मशाल जुलूस पर बरसी लाठियाँ, घायल कार्यकर्ता और मौन प्रशासन विजय सिन्हा की 48 घंटे की घड़ी अब टिक-टिक कर रही है: दरभंगा के डीएम कौशल कुमार और एसएसपी रेड्डी पर सवालों की बौछार!
इतिहास की पगडंडियों से निकलती मिथिला की राजधानी दरभंगा आज फिर एक सवाल के घेरे में है क्या जनता की आवाज़ अब सड़कों पर लाठी से दबाई जाएगी? क्या विरोध का लोकतांत्रिक अधिकार अब अनुमति की मुहर का मोहताज हो गया है? यह सवाल 7 जून की उस शाम के बाद और प्रखर हो उठा, जब भाजपा कार्यकर्ता दरभंगा नगर निगम की डिप्टी मेयर नाजिया हसन के विवादित बयान के विरोध में मशाल जुलूस लेकर उतरे और पुलिस लाठीचार्ज की चपेट में आ गए. पढ़े पुरी खबर........

दरभंगा: इतिहास की पगडंडियों से निकलती मिथिला की राजधानी दरभंगा आज फिर एक सवाल के घेरे में है क्या जनता की आवाज़ अब सड़कों पर लाठी से दबाई जाएगी? क्या विरोध का लोकतांत्रिक अधिकार अब अनुमति की मुहर का मोहताज हो गया है? यह सवाल 7 जून की उस शाम के बाद और प्रखर हो उठा, जब भाजपा कार्यकर्ता दरभंगा नगर निगम की डिप्टी मेयर नाजिया हसन के विवादित बयान के विरोध में मशाल जुलूस लेकर उतरे और पुलिस लाठीचार्ज की चपेट में आ गए।
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इस घटना में नगर अध्यक्ष आदित्य नारायण चौधरी समेत कई कार्यकर्ता घायल हो गए। कुछ को दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल (DMCH) में भर्ती कराया गया, जहां वे आज भी न्याय की आस लगाए पड़े हैं। पाँच दिन बीत गए, लेकिन अब तक न कोई प्राथमिकी दर्ज हुई, न ही घायलों का फर्द बयान।
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इसी चुप्पी को तोड़ने दरभंगा पहुंचे बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा। उनके चेहरे पर सिर्फ़ राजनीतिक प्रतिनिधित्व का भाव नहीं था, बल्कि प्रशासनिक सुस्ती पर व्यथा और आक्रोश की छाया भी साफ़ दिख रही थी। उन्होंने सीधे जिलाधिकारी कौशल कुमार और एसएसपी जगन्नाथ रेड्डी से मुलाक़ात की, घटना की पूरी जानकारी ली और फिर पत्रकारों से बातचीत करते हुए स्पष्ट कहा:
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भाजपा कार्यकर्ता जनता और सरकार के बीच सेतु हैं। इस सेतु को तोड़ने की कोशिश करने वाला चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, उसे बख्शा नहीं जाएगा। मैंने अधिकारियों को 48 घंटे का मोहलत दिया है। जल्द ही प्रशासन कार्रवाई सुनिश्चित करे। डिप्टी सीएम के शब्दों में जो दृढ़ता थी, वह प्रशासन के कानों में अलार्म की तरह गूंज रही होगी। यह कोई सामान्य चेतावनी नहीं थी, बल्कि सरकार के भीतर से आई एक 'पार्टी चेतावनी' थी अपने ही प्रशासन को।
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नाजिया हसन का बयान और मशाल जुलूस का उद्गार: दरअसल विवाद की शुरुआत नगर निगम की डिप्टी मेयर नाजिया हसन द्वारा सोशल मीडिया पर कथित रूप से आरएसएस की तुलना पाकिस्तान से करने वाले बयान से हुई। भाजपा कार्यकर्ताओं ने इसे न केवल राष्ट्रविरोधी करार दिया, बल्कि उन्होंने इसे मिथिला की परंपरा और विचारधारा पर चोट बताया। इसी के विरोध में 7 जून को मशाल जुलूस की घोषणा हुई। प्रशासन ने इसकी अनुमति नहीं दी, लेकिन कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए। झड़प हुई, पुलिस ने लाठी चलाई और लोकतंत्र के सेनानी घायल हो गए। प्रशासन ने इसे कानून व्यवस्था बनाए रखने का क़दम बताया, परंतु विपक्षी स्वर में इसे 'अभिव्यक्ति की हत्या' कहा गया।
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48 घंटे: उम्मीद, चिंता और दबाव का समय: डिप्टी सीएम विजय सिन्हा के बयान के बाद प्रशासनिक गलियारों में खलबली है। डीएम कौशल कुमार और एसएसपी जगन्नाथ रेड्डी पर अब नज़रें टिकी हैं। क्या वे निष्पक्ष जांच कराएंगे? क्या घायल कार्यकर्ताओं का बयान लिया जाएगा? क्या दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई होगी? यह 48 घंटे दरभंगा के लिए ‘संवेदनशील परीक्षा काल’ बन गया है। प्रशासन के लिए यह सिर्फ़ आदेश पालन का मामला नहीं, बल्कि उसकी विश्वसनीयता की परीक्षा है।
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घायल कार्यकर्ताओं की पीड़ा और भाजपा का आक्रोश: DMCH में भर्ती कार्यकर्ताओं में से एक ने संवाददाता से बात करते हुए कहा, “हमें न अपराधी समझा जाए, न उपेक्षित नागरिक। हम लोकतंत्र की रक्षा में खड़े थे, और उसी लोकतंत्र ने हमें घायल कर दिया। भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ताओं में जबरदस्त रोष है। जिलाध्यक्ष ने चेतावनी दी है कि यदि कार्रवाई नहीं हुई, तो पार्टी राज्यव्यापी आंदोलन करेगी।
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लाठी और लोकतंत्र का द्वंद्व: यह घटना कोई अपवाद नहीं, बल्कि संकेत है संवेदनशीलता की कमी, प्रशासनिक निष्क्रियता और राजनीतिक संवादहीनता का। डिप्टी सीएम ने 48 घंटे का समय दिया है, पर असली परीक्षा इस बात की है कि क्या 'लोकतंत्र की मशाल' इस बार जलाएगी न्याय का दीप, या फिर लाठी की आंधी में बुझ जाएगी? अब देखना दिलचस्प होगा कि 48 घंटे के भीतर दरभंगा प्रशासन क्या कदम उठाता है। क्या यह सिर्फ़ राजनीतिक दबाव की खानापूर्ति होगी या फिर घायलों को न्याय, और लोकतंत्र को सम्मान मिलेगा?