लेकर आई जब प्रशासन के सबसे ऊँचे पदाधिकारी, एसएसपी और एसपी खुद उतर आए फील्ड में। गाड़ियों की आवाजाही, वायरलेस की सिग्नलिंग और तेज़ी से बदलती चालों के बीच बाघमोड़ उस रात कानून की आंख बना, जिसकी पुतलियों में प्रतिबिंबित थे अपराधियों के चेहरे. पढ़े पुरी खबर.........

14 जून की वो घड़ी जब दरभंगा के बाघमोड़ बना दरभंगा पुलिस की दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रतीक जहाँ SHO सुधीर ने मोर्चा संभाला और SSP-SP की उपस्थिति में चलाया गया अपराधियों के विरुद्ध कड़ा समकालीन अभियान!
14 जून की वो घड़ी जब दरभंगा के बाघमोड़ बना दरभंगा पुलिस की दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रतीक जहाँ SHO सुधीर ने मोर्चा संभाला और SSP-SP की उपस्थिति में चलाया गया अपराधियों के विरुद्ध कड़ा समकालीन अभियान!
14 जून की वो घड़ी जब दरभंगा के बाघमोड़ बना दरभंगा पुलिस की दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रतीक जहाँ SHO सुधीर ने मोर्चा संभाला और SSP-SP की उपस्थिति में चलाया गया अपराधियों के विरुद्ध कड़ा समकालीन अभियान!

दरभंगा/बिहार : दरभंगा शहर की नब्ज़ को अगर किसी ने करीब से थामा है, तो वह है पुलिस की वो रात जो चुपचाप दस्तक देती है और फिर धमाके से उतरती है सड़कों पर। 14 जून की रात ऐसी ही एक दस्तक लेकर आई जब प्रशासन के सबसे ऊँचे पदाधिकारी, एसएसपी और एसपी खुद उतर आए फील्ड में। गाड़ियों की आवाजाही, वायरलेस की सिग्नलिंग और तेज़ी से बदलती चालों के बीच बाघमोड़ उस रात कानून की आंख बना, जिसकी पुतलियों में प्रतिबिंबित थे अपराधियों के चेहरे।

                                    ADVERTISEMENT

संकट की नहीं, सजगता की रात थी वो: 14 जून की वो रात, जो आम दिनों की तरह दरभंगा के बाघमोड़ इलाके में ढल रही थी जहाँ लोग अफ़्तारी के बाद पंखों के नीचे आराम ढूंढ रहे थे, दुकानदार दिन की थकान समेट रहे थे, तब पुलिस की चौकसी अपने शिखर पर थी। ADG (लॉ एंड ऑर्डर), पटना के आदेश पर दरभंगा जिला में विशेष समकालीन अभियान का बिगुल बज चुका था। उसी क्रम में जब एसएसपी और एसपी दरभंगा बाघमोड़ पर पहुँचे, तो पहले से ही वहाँ का माहौल "ऑपरेशन ज़ोन" में तब्दील हो चुका था।

                                    ADVERTISEMENT

SHO सुधीर कुमार: एक सेनापति, एक रणनीतिकार: विश्वविद्यालय थाना क्षेत्र के SHO सुधीर कुमार पहले से ही अपने पूरे लवाज़मे के साथ कमान संभाल चुके थे। कमर में पिस्टल, कंधे पर वायरलेस, आँखों में वह चौकन्नापन जो किसी जंग से पहले जनरल में होता है वो दृश्य सिर्फ पुलिसिया कार्रवाई का नहीं, बल्कि विश्वास का प्रतीक था।

                                   ADVERTISEMENT

पुलिस की वो टीम, जिसमें सादे कपड़ों में खुफिया अधिकारी भी थे, गाड़ियों की कतारें, लाइट्स की झिलमिलाहट और SHO की तीखी नज़रें बाघमोड़ की सड़कों पर एक असाधारण दृश्य उपस्थित था। जैसे कोई युद्ध बिना शोर के लड़ा जा रहा हो।

                                     ADVERTISEMENT

एसएसपी की निगरानी और संकेतों की भाषा: एसएसपी की गाड़ी जैसे ही रुकी, SHO सुधीर कुमार ने वायरलेस पर कोडवर्ड में कुछ कहा और अगले ही क्षण पूरी यूनिट हरकत में आ गई। जवानों ने अलग-अलग गलियों को ब्लॉक करना शुरू किया, कुछ ने मोटरसाइकिल पर सवार संदिग्धों को रोका, तो कुछ ने चुपचाप दुकानों के पीछे झांकना शुरू कर दिया।

                                    ADVERTISEMENT

एसएसपी के चेहरे पर गंभीरता थी, लेकिन आत्मविश्वास भी उतना ही। उन्होंने सुधीर कुमार से ब्रीफिंग ली और सुधीर बोले, "सर, इलाक़े को घेर लिया गया है। जो भी संदिग्ध हैं, अब उनके लिए बाहर निकलना आसान नहीं होगा।"

                                  ADVERTISEMENT

बाघमोड़ की साँझ में डर भी था, भरोसा भी: बाघमोड़, जहाँ आमतौर पर साइकिलें, ठेले, पान की दुकानें और छात्र-छात्राओं की चहल-पहल रहती है वहाँ उस रात एक अजीब सन्नाटा पसरा हुआ था। लेकिन यह डर का नहीं, कानून की उपस्थिति का सन्नाटा था। उस मौन में भरोसे की एक खामोश सी आवाज़ थी—कि अब शहर की रक्षा वर्दीधारी हाथों में है। स्थानीय लोग खिड़कियों से झांकते रहे, किसी ने वीडियो बनाया, तो किसी ने धीरे से कहा "आज तो पुलिस का असली रूप दिखा, सुधीर बाबू तो जैसे जंग के लिए तैयार होकर आए हैं।"

                                   ADVERTISEMENT

SHO सुधीर की रणनीति: चौकसी के चार चक्र

मुख्य चौक की घेराबंदी: ताकि कोई वाहन संदिग्ध बिना चेकिंग के बाहर न जा सके।

गुप्त सूचना इकाई का प्रयोग: विश्वविद्यालय थाना के खुफिया स्रोतों ने पहले ही संभावित संदिग्धों की जानकारी दी थी।

सादे कपड़ों में टीम की तैनाती: ताकि सड़कों पर बिना खलबली के निगरानी की जा सके।

स्थानीय संपर्क: मोहल्ले के नागरिकों से पुलिस की सीधी बातचीत, ताकि आम जनता असहज न हो और सहयोग दे।

                                  ADVERTISEMENT

जब आवाज़ आई “सर, एक संदिग्ध मिला है”

रात के तकरीबन 9 बजकर 45 मिनट पर वायरलेस पर आवाज़ आई “सर, एक संदिग्ध मोटरसाइकिल पर, बिना हेलमेट और नंबर प्लेट के, दक्षिणी गली में भागा है।” SHO सुधीर कुमार ने तुरंत जवानों को उस दिशा में रवाना किया, और स्वयं भी पैदल चल पड़े उस ओर। ये सिर्फ कार्रवाई नहीं थी, ये उदाहरण था नेतृत्व का, साहस का और कर्तव्य के प्रति निष्ठा का।

                                   ADVERTISEMENT

सड़कें गवाह थीं कानून सोया नहीं है: पूरे अभियान के दौरान एसएसपी, एसपी और विश्वविद्यालय थानाध्यक्ष एक टीम की तरह काम कर रहे थे। कहीं कोई चूक नहीं, कोई हड़बड़ी नहीं हर कदम सोच-समझ कर, हर दिशा में नज़र। बाघमोड़ पर लगा हर चेक पोस्ट इस बात का संदेश दे रहा था कि दरभंगा अब सिर्फ सांस्कृतिक नगरी नहीं, बल्कि एक सजग शहर भी है जहाँ कानून की गूंज अपराधियों के कानों में अब और ज़ोर से सुनाई दे रही है।

                               ADVERTISEMENT

यह सिर्फ एक रात नहीं थी, यह विश्वास की पुनर्स्थापना थी: जहाँ पुलिस अक्सर आलोचना के घेरे में रहती है, वहाँ इस अभियान ने यह सिद्ध कर दिया कि जब वर्दीदार ईमानदारी और संकल्प के साथ फील्ड में उतरते हैं, तो रातें भी उजली हो जाती हैं और नागरिकों की साँसें भी निश्चिंत। SHO सुधीर कुमार की सजगता, एसएसपी-SP की उपस्थिति और पूरी पुलिस टीम की मुस्तैदी ने दरभंगा की सड़कों पर भरोसे का एक नया सूरज उगाया है।