मोनिका आई थी पढ़ने… सीएम कॉलेज के दरवाज़े से भीतर गई… पर फिर न सीढ़ियाँ बोलीं, न सीसीटीवी ने कुछ दिखाया… एक माँ की ममता बिखर रही है… पिता की पुकार दरभंगा की गलियों में खो रही है… और अब जब प्रशासन मौन है, सांसद अनुपस्थित हैं। तो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने थामा है मोनिका की उम्मीदों का धागा… सवाल सिर्फ़ एक है मोनिका गई कहाँ?

वह भूमि जिसे मिथिला की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है, वह शहर जहाँ ज्ञान, परंपरा और आत्मीयता की धारा बहती है। परंतु आज यह भूमि कांप रही है, काँप रही है एक बेटी की चीख़ से जो अभी तक कहीं से नहीं सुनाई दी। सीएम कॉलेज की छात्रा मोनिका कुमारी, जो समस्तीपुर से पढ़ने आई थी, अब पाँच दिनों से लापता है। 27 जून 2025 की सुबह वह घर से निकली थी, ट्रेन से दरभंगा पहुँची, कॉलेज गई, सीसीटीवी में भी दिखाई दी लेकिन उसके बाद समय जैसे रुक गया। वह फिर कभी बाहर निकलते नहीं दिखी. पढ़े पुरी खबर.......

मोनिका आई थी पढ़ने… सीएम कॉलेज के दरवाज़े से भीतर गई… पर फिर न सीढ़ियाँ बोलीं, न सीसीटीवी ने कुछ दिखाया… एक माँ की ममता बिखर रही है… पिता की पुकार दरभंगा की गलियों में खो रही है… और अब जब प्रशासन मौन है, सांसद अनुपस्थित हैं। तो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने थामा है मोनिका की उम्मीदों का धागा… सवाल सिर्फ़ एक है मोनिका गई कहाँ?
यह सिर्फ़ ज्ञापन नहीं… एक माँ की सिसकती पुकार है, जिसे अभाविप ने दरभंगा पुलिस तक पहुँचाया है मोनिका को घर लौटाना अब समाज की ज़िम्मेदारी है।

दरभंगा: वह भूमि जिसे मिथिला की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है, वह शहर जहाँ ज्ञान, परंपरा और आत्मीयता की धारा बहती है। परंतु आज यह भूमि कांप रही है, काँप रही है एक बेटी की चीख़ से जो अभी तक कहीं से नहीं सुनाई दी। सीएम कॉलेज की छात्रा मोनिका कुमारी, जो समस्तीपुर से पढ़ने आई थी, अब पाँच दिनों से लापता है। 27 जून 2025 की सुबह वह घर से निकली थी, ट्रेन से दरभंगा पहुँची, कॉलेज गई, सीसीटीवी में भी दिखाई दी लेकिन उसके बाद समय जैसे रुक गया। वह फिर कभी बाहर निकलते नहीं दिखी।उसके बाद की हर घड़ी माँ के आँसुओं से भीगी हुई है, पिता की पुकार से कंपकंपाती हुई है, और दरभंगा की आत्मा से एक ही सवाल पूछती है "मोनिका कहाँ गई?"

मोनिका की सुबह और शाम के बीच का खोया हुआ दिन: पिता पवन कुमार शर्मा ने बताया कि 27 जून को सुबह 7 बजे उनकी बेटी समस्तीपुर से दरभंगा आने के लिए ट्रेन पर सवार हुई थी। 9 बजे उसने फोन कर बताया कि वह राजकुमारगंज में है। यह उसकी आखिरी आवाज़ थी, जो अब एक गूंजती हुई स्मृति बन चुकी है। उसके बाद उसका मोबाइल बंद हो गया। कई बार कॉल करने की कोशिश की गई, पर सन्नाटा ही लौटता रहा। जब दिन ढल गया और बेटी नहीं लौटी, तब शुरू हुई एक पिता की दौड़ हर उस कोने में, जहाँ वह सोच सकते थे कि शायद मोनिका होगी। कॉलेज पहुँचे, पूछताछ की, और जब सीसीटीवी खंगाला गया, तो पता चला कि मोनिका सुबह 8:59 पर कॉलेज के गेट से प्रवेश करती है, और 9:02 पर सीढ़ियों से ऊपर जाती हुई दिखती है।पर इसके बाद? इसके बाद सिर्फ़ एक लंबा, गहरा, डरावना अंधकार है।

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जब समाज के भीतर गूंजने लगी खामोशी: एक माँ की नींद उड़ गई है, एक पिता की आवाज़ थरथरा गई है। और पूरे मिथिला की आत्मा अब टकटकी लगाकर देख रही है दरभंगा पुलिस की ओर, कॉलेज प्रशासन की ओर, विश्वविद्यालय की ओर और उन जनप्रतिनिधियों की ओर, जिनके मौन में अब अपराध की बू आने लगी है।

                                   

अभाविप का हस्तक्षेप जब छात्र आंदोलन बना एक माँ की पुकार: 2 जुलाई 2025 को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP), दरभंगा के कार्यकर्ताओं ने पूरे प्रकरण को लेकर एक प्रतिनिधिमंडल के रूप में नगर पुलिस अधीक्षक अशोक कुमार चौधरी, कुलसचिव डॉ. दिव्या रानी हंसदा, और कॉलेज प्रशासन को ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में यह स्पष्ट रूप से कहा गया कि मोनिका की गुमशुदगी केवल एक छात्रा की अनुपस्थिति नहीं, बल्कि सामाजिक तंत्र की असफलता, महाविद्यालय परिसर की सुरक्षा की कमजोरी, और प्रशासनिक तंत्र की निष्क्रियता का प्रमाण है।

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अभाविप की पाँच प्रमुख माँगें इस प्रकार हैं:

1. छात्रा मोनिका की शीघ्र और सकुशल बरामदगी।

2. विशेष जाँच टीम का गठन।

3. कॉलेज परिसर में छात्राओं की सुरक्षा के लिए ठोस उपाय।

4. जवाबदेही तय की जाए चाहे वह प्रशासनिक हो या शैक्षणिक।

5. मोनिका कहाँ गई इसका स्पष्ट और पारदर्शी खुलासा किया जाए।

जब 'बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ' एक नारा मात्र बन गया: इस पूरे प्रकरण ने सरकार के सबसे भावनात्मक और महत्वपूर्ण अभियानों में से एक 'बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ' को कटघरे में खड़ा कर दिया है। अगर एक बेटी, जो अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए कॉलेज जाती है, वह बिना किसी सुराग के गायब हो जाती है और पाँच दिन बाद भी कोई अधिकारी, कोई जनप्रतिनिधि उसकी खोज में दिलचस्पी नहीं दिखाता तो यह नारा केवल दीवारों का सजावट बन कर रह जाता है।

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समस्तीपुर की सांसद शाम्भवी चौधरी की चुप्पी सवालों के घेरे में संवेदना: मोनिका समस्तीपुर की रहने वाली है। वहाँ की सांसद एक महिला हैं शाम्भवी चौधरी परंतु अब तक उनकी ओर से न कोई प्रतिक्रिया, न कोई ट्वीट, न कोई सार्वजनिक संवेदना सामने आई है। एक महिला सांसद की यह चुप्पी अब केवल राजनीतिक चुप्पी नहीं रह गई, यह सामाजिक असंवेदनशीलता की प्रतीक बन गई है। क्या एक ट्वीट इतना कठिन होता है? या संवेदना भी अब सत्ता से पूछकर आती है?

विश्वविद्यालय प्रशासन बंद कमरों में कैद उत्तर: ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय का प्रशासन अब तक इस पूरे मामले पर निष्क्रिय और मौन दिख रहा है। कॉलेज के प्राचार्य तक ने छात्रा की गुमशुदगी पर सहयोगात्मक रवैया नहीं दिखाया जैसा मोनिका के पिता ने बताया। क्या एक विश्वविद्यालय की गरिमा इतनी क्षीण हो गई है कि वह अपनी ही छात्रा के लापता होने पर मौन रह जाए?

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समाज की भूमिका क्या हम सिर्फ़ दर्शक बन कर रह गए हैं: मोनिका सिर्फ़ एक नाम नहीं है वह हर उस लड़की का प्रतीक है, जो छोटे शहरों से बड़ी उम्मीद लेकर कॉलेज की डगर पकड़ती है। यदि ऐसी एक भी बेटी लापता होती है, तो यह पूरे समाज की जिम्मेदारी है कि वह आवाज़ उठाए। दरभंगा की गलियों, गलियारों और गल्पों में अब यह चर्चा नहीं, एक सन्नाटा बन चुकी है। कोई कुछ कहता नहीं, पर सबकी आँखें बोल रही हैं "क्या मोनिका मिल जाएगी?"

पुलिस कह रही है कि जाँच चल रही है। कॉलेज कह रहा है कि सीसीटीवी में बस इतना ही दिखा। विश्वविद्यालय मौन है। सांसद चुप हैं। पर एक माँ रो रही है... और दरभंगा काँप रहा है... अब भी समय है। अब भी मोनिका को सकुशल लाया जा सकता है बशर्ते कि यह प्रयास सिर्फ़ जाँच का नहीं, एक बेटी के प्रति प्रेम का हो।अभाविप ने एक मोर्चा लिया है, एक माँ ने उम्मीद नहीं छोड़ी है, एक पत्रकार ने कलम उठाई है अब प्रशासन, जनप्रतिनिधियों और समाज का उत्तर देना बाकी है।