हराही तालाब: वो शांत जलराशि, जो अब शहर की सिसकियों का गवाह बनती जा रही है — तीन दिन, दो लाशें और न जाने कितने सवाल जो अब जवाब माँग रहे हैं..."
दरभंगा की रगों में बहता इतिहास, सभ्यता की सांसें लेता शहर — और उसके बीचोंबीच बसा हराही तालाब — एक ऐसा तालाब जो वर्षों से इस नगर की आत्मा का हिस्सा रहा है। कभी सुबह की ताजगी में झील के किनारे हँसी की हल्की लहरें गूंजती थीं, बच्चों की किलकारियाँ गूंजती थीं, बुज़ुर्गों की प्रार्थनाएँ हवाओं में घुलती थीं। लेकिन आज... वही हराही तालाब खामोश है, गहरा है... और शायद दुखी भी. पढ़े पुरी खबर.......

मिथिला जन जन की आवाज संवाददाता समीर कुमार की विशेष रिपोर्ट: दरभंगा की रगों में बहता इतिहास, सभ्यता की सांसें लेता शहर — और उसके बीचोंबीच बसा हराही तालाब — एक ऐसा तालाब जो वर्षों से इस नगर की आत्मा का हिस्सा रहा है। कभी सुबह की ताजगी में झील के किनारे हँसी की हल्की लहरें गूंजती थीं, बच्चों की किलकारियाँ गूंजती थीं, बुज़ुर्गों की प्रार्थनाएँ हवाओं में घुलती थीं। लेकिन आज... वही हराही तालाब खामोश है, गहरा है... और शायद दुखी भी। तीन दिनों के अंदर दो लाशें... और दोनों की कहानी एक जैसी — मानसिक तनाव, अकेलापन, अवसाद और अंत में इस तालाब की आगोश।
ADVERTISEMENT
शुक्रवार को जिस समय शहर अपने रोजमर्रा की भागदौड़ में उलझा हुआ था, उसी समय हराही तालाब के पानी ने एक और लाश को बाहर उगला। यह लाश थी 60-62 वर्षीय मनोज कुमार झा की, जो पुअर होम के पास रहा करते थे। परिजनों के अनुसार वे कई वर्षों से मानसिक तनाव से गुजर रहे थे, नींद न आने की बीमारी थी, और हर रोज नींद की गोलियाँ खाकर जैसे खुद को किसी नींद के इंतजार में रखते थे — शायद शांति की नींद, जो अब इस तालाब के भीतर ही मिली। इससे महज दो दिन पहले, उसी तालाब ने 22 वर्षीय दिव्यांशु सिंह की लाश बाहर उगली थी — मधुबनी का रहने वाला वो युवक, जिसके पास सपने थे, लेकिन शायद सहारा नहीं था।
ADVERTISEMENT
वो भी अवसाद से पीड़ित था। और अंत में उसे भी बुलावा इसी तालाब से आया। क्या अब हराही तालाब मौत का आमंत्रण बन चुका है? क्या ये महज संयोग है? या फिर इस शांत जल की गहराइयों में कोई ऐसा मौन है, जो टूटे हुए मन को पुकारता है? क्या यह शहर अब टूटे हुए लोगों को संभाल नहीं पा रहा? क्या समाज की चुप्पी और सिस्टम की लापरवाही ने इस तालाब को "अंतिम विकल्प" बना दिया है? हराही तालाब अब सिर्फ एक जलकुंड नहीं रहा, यह एक ‘मौन चीख’ है — उन लोगों की, जो कुछ कह नहीं पाए, सुने नहीं गए और अंततः खामोश होकर इसी तालाब में समा गए। यह पहली बार नहीं है, जब हराही तालाब ने किसी लाश को बाहर निकाला हो।
ADVERTISEMENT
स्थानीय लोगों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में कई बार इसी स्थान से शव मिले हैं। हर बार कहानी बदलती है, लेकिन अंत एक जैसा होता है — कोई थका हुआ मन, एक टूटा सपना और एक लाश जो इस तालाब की गहराई में समा जाती है। प्रशासन पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतज़ार करता है, समाज खामोश हो जाता है, मीडिया अगले दिन की हेडलाइन बदल देता है — लेकिन हराही तालाब वही रहता है — वही गवाह, वही मौन साथी। क्या यह तालाब अब लोगों के अवचेतन में ‘मुक्ति स्थल’ बन चुका है? क्या इसकी लहरों में कोई ऐसा आकर्षण है जो थक चुके दिलों को बुला लेता है? हमारे संवाददाता समीर कुमार ने जब मौके पर लोगों से बातचीत की, तो कई वृद्धों की आँखें भर आईं।
ADVERTISEMENT
एक बुज़ुर्ग बोले, “बाबू, पहले यहाँ मंदिर की आरती गूंजती थी, अब एंबुलेंस की आवाज़ आती है… पहले लोग यहाँ जिंदगी की शुरुआत करते थे, अब ज़िंदगी का अंत होता है।” प्रश्न कई हैं — और उत्तर कोई नहीं। कहाँ है निगरानी? कहाँ है मानसिक स्वास्थ्य पर सरकारी योजनाओं की पहुँच? कहाँ हैं समाजसेवक जो लोगों के टूटते मन को सहारा दें? क्या अब हराही तालाब को चारों ओर से घेर देना ही समाधान है? या हमें खुद से भी सवाल करना चाहिए? हराही तालाब अब सिर्फ दरभंगा का भूगोल नहीं, बल्कि आत्मा का भूचाल है।
ADVERTISEMENT
ये लहरें अब सिर्फ पानी नहीं हिला रहीं, बल्कि हमारे संवेदनहीन समाज की नींव को भी। शहर को अब एक आईने की जरूरत है — और शायद हराही तालाब ही वो आईना है जिसमें हमें अपनी बेरुखी, उपेक्षा और चुप्पी साफ दिख रही है। यह विशेष रिपोर्ट संवाददाता समीर कुमार द्वारा तैयार की गई है, जो लगातार हराही तालाब की घटनाओं पर नजर बनाए हुए हैं।