संतोष की गिरफ्तारी नहीं, यह एक साहसी पत्रकार की कलम की विजय है: जब प्रीति की मृत्यु को आत्महत्या कहकर दबाने की हो रही थी साज़िश, और आशिष कुमार की लेखनी ने उसे जनचेतना की चिंगारी बना दिया

दरभंगा के बलभद्रपुर स्थित एनपी मिश्रा चौक की गली में 12 मई की वह दोपहर आज भी लोगों के जेहन में ठहरी है। 38 वर्षीय प्रीति झा, दो बच्चों की मां, अपने ही ससुराल में संदिग्ध परिस्थिति में बिस्तर पर पड़ी मिलीं। वह दृश्य सिर्फ़ एक शव नहीं, एक कहानी थी एक औरत की चुप्पी, पीड़ा, और अंततः मौत की गूंज. पढ़े पुरी खबर.......

संतोष की गिरफ्तारी नहीं, यह एक साहसी पत्रकार की कलम की विजय है: जब प्रीति की मृत्यु को आत्महत्या कहकर दबाने की हो रही थी साज़िश, और आशिष कुमार की लेखनी ने उसे जनचेतना की चिंगारी बना दिया
संतोष की गिरफ्तारी नहीं, यह एक साहसी पत्रकार की कलम की विजय है: जब प्रीति की मृत्यु को आत्महत्या कहकर दबाने की हो रही थी साज़िश, और आशिष कुमार की लेखनी ने उसे जनचेतना की चिंगारी बना दिया; फोटो: मिथिला जन जन की आवाज

दरभंगा के बलभद्रपुर स्थित एनपी मिश्रा चौक की गली में 12 मई की वह दोपहर आज भी लोगों के जेहन में ठहरी है। 38 वर्षीय प्रीति झा, दो बच्चों की मां, अपने ही ससुराल में संदिग्ध परिस्थिति में बिस्तर पर पड़ी मिलीं। वह दृश्य सिर्फ़ एक शव नहीं, एक कहानी थी एक औरत की चुप्पी, पीड़ा, और अंततः मौत की गूंज।

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यह मामला अगर आज गिरफ्तारी की ओर पहुंचा है तो इसके पीछे एक नहीं, कई आवाज़ें हैं। पर सबसे स्पष्ट और अडिग आवाज़ थी ‘मिथिला जन जन की आवाज’ की, जिसने इस केस को सतही समाचार से उठाकर जनमानस की चेतना का विषय बना दिया। आशिष कुमार की कलम ने न केवल सच को उजागर किया बल्कि उसे न्याय तक धकेलने में अहम भूमिका निभाई।

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धरना, संघर्ष और गिरफ्तारी का मुकाम: प्रीति के पिता अमरनाथ झा और न्याय मंच के सदस्यों ने न्याय की मांग में कोई कसर नहीं छोड़ी। धरना, ज्ञापन, सोशल मीडिया पर अभियान हर मंच से एक ही मांग थी: पति संतोष झा की गिरफ्तारी। लेकिन जब आरोपों पर चुप्पी छाई थी, तब 'मिथिला जन जन की आवाज' ने अपने धारदार रिपोर्टों से उस सन्नाटे को चीरा। आखिरकार सोमवार देर शाम वरीय पदाधिकारियों के आदेश पर पुलिस ने संतोष झा को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया। थानाध्यक्ष अमित कुमार ने बताया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद और वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर यह गिरफ्तारी की गई। उन्होंने इस रिपोर्ट को गंभीरता से लिया और बताया कि मामले की आगे की जांच पूरी पारदर्शिता से की जा रही है।

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मौत या हत्या? एक औरत की चुप्पी की गूँज: 18 वर्षों की शादी, दो छोटे बच्चे, और फिर एक दिन अचानक मौत। क्या यह वाकई आत्महत्या थी? या सतह के नीचे कोई और कड़वा सच छिपा था? पिता अमरनाथ झा ने लगातार कहा कि उनका दामाद संतोष झा शराबी था और प्रीति के साथ कई बार मारपीट करता था। मिथिला जन जन की आवाज ने इस विषय को लगातार उठाया। तथ्यों के साथ, संवेदना के साथ, और जिम्मेदारी के साथ। रिपोर्टिंग का यही स्वर था जिसने केस को धार दी और आमजन की सहानुभूति को जनदबाव में बदला।

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पुलिस और प्रशासन की भूमिका: दबाव में नहीं, दायित्व में: सदर एसडीपीओ अमित कुमार, तकनीकी टीम और महिला पुलिस अधिकारी ने शुरुआती जांच में जो संवेदनशीलता दिखाई, वह दुर्लभ है। फॉरेंसिक सबूत जुटाना, बच्ची से बयान लेना, दुपट्टा और नाखूनों के नमूने सुरक्षित करना यह सब पुलिस की तैयारी को दर्शाता है। हालांकि गिरफ्तारी में देरी पर सवाल उठे, पर अंततः कार्रवाई हुई और यह भरोसे का संकेत है।

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पत्रकारिता जब सच की मशाल थामे: इस पूरी घटना में पत्रकारिता की भूमिका एक बार फिर उजागर हुई। जब कुछ लोग चुप थे, तब 'मिथिला जन जन की आवाज' के प्रधान संपादक आशिष कुमार ने रिपोर्ट पर रिपोर्ट लिखी। जब इस खबर को फेसबुक पेज पर साझा किया गया, तो अश्विनी कुमार ने लिखा: "एक अच्छे और सच्चे पत्रकार का मिसाल दिया है आपने। आपसे आज के मीडिया बंधुओं को सीखने की ज़रूरत है ताकि सच को दबाया न जा सके।" यह टिप्पणी केवल एक तारीफ़ नहीं थी, बल्कि उस पत्रकारिता की गवाही थी जो अपने धर्म पर अडिग रही।

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अब सवाल यह नहीं कि गिरफ्तारी हुई या नहीं सवाल है, क्या अब न्याय होगा? क्या बच्ची की गवाही को सुरक्षा मिलेगी? क्या प्रीति के लिए न्याय का मार्ग निष्कलंक रहेगा? क्या यह केस दूसरे हजारों मामलों के लिए एक नजीर बनेगा?

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प्रीति की मौत अब केवल एक केस नहीं यह मिथिला की बेटियों की आवाज़ बन चुकी है: यह केस अब एक घरेलू त्रासदी से ऊपर उठकर सामाजिक चेतना का प्रतीक बन चुका है। यह वह अलार्म है जो हर घर में गूंजना चाहिए, ताकि किसी प्रीति को फिर चुप न रहना पड़े। प्रीति झा की मौत एक परिवार की निजी पीड़ा नहीं, एक समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है। और जब तक जवाबदेही की इस मशाल को 'मिथिला जन जन की आवाज' जैसे संस्थान उठाते रहेंगे, तब तक न्याय की लौ बुझ नहीं सकती।