खंडहर की दीवारों से उठती थी साजिश की साँसें, चाबी और चुप्पी के बीच पलता था बाइक चोरों का अंधकार दरभंगा पुलिस की SIT ने जिस अंतरजिला गिरोह को धूल चटाई, उसकी हर चाल, हर गिरफ्तारी, और हर रहस्य की तह तक की सघन पड़ताल इस पूरी रिपोर्ट में पढ़ें!

एक ऐसा शहर जो किसी ज़माने में मिथिला की सांस्कृतिक राजधानी कहलाता था, आज अपने शहरी अंधेरों में गुम होता जा रहा है। यहां के मंदिरों की घंटियों के बीच, अब मोटरसाइकिल की तेज़ आवाज़ें और मोबाइल झपटने की चीखें सुनाई देती हैं. पढ़े पुरी खबर......

खंडहर की दीवारों से उठती थी साजिश की साँसें, चाबी और चुप्पी के बीच पलता था बाइक चोरों का अंधकार दरभंगा पुलिस की SIT ने जिस अंतरजिला गिरोह को धूल चटाई, उसकी हर चाल, हर गिरफ्तारी, और हर रहस्य की तह तक की सघन पड़ताल इस पूरी रिपोर्ट में पढ़ें!
खंडहर की दीवारों से उठती थी साजिश की साँसें, चाबी और चुप्पी के बीच पलता था बाइक चोरों का अंधकार दरभंगा पुलिस की SIT ने जिस अंतरजिला गिरोह को धूल चटाई, उसकी हर चाल, हर गिरफ्तारी, और हर रहस्य की तह तक की सघन पड़ताल इस पूरी रिपोर्ट में पढ़ें!

दरभंगा: एक ऐसा शहर जो किसी ज़माने में मिथिला की सांस्कृतिक राजधानी कहलाता था, आज अपने शहरी अंधेरों में गुम होता जा रहा है। यहां के मंदिरों की घंटियों के बीच, अब मोटरसाइकिल की तेज़ आवाज़ें और मोबाइल झपटने की चीखें सुनाई देती है।

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मध्यरात्रि की खामोशी में जब पूरा शहर नींद के स्वप्न में डूबा होता है, कुछ चेहरे अंधेरे की परछाइयों में ग़ुमनाम साजिशें रचते हैं। हाल के महीनों में जब शहर के अलग-अलग मोहल्लों से दो पहिया वाहनों की रहस्यमयी ग़ायबियों की घटनाएँ बढ़ीं, तो यह साफ़ हो गया कि कोई एकाध चोर नहीं, बल्कि एक सुव्यवस्थित गिरोह इस शहर की अस्मिता से खेल रहा है।

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लहेरियासराय, जो दरभंगा का दिल कहा जाता है वहां के वेलवागंज स्थित वंगाली टोला में, एक टूटी-फूटी दीवारों वाला खंडहर, दरअसल एक अपराधी नेटवर्क का संचालन केंद्र बन चुका था। शहर की चेतना सुस्त थी। परन्तु प्रशासन नहीं। और जब वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक दरभंगा के निर्देश पर सदर अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी के नेतृत्व में एक विशेष टीम गठित हुई तो यह तय हो गया कि अब शहर की नींद टूटेगी, और चोरों के सपनों में पुलिस का डर उतरेगा।

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अपराध की बनती लकीरें: शहर की छाती पर चलती दोपहिया तलवार: दरभंगा में मोटरसाइकिल चोरी कोई नई बात नहीं थी। यह वर्षों से चलता आ रहा अपराध है, जिसने आधुनिकता की आड़ में नेटवर्किंग, टेक्नोलॉजी और गैंग-सिस्टम के सहारे एक उद्योग का रूप ले लिया है।

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पिछले एक महीने में शहर के बेलबागान, कादिराबाद, किलाघाट, लहेरियासराय टावर चौक और चोटी-मोटी गली-कूचों से कुल मिलाकर 14 मोटरसाइकिलें ग़ायब हो गई थीं। चोरी का तरीका अत्यंत पेशेवर सटीक रूटीन, बिना शोर, और पलक झपकते गाड़ी ग़ायब। जब जांच शुरू हुई तो SIT के विशेष दस्ता को पता चला कि इन वाहनों का उपयोग केवल निजी लाभ के लिए नहीं, बल्कि शराब तस्करी, स्मैक की ढुलाई, और धन उगाही जैसे आर्थिक अपराधों में किया जा रहा है। हर गाड़ी एक अपराध की बुलेट बन चुकी थी।

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SIT की रात जब खंडहरों में भीड़ थी, और पुलिस का हौसला तेज़: वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के आदेश पर गठित स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) ने लगातार 5 दिनों तक गुप्त निगरानी रखी। पुलिस गश्ती जवान से लेकर सब-इंस्पेक्टर तक, सभी ने रात-दिन की परवाह किए बिना सिर्फ़ एक लक्ष्य रखा गिरोह का भंडाफोड़।

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और फिर 13 जून की रात, जब वेलवागंज वंगाली टोला रोड नं. 4 स्थित एक खंडहर से हलचल की खबर आई तो पु.अ.नि. अमित कुमार, पु.अ.नि. पीयूष कुमार, राजेश कुमार रंजन, बालकांत कुमार और मोटरसाइकिल गश्ती दल ने पूरे क्षेत्र को घेर लिया। पुलिस के पहुंचते ही चारों दिशाओं में भागते पैरों की आहट हुई पर एक चोर, रवि कुमार, वहीं दबोच लिया गया। उसकी जेब से मिली एक मोटरसाइकिल की चाभी, और खंडहर में छिपी एक काली पल्सर वो पहला सुराग था, जो एक पूरे जाल तक पहुंचने का रास्ता बन गया।

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गिरफ्तारी के बाद गूंजती गूंज जब चुप्पी टूटी और राज खुले: रवि कुमार की गिरफ्तारी महज़ एक कड़ी थी। परंतु SIT ने जैसे ही जाल कसना शुरू किया, गिरोह के बाकी सदस्य खुदबखुद फंसते चले गए। अगले 48 घंटों में सतत छापेमारी के दौरान सन्नी कुमार, सोनू कुमार और मुस्तफा को अलग-अलग स्थानों से गिरफ्तार किया गया।

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इन गिरफ्तारियों की प्रक्रिया में दरभंगा पुलिस ने जिस धैर्य, रणनीति और संगठित सूचना-संकलन का परिचय दिया, वह सामान्य अभियानों से भिन्न था। यह कोई साधारण धर-पकड़ नहीं थी, यह एक सर्जिकल स्ट्राइक थी अपराध की नसों में घुसकर, उन नसों को दबोच लेने की कार्यवाही। पुलिस अधीक्षक कार्यालय में जब चारों अपराधियों से बारी-बारी पूछताछ की गई, तो अपराध की चुप्पी, अपराधियों के चेहरे से उतरने लगी।

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सन्नी कुमार, जो लक्ष्मी सागर का निवासी है उसने खुलासा किया कि उनका एक अंतरजिला नेटवर्क है। यह नेटवर्क दरभंगा, मधुबनी और समस्तीपुर में सक्रिय है। हर इलाके में एक स्थानीय "गाइड" है जो निशाना तय करता है। चोरी के बाद गाड़ियों को "ठिकाने" लगाने के लिये गांव के ही किसी खंडहर, खेत या भट्ठे का उपयोग किया जाता है।

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सोनू कुमार ने कहा "हम मोटरसाइकिल सिर्फ़ चलाने के लिए नहीं चुराते थे, साहब। हमसे लोग शराब पहुँचवाते थे, स्मैक ले जाते थे, और कई बार 'काम' भी करवा देते थे।"

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'काम', यानी फर्जी छिनतई, संपत्ति विवाद में मारपीट, और कुछ मामलों में कर्ज वसूली में दबंगई।

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और फिर मुस्तफा ने जो राज खोले वो चौंका देने वाले थे। उसने बताया कि कई बार चोरी की गई मोटरसाइकिल को एक ही नंबर प्लेट से दो अलग-अलग गाड़ियों पर चलाया जाता था। पुलिस की आंखों में धूल झोंकने का यह तरीका पुलिसकर्मियों को भ्रम में डालने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। यानी दरभंगा की सड़कों पर एक ऐसी परछाई घूम रही थी जो दिखती एक ही थी, पर असल में दो चेहरे लिए चल रही थी।

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जब इतिहास खुद को दोहराता है: अपराधियों की आपराधिक पृष्ठभूमि का खुलासा: दरभंगा पुलिस ने चारों अपराधियों की क्रिमिनल हिस्ट्री खंगाली और जो निकला, वो डरावना था। यह कोई नवागंतुक चोर नहीं थे, ये वे चेहरे थे जिनके खिलाफ पहले से कई संगीन मामले दर्ज हैं। हर अपराधी अपने नाम के नीचे एक लंबी पंक्ति में मुकदमों की सूची रखता था जैसे कोई विद्यार्थी डिग्री दिखाता है।

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गैंग के अपराधिक इतिहास की झलक:

सदर थाना कांड सं. 236/21 — धारा 380/411/414/34 भा.द.वि.

(चोरी और अवैध संपत्ति रखने का मामला)

सदर थाना कांड सं. 96/22 — धारा 341/307/393

(हत्या की कोशिश और लूट का प्रयास)

नगर थाना कांड सं. 346/23 — धारा 392

(सीधी लूट)

समस्तीपुर नगर थाना कांड सं. 164/23

(मधुबनी-समस्तीपुर कॉरिडोर में गाड़ियों की चोरी)

नगर थाना कांड सं. 93/21 धारा 30(ए) बिहार मद्य निषेध अधिनियम

(शराब तस्करी में संलिप्तता)

नगर थाना कांड सं. 90/24 — धारा 379/411/414

(वाहन चोरी और अपराध से उपार्जित संपत्ति का उपयोग)

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यह अपराधी पहले भी जेल जा चुके हैं, कुछ तो जमानत पर बाहर थे। परंतु, जैसा अक्सर होता है सजा नहीं, बल्कि यह कानून की कमजोरी इन अपराधियों को फिर से अपराध की गोद में ले जाती रही। पर इस बार दरभंगा पुलिस ने इनकी फौरी गिरफ्तारी के साथ-साथ अभियोजन विभाग को भी सतर्क कर दिया है ताकि न सिर्फ़ गिरफ्तारी, बल्कि दंड भी सुनिश्चित हो।

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सटीक सूचना, सूझबूझ और साहस जब SIT ने दिखाया असली दम: SIT यानी Special Investigation Team नाम में ही विशेषता है, पर दरभंगा पुलिस की इस विशेष टीम ने जो कार्य किया, वह शब्दों के सीमाओं को लांघता है। इस टीम ने न सिर्फ़ सूचना संकलन की परिपक्वता दिखाई, बल्कि उस पर समयबद्ध और परिणामोन्मुखी कार्रवाई भी कर डाली। जब वेलवागंज वंगाली टोला के रोड नंबर 4 स्थित खंडहर में पहली बार छापेमारी हुई, तब अंधेरे में रवि कुमार पकड़ा गया। पर शेष चार अपराधी भाग खड़े हुए। यहीं पर SIT की असली परीक्षा शुरू होती है।

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अमित कुमार, पीयूष कुमार, राजेश कुमार रंजन, बालकांत कुमार और गश्ती टीम ने अगले 48 घंटों तक न दिन देखा, न रात। मोबाइल लोकेशन ट्रेसिंग, लोकल मुखबिर तंत्र और इलाके की पुरानी गतिविधियों की पड़ताल के सहारे उन्होंने जैसे इस पूरे गिरोह की नब्ज़ पकड़ ली। हर गिरफ्तारी एक युद्ध के सिपाही द्वारा उठाए गए झंडे की तरह थी एक इशारा कि कानून जीवित है और जाग रहा है। SIT की सबसे बड़ी सफलता यह रही कि उन्होंने न सिर्फ़ अपराधियों को पकड़ा, बल्कि उन्हें "शब्दों से भी हरा दिया" यानी पूछताछ में वह सब बाहर लाया जो आमतौर पर अपराधी छुपा जाते हैं।

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बरामदगियों में छिपे राज जब एक नंबर प्लेट दो पहियों पर सवार मिला: कई बार किसी अपराध की कहानी सिर्फ़ उसके पात्रों से नहीं, बल्कि बरामद वस्तुओं से कही जाती है। इस केस में जो चीज़ें बरामद हुईं, उन्होंने न सिर्फ़ चोरी की पुष्टि की, बल्कि आपराधिक नवाचार की भी पोल खोल दी।

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बरामद वस्तुएं: एक पल्सर मोटरसाइकिल बिना नंबर प्लेट, अपराधों के लिए उपयुक्त ‘गुप्त वाहन’।

दो पैशन प्रो मोटरसाइकिलें, जिनमें एक ही रजिस्ट्रेशन नंबर यह खुलासा बताता है कि अपराधी किस हद तक कानून को चकमा देने की कोशिश करते हैं।

मोबाइल फ़ोन जिससे अब कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) निकाले जा रहे हैं।

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मोटरसाइकिल की पाँच चाबियाँ यानी यह गिरोह कई अन्य मोटरसाइकिलों पर भी नजर गड़ाए हुए था। इन बरामद वस्तुओं से यह स्पष्ट होता है कि यह कोई "आवेश में किया गया अपराध" नहीं था। यह प्लांड ऑपरेशन था, पूरी रणनीति और तकनीकी उपयोग के साथ। एक ही रजिस्ट्रेशन नंबर से दो गाड़ियाँ यह कोई सामान्य चोरी नहीं, बल्कि फर्जीवाड़े का उच्चस्तरीय उदाहरण है।

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जनसरोकार, सामाजिक सन्देश और पुलिस की उपलब्धि का महत्त्व: दरभंगा पुलिस की यह कार्रवाई महज़ चार अपराधियों की गिरफ्तारी नहीं है यह एक जनचेतना का संदेश है। एक सार्वजनिक घोषणा कि दरभंगा की सड़कों पर अब अपराधियों की बाइक नहीं, पुलिस की निगरानी दौड़ेगी। जब शहर की जनता हर दिन चोरी की ख़बरों से घिरी थी, जब लोग बाइक खड़ी करने से डरते थे, जब हर चाभी की खटखट पर दिल धड़कता था तब इस कार्रवाई ने लोगों को सांस लेने का भरोसा दिया है। यह सिर्फ़ अपराध रोकने की नहीं, जनमन की भावना में न्याय की लौ जलाने की प्रक्रिया है।

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पुलिस के लिए यह सफलता इसलिए विशेष है: क्योंकि यह एक नेटवर्क को तोड़ना था, किसी अकेले को नहीं। क्योंकि यह स्थानीय अपराधियों को ही नहीं, उनके जिलेवार संपर्कों को भी उजागर कर रहा है। क्योंकि यह कार्रवाई जनता और पुलिस के बीच विश्वास की पुल बनाती है।

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जनता को संदेश: यह समय है कि जनता भी अब चुप न रहे। अगर मोहल्ले में कोई संदिग्ध गतिविधि दिखे, कोई रात में गाड़ी छेड़ता दिखे, कोई बिना नंबर प्लेट के वाहन से आता-जाता हो तो फ़ौरन पुलिस को सूचित करें। यही भागीदारी भविष्य की सुरक्षा की नींव बनेगी।

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दरभंगा की रातों में फिर उजास होगा: दरभंगा पुलिस ने यह दिखा दिया कि जब प्रशासन जागता है, तो अंधेरे में भी उजाला उगता है। यह कार्रवाई न सिर्फ़ अपराधियों की हार है, यह एक सिस्टम की जीत है वह सिस्टम, जो जनता के लिए, कानून के लिए और भविष्य की पीढ़ियों के लिए लड़ रहा है। SIT टीम के इन जांबाज़ अफसरों को सलाम, और दरभंगा पुलिस को यह शुभकामना कि वह अपराध के खिलाफ यह लौ और तेज़ करें ताकि आने वाले वर्षों में दरभंगा का नाम अपराध की चर्चा में नहीं, अपराध के खात्मे की मिसाल में लिया जाए।