"खून से सनी भक्ति की रात: अभिषेक की चीत्कार ने तोड़ा लालबाग का दिल"
दरभंगा के लालबाग मोहल्ला में चैती दुर्गा पूजा की खुशियां उस वक्त मातम में बदल गईं, जब प्रसाद को लेकर शुरू हुआ एक छोटा सा विवाद 20 साल के अभिषेक कुमार की जिंदगी पर भारी पड़ गया। सोमवार की देर रात तलवारों और धारदार हथियारों से लैस हमलावरों ने अभिषेक के घर में घुसकर ऐसा कहर बरपाया कि उसकी सांसें हमेशा के लिए थम गईं। उसकी बहन की चीखें आज भी गलियों में गूंज रही हैं, मां की आंखों से आंसुओं का सैलाब थमने का नाम नहीं ले रहा, और पिता का टूटा हुआ मन इस दर्द को बयां करने के लिए शब्दों से परे है. पढ़े पुरी खबर.......

बिहार। दरभंगा संवाददाता वरुण भगत: दरभंगा के लालबाग मोहल्ला में चैती दुर्गा पूजा की खुशियां उस वक्त मातम में बदल गईं, जब प्रसाद को लेकर शुरू हुआ एक छोटा सा विवाद 20 साल के अभिषेक कुमार की जिंदगी पर भारी पड़ गया। सोमवार की देर रात तलवारों और धारदार हथियारों से लैस हमलावरों ने अभिषेक के घर में घुसकर ऐसा कहर बरपाया कि उसकी सांसें हमेशा के लिए थम गईं। उसकी बहन की चीखें आज भी गलियों में गूंज रही हैं, मां की आंखों से आंसुओं का सैलाब थमने का नाम नहीं ले रहा, और पिता का टूटा हुआ मन इस दर्द को बयां करने के लिए शब्दों से परे है। आखिर त्योहार का यह पवित्र मौका दरभंगा में एक बार फिर खून से क्यों रंग गया?
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एक साधारण परिवार की त्रासदी: अभिषेक कुमार, अमरनाथ मंडल का इकलौता बेटा, अपने परिवार की उम्मीदों का आसमान था। 20 साल की उम्र में वह न सिर्फ अपने माता-पिता का सहारा था, बल्कि अपनी बहन का सबसे बड़ा हमदर्द भी। घर में उसकी हंसी गूंजती थी, और उसकी छोटी-छोटी शरारतें सबके चेहरों पर मुस्कान लाती थीं। वह अपने दोस्तों के बीच भी लोकप्रिय था और मोहल्ले में अपनी सादगी के लिए जाना जाता था। मगर उस रात, जब चैती दुर्गा पूजा की भक्ति अपने चरम पर थी, हमलावरों ने इस खुशहाल परिवार की जिंदगी को अंधेरे में धकेल दिया। अभिषेक का शव खून से लथपथ फर्श पर पड़ा मिला, और उसकी बहन की चीत्कार ने पूरे मोहल्ले को झकझोर कर रख दिया।
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विवाद की जड़ और साजिश का दावा: बताया जा रहा है कि यह सब प्रसाद वितरण के दौरान शुरू हुए एक मामूली कहासुनी से शुरू हुआ। चैती दुर्गा पूजा के बाद जब लोग प्रसाद बांट रहे थे, तब किसी बात को लेकर दो गुटों में तनातनी हो गई। कुछ का कहना है कि यह विवाद प्रसाद की मात्रा को लेकर था, तो कुछ का मानना है कि पुरानी रंजिश इसके पीछे थी। यह तनाव इतना बढ़ गया कि रात होते-होते हमलावरों ने अभिषेक के घर पर धावा बोल दिया। उसकी बहन का कहना है कि यह कोई अचानक हुई घटना नहीं थी। उसने आंसुओं से भरी आवाज में बताया, "तीन दिन पहले मोहल्ले के कुछ लड़कों से उसका झगड़ा हुआ था। वे लोग पहले से साजिश रच रहे थे। मेरा भाई बेकसूर था, उसे जानबूझकर मारा गया।" यह दावा इस हत्याकांड को और भी रहस्यमयी बना देता है। क्या वाकई यह एक सुनियोजित वारदात थी, या फिर गुस्से में लिया गया एक भयानक कदम? यह सवाल हर किसी के मन में कौंध रहा है।
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खूनी मंजर की भयावहता: सोमवार की रात जब मोहल्ला पूजा की थकान के बाद नींद में डूब रहा था, तभी हमलावरों का एक समूह अभिषेक के घर में घुस आया। उनके हाथों में तलवारें और धारदार हथियार चमक रहे थे। अभिषेक उस वक्त शायद अपने कमरे में था, जब हमलावरों ने दरवाजा तोड़कर अंदर प्रवेश किया। उसे संभलने का मौका भी नहीं मिला। हमलावरों ने उस पर ताबड़तोड़ वार किए, और उसकी चीखें हवा में गूंज उठीं। परिवार वाले और पड़ोसी मदद के लिए दौड़े, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। दीपक कुमार, जो शायद उसका दोस्त या रिश्तेदार था, उसे बचाने की कोशिश में आगे आया, मगर हमलावरों का गुस्सा इतना प्रचंड था कि वे अभिषेक की जान लेकर ही रुके। खून से सना घर, बिखरा हुआ सामान, और दीवारों पर छींटे पड़े खून के निशान उस रात की क्रूरता की गवाही दे रहे थे। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि हमलावरों ने वारदात को अंजाम देकर मौके से फरार होने में सिर्फ कुछ मिनट लगाए।
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परिवार का टूटा विश्वास और बहन की पुकार: अभिषेक की मौत ने उसके परिवार को पूरी तरह तोड़ दिया। मां बार-बार बेहोश हो रही है, और पिता खामोश बैठे उस रात को कोस रहे हैं। बहन का रो-रोकर बुरा हाल है। वह बार-बार कह रही है, "मेरा भाई किसी का बुरा नहीं करता था। उसे क्यों मारा? यह साजिश थी, उसे पहले से निशाना बनाया गया था।" उसकी यह पुकार न सिर्फ हमलावरों के खिलाफ गुस्सा जता रही है, बल्कि उस सच को सामने लाने की मांग भी कर रही है, जो शायद इस हत्याकांड के पीछे छिपा है। परिवार का कहना है कि अभिषेक शांत स्वभाव का था और किसी से दुश्मनी नहीं रखता था। वह अपने रोजमर्रा के कामों में मस्त रहता था और पूजा-पाठ में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता था। फिर आखिर उसकी जान की कीमत क्यों चुकानी पड़ी? यह सवाल उनके दिलों को कुरेद रहा है।
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त्योहार की रौनक पर खून का धब्बा: चैती दुर्गा पूजा बिहार में आस्था और भक्ति का एक अनमोल पर्व है। इस दौरान लोग मां दुर्गा की आराधना करते हैं, प्रसाद बांटते हैं, और एक-दूसरे के साथ खुशियां साझा करते हैं। दरभंगा में इस पर्व की अपनी अलग रौनक होती है, जहां मंदिरों में भक्तों की भीड़ और घरों में पूजा की तैयारियां नजर आती हैं। मगर इस बार लालबाग में यह पर्व एक बार फिर खून से रंग गया। वह प्रसाद, जो मां का आशीर्वाद माना जाता है, इस बार अभिषेक की मौत का बहाना बन गया। लालबाग की गलियां, जो कल तक मंत्रोच्चार और भक्ति के गीतों से गूंज रही थीं, आज सिसकियों और मातम से भरी हैं। लोग हैरान हैं कि एक छोटा सा विवाद इतनी बड़ी त्रासदी में कैसे बदल गया। क्या नफरत और रंजिश की आग इतनी भड़क चुकी है कि त्योहारों की पवित्रता भी उसे बुझा नहीं पा रही?
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मोहल्ले का माहौल और सवालों का सैलाब: इस हत्याकांड के बाद लालबाग में तनाव का माहौल है। लोग अपने घरों में सहमे हुए हैं, और गलियों में सन्नाटा पसरा है। बच्चे, बूढ़े, और जवान- हर कोई इस घटना से स्तब्ध है। मोहल्ले के लोग आपस में बात कर रहे हैं कि आखिर यह सब क्यों हुआ? क्या अभिषेक का कोई पुराना दुश्मन था? क्या प्रसाद का विवाद सिर्फ एक बहाना था? कुछ बुजुर्गों का कहना है कि पिछले कुछ सालों से मोहल्ले में छोटे-मोटे विवाद बढ़ रहे थे, मगर किसी ने सोचा भी नहीं था कि यह इतना भयावह रूप ले लेगा। और सबसे बड़ा सवाल- क्या यह हिंसा अब दरभंगा की पहचान बनती जा रही है? हर साल त्योहारों के मौके पर ऐसी घटनाएं इस शहर की धरती को दागदार क्यों कर रही हैं? लोग अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं, और इस घटना ने आपसी भरोसे को भी तोड़ दिया है।
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एक मां का दर्द, एक बहन का गुस्सा: अभिषेक की मां का रो-रोकर बुरा हाल है। वह अपने बेटे की तस्वीर को सीने से लगाकर कह रही है, "मेरा लाल चला गया, अब मैं किसके लिए जिऊंगी?" वह उस रात को याद करके सिहर उठती है, जब उसने अपने बेटे की चीखें सुनीं, मगर उसे बचा न सकी। उसकी आंखों में आंसुओं के साथ-साथ एक अनकहा दर्द है, जो शायद कभी खत्म नहीं होगा। दूसरी ओर, उसकी बहन का गुस्सा और दुख एक साथ उबाल मार रहा है। वह कहती है, "मैं अपने भाई के हत्यारों को सजा दिलवाकर रहूंगी। यह साजिश थी, और सच सामने आएगा।" उसकी यह जिद इस दुखद कहानी में एक उम्मीद की किरण भी जगाती है। वह अपने भाई की यादों को सहेजे हुए है- कैसे वह उसे त्योहारों में मदद करता था, कैसे उसकी हर छोटी बात का ध्यान रखता था। मगर अब वह सिर्फ यादों में रह गया।
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दरभंगा का अनसुलझा सवाल: दरभंगा, जो अपनी गंगा-कोसी की मिट्टी और मिथिला की संस्कृति के लिए जाना जाता है, आज एक बार फिर खून के धब्बों से लथपथ है। अभिषेक की हत्या सिर्फ एक परिवार का दुख नहीं, बल्कि उस सामाजिक माहौल का आलम है, जहां छोटी-छोटी बातें जानलेवा बन जाती हैं। पुलिस ने जांच शुरू कर दी है, और हमलावरों की तलाश जारी है। शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया गया है, और कुछ संदिग्धों को गिरफ्तार कर पूछताछ की जा रही है। मगर क्या यह जांच अभिषेक के परिवार को उनका बेटा लौटा पाएगी? क्या यह हिंसा का सिलसिला कभी थमेगा? अभिषेक की आत्मा को शांति मिले, यह दुआ हर कोई कर रहा है, मगर उसकी बहन की वह पुकार- "मेरे भाई को साजिश में मारा गया"- हर दिल को चीर रही है। क्या दरभंगा में त्योहारों की खुशी कभी बिना खून के लौट पाएगी? यह सवाल आज हर आंख में आंसुओं के साथ तैर रहा है।