सिंहवाड़ा की सियासत में झूठ की चादर फट गई मंत्री जीवेश कुमार पर मोबाइल छीनने का इल्ज़ाम लगाने वाले यूट्यूबर का सच घर से बरामद! एक महीने की जांच, तकनीकी पड़ताल और रातभर की छापेमारी ने खोला वो राज़, जिसने सियासत की जमीन हिला दी... अब बताइए, क्या मंत्री बदनाम थे या राजनीति में सस्ता प्रचार था असली मकसद?
दरभंगा के सिंहवाड़ा से निकली यह कहानी किसी फ़िल्म की पटकथा से कम नहीं। एक तरफ़ सत्ता, दूसरी तरफ़ सोशल मीडिया का शोर, और बीच में खड़ा वह शब्द “सच”, जो आखिरकार कानून के जाल में फँस ही गया। वो कहावत याद आती है “कानून का हाथ बहुत लंबा होता है, देर हो सकती है, लेकिन अंधेर नहीं।” और इस बार उस कहावत ने अपना पूरा अर्थ सिंहवाड़ा की धरती पर उतार दिया. पढ़े पूरी खबर......
दरभंगा के सिंहवाड़ा से निकली यह कहानी किसी फ़िल्म की पटकथा से कम नहीं। एक तरफ़ सत्ता, दूसरी तरफ़ सोशल मीडिया का शोर, और बीच में खड़ा वह शब्द “सच”, जो आखिरकार कानून के जाल में फँस ही गया। वो कहावत याद आती है “कानून का हाथ बहुत लंबा होता है, देर हो सकती है, लेकिन अंधेर नहीं।” और इस बार उस कहावत ने अपना पूरा अर्थ सिंहवाड़ा की धरती पर उतार दिया।

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पृष्ठभूमि: जब यूट्यूबर ने उठाई थी सियासी हलचल: 14 सितंबर का दिन। राजो रामपट्टी गांव में नगर विकास एवं आवास मंत्री जीवेश कुमार पहुंचे थे। गांव के यूट्यूबर दिलीप दिवाकर ने कैमरे के सामने मंत्री से सड़क की बदहाली पर सवाल पूछा। सवाल सीधा था, लेकिन राजनीति में सीधी बातें अक्सर तीर बन जाती हैं। फिर क्या था दिलीप ने आरोप लगाया कि मंत्री ने अपने समर्थकों के साथ मिलकर मारपीट की, कपड़े फाड़े, और मोबाइल छीन लिया। अगले ही दिन तेजस्वी यादव खुद सिंहवाड़ा थाना पहुंचे और मंत्री के खिलाफ FIR दर्ज कराई। पूरा मिथिला इलाका उस वक्त सियासी तूफ़ान में डूब गया था।

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और फिर एक महीने बाद पलट गया पूरा खेल: पुलिस की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ी, तकनीकी साक्ष्य एक अलग कहानी कहने लगे। एसडीपीओ शुभेन्द्र सुमन और थानाध्यक्ष बसंत कुमार ने जब मोबाइल की CDR रिपोर्ट निकाली, तो लोकेशन कहीं और नहीं बल्कि रामपट्टी गांव यानी दिलीप दिवाकर के ही घर की तरफ़ इशारा कर रहा था। शनिवार की रात भरवाड़ा बाजार में मोबाइल का सिग्नल पकड़ते ही पुलिस हरकत में आई। यूट्यूबर को थाने बुलाया गया पूछताछ हुई, और सच धीरे-धीरे खुद सामने आने लगा।

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छापेमारी और बरामदगी सच ने खोला अपना चेहरा: यूट्यूबर ने खुद कबूल किया कि उसके दो मोबाइल में से एक मोबाइल उसका भाई उपयोग कर रहा है। बस, फिर क्या था एसडीपीओ, थानाध्यक्ष और पुलिस बल ने दिलीप को साथ लिया और रामपट्टी गांव में छापेमारी की।गांव के लोगों के सामने जब पुलिस ने घर की तलाशी ली, तो दिलीप के भाई प्रिंस कुमार के पास से वही मोबाइल बरामद हुआ, जिसके छिन जाने की कहानी गढ़ी गई थी।मोबाइल जब्त कर पुलिस ने पंचनामा तैयार किया।

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तकनीकी जांच में चौंकाने वाले तथ्य: जांच में यह भी सामने आया कि दिलीप ने दो मोबाइल छिनने की बात कही थी। पहला मोबाइल तो उसके ही घर से मिल गया, जबकि दूसरा मोबाइल बिना सिम वाला बताया गया। तकनीकी टीम अब उस मोबाइल की भी लोकेशन और डेटा रिकवरी पर काम कर रही है। एसडीपीओ शुभेन्द्र सुमन ने कहा “कानून के सामने कोई कहानी नहीं चलती।जांच तकनीकी तथ्यों पर आधारित है। मोबाइल की बरामदगी साफ़ संकेत है कि सच्चाई किसी के दबाव में नहीं, सबूतों में छिपी थी।”

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राजनीति बनाम सच्चाई: अब सवाल यह नहीं कि मंत्री निर्दोष हैं या दोषी। सवाल यह है कि क्या राजनीतिक लाभ के लिए कानून के नाम पर एक कहानी रची गई थी?क्या जनता की सहानुभूति बटोरने के लिए सच्चाई को झूठ के पर्दे में छुपाया गया? तेजस्वी यादव की मौजूदगी में दर्ज की गई एफआईआर अब कई सवालों के घेरे में है क्योंकि वही मोबाइल जो “छिनने” की बात कही गई थी, वही घर से निकला। यह किसी राजनीतिक स्टंट की तरह नहीं तो और क्या है?

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सिंहवाड़ा पुलिस की तत्परता सच्चाई की जीत: जिस मामले ने पूरे बिहार की राजनीति में हलचल मचाई थी, उसकी जांच में सिंहवाड़ा पुलिस ने निष्पक्षता और धैर्य दोनों का परिचय दिया। कानून ने अपनी गति से काम किया, और आखिरकार सच्चाई के पाँव झूठ से तेज़ निकले। यह वही सिंहवाड़ा पुलिस है जो बिना किसी दबाव के रात में भरवाड़ा से लेकर रामपट्टी तक की धरती नापती रही, और आखिरकार सच को पकड़ लाई।

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जनता में चर्चा “अब क्या कहेंगे?”
गांव से लेकर दरभंगा शहर तक अब एक ही वाक्य गूंज रहा है “कानून का हाथ बहुत लंबा होता है।” आज वही लोग जो कैमरे के सामने आकर मंत्री को दोषी ठहरा रहे थे, अब सवालों के कटघरे में खड़े हैं। एक वरिष्ठ नागरिक ने कहा, “बेटा, कैमरा सब देखता है, लेकिन कानून उससे ज़्यादा गहरा देखता है। झूठ बोलने वालों को सच्चाई देर-सवेर बेनकाब कर ही देती है।”

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सिंहवाड़ा ने देखा सच झुकता नहीं: यह केस सिर्फ़ एक यूट्यूबर या एक मंत्री का नहीं, यह कानून और मीडिया की साख का टकराव था। जहां एक तरफ़ कैमरे की चमक थी, वहीं दूसरी ओर पुलिस की जांच की सटीकता।अंत में जीत उसी की हुई जो तथ्यों के साथ खड़ा रहा। सिंहवाड़ा की गलियों में अब यह कहावत दोहराई जा रही है “कानून का हाथ भले देर से उठे, लेकिन जब उठता है तो सच और झूठ का हिसाब बराबर करता है।”
