जब दरभंगा की सड़कों पर कानून की परिभाषा खुद चलती मिली: वरीय पुलिस अधीक्षक ने रात के अंधेरों से बात की, थानों के रजिस्टरों में उतरकर सच को टटोला, और उस हर कोने में पहुंचा जहां असमाजिक तत्व सोचते थे कि कोई देख नहीं रहा एक रात्रि गश्ती, जो सिर्फ औचक नहीं, एक चेतना थी

यह दरभंगा की वही रात थी वही चांद, वही सड़कें, वही बिजली के खंभों पर थरथराते बल्ब, वही थाने, वही लोग लेकिन कुछ बदल रहा था। शहर सो रहा था, पर कोई था जो उसके लिए जाग रहा था। किसी ने चुपके से शहर की नब्ज टटोलने की ठानी थी। और वह कोई आम आदमी नहीं, बल्कि जिले का शीर्ष प्रहरी पुलिस कप्तान दरभंगा स्वयं सड़कों पर थे। ऐसा लगा जैसे वर्दी ने बूट नहीं, भरोसा पहना हो और चुपचाप निकल पड़ा हो जनता की नींद की रक्षा के लिए. पढ़े पुरी खबर.......

जब दरभंगा की सड़कों पर कानून की परिभाषा खुद चलती मिली: वरीय पुलिस अधीक्षक ने रात के अंधेरों से बात की, थानों के रजिस्टरों में उतरकर सच को टटोला, और उस हर कोने में पहुंचा जहां असमाजिक तत्व सोचते थे कि कोई देख नहीं रहा एक रात्रि गश्ती, जो सिर्फ औचक नहीं, एक चेतना थी
जब दरभंगा की सड़कों पर कानून की परिभाषा खुद चलती मिली: वरीय पुलिस अधीक्षक ने रात के अंधेरों से बात की, थानों के रजिस्टरों में उतरकर सच को टटोला, और उस हर कोने में पहुंचा जहां असमाजिक तत्व सोचते थे कि कोई देख नहीं रहा एक रात्रि गश्ती, जो सिर्फ औचक नहीं, एक चेतना थी

दरभंगा: यह दरभंगा की वही रात थी वही चांद, वही सड़कें, वही बिजली के खंभों पर थरथराते बल्ब, वही थाने, वही लोग लेकिन कुछ बदल रहा था। शहर सो रहा था, पर कोई था जो उसके लिए जाग रहा था। किसी ने चुपके से शहर की नब्ज टटोलने की ठानी थी। और वह कोई आम आदमी नहीं, बल्कि जिले का शीर्ष प्रहरी पुलिस कप्तान दरभंगा स्वयं सड़कों पर थे। ऐसा लगा जैसे वर्दी ने बूट नहीं, भरोसा पहना हो और चुपचाप निकल पड़ा हो जनता की नींद की रक्षा के लिए।

                                ADVERTISEMENT

लहेरियासराय की साँझ और SSP की संजीदगी: 12 जून 2025 की वह शाम, जो सामान्य दिनों की तरह ही ढल रही थी, अचानक प्रशासनिक सक्रियता से चमक उठी। वरीय पुलिस अधीक्षक ने बिना किसी औपचारिक सूचना के अपनी टीम के साथ शहरी क्षेत्रों की पेट्रोलिंग व्यवस्था का औचक निरीक्षण शुरू कर दिया।

                                  ADVERTISEMENT

शुरुआत हुई लहेरियासराय थाना क्षेत्र से। यह क्षेत्र, जो कभी दरभंगा का व्यापारिक नाभिकेंद्र था, अब प्रशासनिक उपेक्षा और अपराध की उगती घास से आक्रांत होता जा रहा था। ऐसे में SSP की उपस्थिति किसी प्यासे खेत में बरसी पहली फुहार जैसी थी।

                                 ADVERTISEMENT

गश्ती रजिस्टर और नींद में डूबी ज़िम्मेदारी: निरीक्षण के दौरान जब गश्ती रजिस्टर खोला गया तो उसमें दर्ज आंकड़े किसी अपराध से कम नहीं लगे। सुबह की गश्ती में मात्र चार वाहन जांचे गए थे और दूसरी शिफ्ट में एक भी वाहन की जांच नहीं हुई थी। यह उस सड़ चुकी प्रक्रिया की बानगी है जो ड्यूटी को सिर्फ औपचारिकता में बदल चुकी है। थाने में दर्ज सूचनाएँ, एक खंडहर की इबारतें बन चुकी हैं जिन्हें कोई पढ़ता नहीं, कोई समझता नहीं, और शायद कोई पूछता भी नहीं। पर उस रात पूछा गया पहली बार, सलीके से, जिम्मेदारी से, और पूरी ईमानदारी से।

                                ADVERTISEMENT

नाका-6: जहां शोर में खामोशी है, और खामोशी में खतरा: शहर का सर्वाधिक संवेदनशील स्थल नाका-6 इस निरीक्षण में विशेष रूप से चिह्नित किया गया। SSP ने स्पष्ट शब्दों में निर्देश दिए कि दुकानदार समय पर दुकानें बंद करें। असामाजिक तत्वों पर निगरानी रखी जाए। रात में पेट्रोलिंग बढ़ाई जाए। यह आदेश केवल एक अफसर के शब्द नहीं थे, यह उस थक चुकी जनता की प्रार्थना थी जो हर रात डर के साए में अपनी दुकानें बंद करती है और सुबह खबरों से डरती है।

                               ADVERTISEMENT

SSP के आदेश: सिर्फ निर्देश नहीं, नयी सोच की इबारत: जो निर्देश उस रात दिए गए, वे थानों के वार रजिस्टर में दर्ज होने के लिए नहीं थे वे जनता के विश्वास की पुनर्स्थापना के लिए थे। आइए इन निर्देशों को साहित्यिक व्याख्या में समझते हैं:

1.रात्रि गश्ती को अनिवार्य, नियमित और सार्थक बनाएं यह आदेश वर्दीधारियों के लिए एक पुनःशपथ की तरह था कि रातों की सुरक्षा केवल गाड़ियों के पहिए नहीं, आंखों की सजगता से तय होती है।

2.बाजार, बैंक, एटीएम जहां धन है, वहां सुरक्षा हो एक बेहद स्पष्ट चेतावनी अपराध वहीं जन्म लेते हैं, जहां पैसा सोता है और पुलिस भी।

3.सुनसान गलियों में सुरक्षा की रोशनी पहुंचाओ वह इलाका जहां किसी की चीख भी सुनाई नहीं देती, वहीं अपराध सबसे ज्यादा उगते हैं।

4.महिलाओं, बुजुर्गों और जरूरतमंदों को देखो अपनी बहन, पिता और मित्र की तरह SSP का यह निर्देश एक संवेदनशील पुलिसिंग की तस्वीर पेश करता है जहां वर्दी संवेदना ओढ़े।

5.रिकॉर्डिंग और लॉगबुक जिम्मेदारी का दस्तावेज़ अपराध की जड़ों तक पहुंचने का पहला कदम है अपने काम का ईमानदार दस्तावेज।

6.ड्यूटी में पहचान, नाम और वर्दी की गरिमा ज़रूरी जब पुलिस ही अपने नाम से डरने लगे, तो जनता किसके भरोसे जिए?

7. चेक प्वाइंट की उपस्थिति, समय पर दर्ज हो बिना झूठ के SSP ने प्रशासनिक लेखा-जोखा नहीं, आत्मा की उपस्थिति मांगी।

8.टीम वर्क यह वर्दी नहीं, विश्वास का युद्ध है अकेले मत लड़ो, संग चलो, संग जीतोगे।

                                ADVERTISEMENT

प्रशासनिक संदेश बनाम जनसंवाद: इस निरीक्षण के पीछे केवल कर्तव्य नहीं, बल्कि वह दूरदृष्टि भी थी, जो अब पुलिसिंग को केवल दंड नहीं, सेवा के रूप में स्थापित करना चाहती है। दरभंगा जैसे शहर, जहां एक ओर राजवंश की गरिमा रही है, वहीं अब अपराध का एक नया चरित्र विकसित हो रहा है जिसमें अपराधी स्मार्ट है, नेटवर्क मजबूत है और प्रशासनिक लापरवाही उसका कवच है। ऐसे में एक SSP का सड़कों पर उतरना महज़ कार्रवाई नहीं, नायकत्व की वापसी है।

                                ADVERTISEMENT

एक उम्मीद, जो रात में जगी थी: जिस दरभंगा में लोग कभी पुलिस को देखकर रास्ता बदलते थे, उस दरभंगा में अब लोग चाहेंगे कि हर रात कोई पहरेदार हो, जो बिना शोर किए, उनके सपनों की रखवाली कर रहा हो। SSP का यह औचक निरीक्षण एक लकीर खींच गया है या तो व्यवस्था सुधरेगी, या जनता की उम्मीदें मर जाएंगी। लेकिन आज... उम्मीद फिर से जन्मी है। शायद कोई है, जो अपने शहर से अब भी प्यार करता है। शायद कोई है, जो वर्दी को जिम्मेदारी से ज्यादा समझता है उसे ‘वचन’ की तरह पहनता है।