दरभंगा की रातें अब सुरक्षित नहीं: विश्वविद्यालय थाना क्षेत्र के मनसार मुहल्ले में शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. ओमप्रकाश झा के सूने आशियाने में भीषण चोरी लाखों की नगदी व जेवरात उड़े, सीसीटीवी नाकाम और बिजली कटौती ने दिया अवसर, मोहल्ला त्रस्त, पुलिस FSL के साथ जांच में जुटी
शहर की नींद टूट चुकी है। वह चैन जो कभी सार्वजनिक विश्वास कहलाती थी, अब खौफ की तरह थर्राती हुई नजर आती है। विश्वविद्यालय थाना क्षेत्र के नाका नंबर-2 स्थित मनसार मुहल्ला की सुबह इस बार बस अपनों के आँसुओं और अपमानित-सी ख़ामोशी लेकर आई क्योंकि रात में चोरों ने शहर के जाने-माने शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. ओमप्रकाश झा के घर को निशाना बनाया और घर की अलमारियों, बक्सों, लॉकरों और ट्रॉली तक को चकनाचूर करते हुए लाखों रुपयों के जेवरात व नगदी लेकर भाग गए। यह चोरी सिर्फ़ माल की हेराफेरी नहीं; यह एक परिवार की असहायता, समाज की खामोशी और कानून व्यवस्था की दरारों का मर्मस्पर्शी दस्तावेज़ है. पढ़े पुरी खबर.......

दरभंगा। शहर की नींद टूट चुकी है। वह चैन जो कभी सार्वजनिक विश्वास कहलाती थी, अब खौफ की तरह थर्राती हुई नजर आती है। विश्वविद्यालय थाना क्षेत्र के नाका नंबर-2 स्थित मनसार मुहल्ला की सुबह इस बार बस अपनों के आँसुओं और अपमानित-सी ख़ामोशी लेकर आई क्योंकि रात में चोरों ने शहर के जाने-माने शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. ओमप्रकाश झा के घर को निशाना बनाया और घर की अलमारियों, बक्सों, लॉकरों और ट्रॉली तक को चकनाचूर करते हुए लाखों रुपयों के जेवरात व नगदी लेकर भाग गए। यह चोरी सिर्फ़ माल की हेराफेरी नहीं; यह एक परिवार की असहायता, समाज की खामोशी और कानून व्यवस्था की दरारों का मर्मस्पर्शी दस्तावेज़ है।
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सुबह का राज़: जब घर लौटा तो लगा पूरा जीवन बिखरा हुआ है: डॉ. ओमप्रकाश झा का परिवार बीती रात उनके गांव गया हुआ था डॉक्टर अपने चाची के अंतिम संस्कार में शामिल होने गए थे। पूरा घर बंद था। आज सुबह लगभग सुबह 6:30 बजे जब डॉ. झा अपने घर लौटे, तो जो नज़ारा सामने आया उसने सांसें थाम लीं। मेन गेट बाहर से बंद था, पर अंदर के कमरों के ताले टूटे पड़े थे। अलमीरा, ड्रेसिंग टेबल, गोदरेज पेटी, बक्से और ट्रॉली सब कुछ हुआ-तूबुरा था; कपड़े, दस्तावेज और निजी सामान हर ओर बिखरे हुए थे। डॉ. झा ने पुलिस को बताया कि घर से लगभग डेढ़ लाख रुपए (₹1,50,000) नकद गायब हैं। गहनों की कीमत का वास्तविक आकलन अभी संभव नहीं हुआ है क्योंकि उनकी पत्नी उस समय बच्चों के पास कोटा गई हुई हैं और गहनों की सूची उन्हीं के लौटने पर ही पक्की होगी। पर स्थानीय महिलाओं व परिजनों के मुताबिक गहनों व नकदी का काफ़ी बड़ा भाग लूट लिया गया है प्रारंभिक अंदाज़े में लाखों रुपये की हानि बताई जा रही है। डॉ. झा ने यह भी बताया कि घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरे काम नहीं कर रहे थे और उसी समय इलाके में बिजली भी कटी हुई थी दो ऐसी विसंगतियाँ जिनसे चोरी करने वालों को खुला रास्ता मिल गया। सुबह सूचना के साथ मोहल्ले के लोग इकट्ठे हुए और घटनास्थल पर उन्होंने स्थानीय थाने को सूचित किया। विश्वविद्यालय थानाध्यक्ष सुधीर कुमार दलबल के साथ मौके पर पहुँचे और जांच-पड़ताल शुरू कर दी।
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चोरी का तालमेल: सिर्फ पर्स-जेवर नहीं, घर की निजता पर वार: यह चोरी शोर-शराबे वाली डकैती नहीं थी; यह योजनाबद्ध, सूनी रात का संचालन था एक ऐसा हमला जिसमें अपराधियों ने सूने घर की कमजोरी देखकर व्यवस्थित तरीके से ताले तोड़े और कीमती सामान उठा ले गए। चोरों ने भयावहता सिर्फ माल उड़ाकर पैदा नहीं की उन्होंने घर के अंदर के निजी स्थानों को खोला, ताले तोड़े और हर कोने को खंगाला। यह संकेत देता है कि जिन लोगों ने वारदात को अंजाम दिया, वे न केवल बोल्ड थे बल्कि उन्हें यह भी मालूम था कि घर कब खाली रहेगा, किसे कब जाना है यानी किसी ने या कुछ हालात ने उन्हें स्पष्ट मौका दिया। मुहल्ले के निवासियों का कहना है कि रात को अक्सर नशे में धुत लड़के सड़कों पर दिखाई देते हैं, और कुछ असामाजिक तत्व भी समय-समय पर मोहल्ले में सक्रिय रहते हैं। ये वातावरण, जब बिजली कटती है और सीसीटीवी निष्क्रिय पड़ जाते हैं, तो अपराधियों के लिए सबसे उपयुक्त बन जाता है।
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स्थानीय भय और आक्रोश: ‘हम सुरक्षित नहीं हैं’ एक मोहल्ले की पुकार: घटना के बाद मोहल्ले में घमासान-सा माहौल दिखा एक ओर परिजन अपने टूटे सपनों को संभालने की कोशिश कर रहे थे और दूसरी ओर आसपास के लोग असमंजस में थे। कई स्थानीय महिलाएँ और बुजुर्ग रोते हुए कह रहे थे: “अगर बड़े डॉक्टर के घर में चोरी हो सकती है तो आम आदमी का क्या होगा?”। बिना नाम बताए कुछ युवा भी गुस्से में बोले कि “पुलिस गश्त दिखाई नहीं देती, कैमरे बंद रहते हैं हम कैसे सुरक्षित रहें?”। यह क्रोध सहज है क्योंकि बार-बार ऐसी घटनाएँ होने पर जनता का भरोसा टूटता है। लोग पूछते हैं कि क्या प्रशासन ने रात की गश्त बढ़ानी चाहिए, क्या बिजली की बहाली और सीसीटीवी की मरम्मत प्राथमिकता पर नहीं रखी जानी चाहिए? स्थानीय महिलाएँ यह मांग कर रही हैं कि मोहल्ले में रात्रि पोर्चिंग व महिला चौकियों की व्यवस्था हो ताकि महिलाओं व बुजुर्गों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
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असामाजिक तत्व और नशेड़ियों खतरे की नब्ज़ पर हाथ: मनसार मुहल्ले की कहानी अकेली नहीं है; छोटे-छोटे गली-नुक्कड़ अक्सर उन्हीं कारणों से अपराधियों के निशाने बनते हैं असामाजिक तत्व जो नशे के कारण असमंजसपूर्ण व्यवहार करते हैं, और युवा जिन्हें बेरोज़गारी, पारिवारिक टूट-फूट एवं नशे की लत ने सामाजिक दायरे से बाहर कर दिया है। स्थानीय लोग बताते हैं कि रात में अक्सर कुछ युवक शराब या अन्य नशीले पदार्थों के नशे में सड़कों पर दिखाई देते हैं वे कभी किसी से हाथापाई कर लेते हैं, कभी सार्वजनिक जगहों पर ध्वनि प्रदूषण करते हैं, और अक्सर ही किसी न किसी छोटी-मोटी चोरी के साथ जुड़े पाए जाते हैं। हालांकि किसी पर सीधा आरोप लगाना अभी उचित नहीं माना जा सकता, परन्तु यह प्रवृत्ति अपराध के अनुकूल माहौल बनाती है। नशाखोरी और असामाजिकता का मिलन अक्सर अपराध की जड़ बनता है: नशेड़ी युवक छोटे-छोटे चोरी के काम करते हैं, सामान बेचने के लिये सस्ते खरीदार की तलाश करते हैं, और वही बाजार बड़ी चोरी को अमल में लाने वालों के लिए एक जगह बन जाता है। जब यह बुनियादी नेटवर्क बन जाता है यानी टोकरा-खाना, संकलन, और बाजार तब बड़े, योजनाबद्ध चोरी के ऑपरेशन संभव होते हैं। समाजिक वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो नशाखोरी का फैलाव बेरोज़गारी, शैक्षिक अवसरों की कमी, पारिवारिक टूट-फूट, और सामाजिक कलंक से जुड़ा होता है। दरभंगा की कुछ बस्तियों में ये समस्याएँ गहरी हैं जहाँ के युवाओं के पास सकारात्मक गंतव्य कम हैं, और नशे के मार्ग उनसे अंततः अपराध की ओर ले जाते हैं।
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पुलिस की प्रतिक्रिया और फोरेंसिक कार्रवाई क्या उम्मीदें हैं?
घटना की सूचना मिलते ही विश्वविद्यालय थाना प्रभारी सुधीर कुमार घटनास्थल पर पहुंचे। पुलिस का कहना है कि एफएसएल (फोरेंसिक साइंस लैबोरेट्री) टीम को बुलाया गया है और सैंपल, निशान, तथा किसी भी तरह के सबूत संग्रहित किये जा रहे हैं। पुलिस ने आश्वासन दिया है कि चिह्नों से मिले सुराग के आधार पर अपराधियों की पहचान कर उन्हें शीघ्र गिरफ्तार किया जाएगा। यदि एफएसएल टीम प्रभावी ढंग से निशान और फिंगरप्रिंट इकट्ठा कर पाती है, तो यह जांच के लिए उपयोगी साबित हो सकता है परंतु सफलता के लिये कुछ बुनियादी बातें जरूरी हैं:
सीसीटीवी फुटेज की उपलब्धता और उसकी गुणवत्ता: यदि आसपास के किसी अन्य घर/व्यवसाय का सीसीटीवी फुटेज मिल जाता है तो चोरों की गमन-आगमन की दिशा का पता चल सकता है। पर वर्तमान में मोहल्ले के कैमरे या तो बंद पाए गए या उनकी रिकॉर्डिंग उपलब्ध नहीं थी।
बिजली कटौती का रिकॉर्ड: बिजली कटौती का समय और अवधि राज्य बिजली वितरण विभाग के रिकॉर्ड से मिलाकर देखा जाएगा; यदि कटौती योजनाबद्ध या स्थानीय थी तो यह भी एक सुराग बन सकता है।
स्थानीय गवाह और संदिग्धों की पहचान: अक्सर मोहल्ले के परिजन किसी न किसी संदिग्ध गतिविधि का जिक्र करते हैं; पुलिस को इन सूचनाओं को गंभीरता से लेना होगा और उन पर जांच करनी चाहिए।
असामाजिक तत्वों और नशा विक्रेताओं पर निगरानी: अगर पुलिस इन युवकों को नियमित निगरानी में रखे और उन्हें रीहैब/समाजिक कार्यक्रमों की ओर ले जाने का प्रयास करे, तो भविष्य में चोरी की घटनाओं में कमी आ सकती है। पुलिस ने आश्वासन दिया है पर मोहल्ले के लोगों का कहना है कि शब्द अब काम नहीं करते करवा दिखाइए। यही जनता की गुहार है।
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तकनीकी विफलता: सीसीटीवी व बिजली किसकी चूक?
यह मामला कई स्तरों पर प्रशासनिक चूक को उजागर करता है। पहली चूक तो बिजली कटौती की है चाहे वह तकनीकी कारण से हुई हो या किसी अन्य वजह से, पर रात में अगर स्थायी इलाकों में अनियंत्रित कटौती होती रहती है तो वह अपराधियों को बड़ा मौका देती है। दूसरी सीसीटीवी कैमरों का खराब होना या उनकी रिकॉर्डिंग का न होना यह स्पष्ट दर्शाता है कि सुरक्षा के दावों में वास्तविकता का अभाव है। कई सरकारी व निजी संस्थान यह दावा करते हैं कि शहर में कई इलाकों में निगरानी कैमरे लगे हुए हैं, पर कैमरे तभी उपयोगी होते हैं जब वे नियमित रूप से कार्यरत और मॉनिटर हों। कैमरे होने और काम करने में फर्क है और मनसार मुहल्ले की घटना यह फर्क कारगर ढंग से दिखाती है। प्रशासन को चाहिए कि वह एक त्वरित ऑडिट कराए: हर कैमरे की कार्यशीलता, रिकॉर्डिंग के समय का बैकअप, और बिजली आपूर्ति के ऐसे ब्यौरे जो रात के दौरान व्यवधान पैदा करते हों इन सबकी जाँच अनिवार्य रूप से होनी चाहिए।
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चोरी की परतें: शहर में बढ़ती घटनाओं का क्रमिक विश्लेषण: दरभंगा में घरेलू चोरी अब कोई असामान्य घटना नहीं रही; पिछले महीनों में पड़ोसी इलाकों से भी इसी तरह की खबरें मिलती रही हैं छोटी-छोटी चोरी, दुकानों से माल उठना, रात के समय वाहन टायर काटना और घरों पर टूट-फूट की घटनाएँ। ये घटनाएँ सामूहिक रूप से एक संदेश देती हैं: सुरक्षा तंत्र अभी भी कमजोर है। चोरी की प्रवृत्ति में कहीं न कहीं सामाजिक सहिष्णुता की गिरावट भी जिम्मेदार है लोग एक-दूसरे के प्रति सतर्क नहीं रहे, सामाजिक निगरानी और मोहल्लाई समर्थन धुंधला पड़ा है। ऐसे में असामाजिक लोग और नशेड़ी युवा अपने कृत्यों को स्वतंत्र रूप से अंजाम दे पाते हैं। यह भी ध्यान देने योग्य है कि चोरी के बाद अक्सर जब घर के लोग शिकायत लेकर थाने पहुँचे, तो प्राथमिक चरण में पंचनामा और साक्ष्य संग्रह होता है, पर उपरांत कार्रवाई में देरी दिखती है जिससे अपराधियों में मनोबल बनता है। जांच तेज़ और पारदर्शी होनी चाहिए ताकि संदेश जाय: चोरी करने वालों का कोई पनाह नहीं।
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समाजशास्त्रीय कारण: नशाखोरी, बेरोज़गारी और अवसरों की कमी: चोरियों के बढ़ते मामलों के पीछे अक्सर वही जानी-पहचानी बातें छिपी होती हैं आर्थिक विषमता, बेरोज़गारी, कमजोर पारिवारिक संरचनाएँ और युवा पीढ़ी के पास सकारात्मक विकल्पों की कमी। नशाखोरी इन समस्याओं को और जटिल बनाती है। एक नशेड़ी युवा को अगर घरेलू सहायता, रोजगार या पुनर्वास न मिले तो वह छोटी चोरी से लेकर संगठित अपराध की ओर बढ़ जाता है। स्थानीय एनजीओ और सामाजिक कार्यकर्ताओं का सुझाव है कि सरकार और समाज को मिलकर नशे के उपचार (rehabilitation) केंद्रों, युवा कल्याण कार्यक्रमों, और स्थानीय स्तर पर रोजगार के छोटे-छोटे विकल्प खुलवाने चाहिए। साथ ही स्कूलों में जागरूकता अभियान और पारिवारिक counseling कार्यक्रम भी जरूरी हैं। केवल पुलिसिया दंड पर्याप्त नहीं; सामाजिक निर्माण भी चाहिए।
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पाठकों के लिए सिफारिशें: तत्काल कदम और दीर्घकालिक नीतियाँ: यदि दरभंगा को फिर से सुरक्षित बनाना है तो कई स्तरों पर कदम उठाने होंगे कुछ सीधे और तत्काल, कुछ दीर्घकालिक:
तत्काल (इमरजेंसी) कदम: प्रभावित मोहल्ले में रात्री गश्त बढ़ाना और पुलिस की पैदल/मोटरसाइकिल पर नियमित पाट्रोलिंग सुनिश्चित करना। थाने द्वारा मोबाइल हेल्पलाइन व त्वरित रिस्पॉन्स टीम स्थापित करना।प्रभावित परिवारों के लिए सुरक्षा गार्ड की अस्थायी व्यवस्था। स्थानीय सीसीटीवी रिकॉर्डिंग की तुरंत समीक्षा और आस-पास के व्यवसाइयों/घरों के फुटेज को जांच के लिए रिक्वेस्ट करना। बिजली विभाग से रात के दौरान कटौती के कारणों का तत्काल ब्यौरा माँगना।
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मध्यम अवधि कदम: मोहल्ले के सभी सार्वजनिक और निजी सीसीटीवी कैमरों का ऑडिट और फिक्सिंग; रिकॉर्डिंग को केंद्रीय सर्वर से सुरक्षित रखना।समुदाय-आधारित पीपुल्स वॉच और मोहल्ला कमेटी का गठन, जिसमें स्थानीय नागरिक, महिलाएँ और पुलिस का सहयोग हो। नशा मुक्ति कार्यक्रम और युवाओं के लिए स्किल डेवलपमेंट व रोजगार योजनाएँ।
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दीर्घकालिक नीतियाँ: शहर के हॉटस्पॉट की पहचान और वहाँ विशेष निगरानी तैनात करना। शिक्षा और रोजगार के व्यापक कार्यक्रम, परिवार-सहायता व सामाजिक संरचनाओं को मजबूत बनाना। एक पारदर्शी और समयबद्ध पुलिसिया कार्यवाही प्रणाली, ताकि जनता को विश्वास मिले कि शिकायत करने पर तुरंत और प्रभावी कार्रवाई होगी।
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शोक, गुस्सा और उम्मीद: मंसार का मनोवृत्तिक परिदृश्य: डॉ. झा जैसे परिवार जिनके साथ ऐसा हुआ, वे केवल आर्थिक क्षति से जूझते नहीं वे अपनी निजता, अपनी गरिमा और यह भरोसा खो देते हैं कि उनका घर अफ़सोस अब सुरक्षित नहीं है। मोहल्ले का हर व्यक्ति अब हर आवाज़ पर चौकन्ना है; हर रात उनसे एक तरह का सवाल पूछती है “क्या हम सुरक्षित हैं?”। यह सवाल केवल पुलिस से नहीं पूछा जा रहा यह समाज से भी पूछा जा रहा है। क्योंकि सुरक्षा केवल शारीरिक गार्डियों या कैमरों से नहीं बनती यह समुदाय के साझा विश्वास, सक्रिय नागरिकता और प्रशासन के उत्तरदायी रवैये से बनती है। मगर आशा भी है: जब लोग संगठित होकर अपनी सुरक्षा की माँग करते हैं, जब स्थानीय मीडिया इन मामलों को लगातार उठाता है, और जब प्रशासन जनआंदोलन पर संवेदनशील होकर ठोस कदम उठाता है, तब बदलाव संभव है। यही वह संकेत है जिसे ‘मिथिला जन जन की आवाज’ जैसे मंचों को भी तेज़ी से आगे बढ़ाना चाहिए।
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चोरी केवल माल की नहीं, समाज की संवेदना की छीनतार है: मनसार मुहल्ले में हुए इस दर्दनाक चोरी ने हमें फिर से याद दिलाया कि कानून व्यवस्था केवल शब्दों में नहीं, कर्मों में भी साबित होनी चाहिए। जब चिकित्सक के सूने घर में चोरों का बोलबाला होता है, तो शहर के छोटे-छोटे घर किसी भी समय निशाना बन सकते हैं। यह घटना प्रशासन, पुलिस और समाज तीनों के लिए एक चेतावनी है। पुलिस द्वारा एफएसएल टीम की मदद से जाँच तात्कालिक उम्मीदों को दिलाती है, पर असली जीत तब होगी जब कैमरे काम करेंगे, बिजली नियमित रहेगी, नशे से ग्रस्त युवा स्थानीय समाज द्वारा सहायक मार्गों पर लौटेंगे और पुलिस-जन सहयोग मजबूत होगा। तब ही दरभंगा की रातें फिर से चैन की नींद सो सकेंगी।