फरसे की धार, लाठी की चोट और सत्ता के नशे में चूर एक विधायक; 6 साल तक इंसाफ की राह तकती रही दरभंगा की माटी, और अब अदालत ने दिखाया कि लोकतंत्र में चाहे जितना ऊँचा सिंहासन हो, अपराधी को मिलती है जगह सिर्फ जेल में

राजनीति की चमचमाती गाड़ियों के पीछे अगर सच की रफ्तार थम जाए, तो समझ लीजिए अब न्याय की सीटी बज चुकी है। और इस बार सीटी बजी है सीधे अलीनगर विधानसभा से भाजपा के विधायक मिश्रीलाल यादव के लिए। एमपी/एमएलए कोर्ट ने गुरुवार को उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। वह भी किसी मामूली प्रशासनिक झंझट में नहीं, बल्कि फरसा से जानलेवा हमला और रक्तरंजित राजनीति के गंभीर आरोप में. पढ़े पुरी खबर.......

फरसे की धार, लाठी की चोट और सत्ता के नशे में चूर एक विधायक; 6 साल तक इंसाफ की राह तकती रही दरभंगा की माटी, और अब अदालत ने दिखाया कि लोकतंत्र में चाहे जितना ऊँचा सिंहासन हो, अपराधी को मिलती है जगह सिर्फ जेल में
फरसे की धार, लाठी की चोट और सत्ता के नशे में चूर एक विधायक; 6 साल तक इंसाफ की राह तकती रही दरभंगा की माटी, और अब अदालत ने दिखाया कि लोकतंत्र में चाहे जितना ऊँचा सिंहासन हो, अपराधी को मिलती है जगह सिर्फ जेल में

दरभंगा: राजनीति की चमचमाती गाड़ियों के पीछे अगर सच की रफ्तार थम जाए, तो समझ लीजिए अब न्याय की सीटी बज चुकी है। और इस बार सीटी बजी है सीधे अलीनगर विधानसभा से भाजपा के विधायक मिश्रीलाल यादव के लिए। एमपी/एमएलए कोर्ट ने गुरुवार को उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। वह भी किसी मामूली प्रशासनिक झंझट में नहीं, बल्कि फरसा से जानलेवा हमला और रक्तरंजित राजनीति के गंभीर आरोप में।

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क्या है मामला: यह घटना कोई ताजा नहीं है, बल्कि राजनीति की गहराई में छिपी छह साल पुरानी एक अंधेरी सुबह का कच्चा चिठ्ठा है, जब 29 जनवरी 2019 को समैला निवासी उमेश मिश्र मॉर्निंग वॉक पर निकले थे। वे स्वस्थ जीवन की तलाश में थे, लेकिन किस्मत ने उन्हें राजनीति की फौलादी क्रूरता से टकरा दिया। जैसे ही वे गोसाईं टोल पचाढी के कदम चौक पहुँचे, अचानक पूरब दिशा से भाजपा विधायक मिश्रीलाल यादव, सुरेश यादव और उनके साथ 20–25 हथियारबंद लोगों ने उन्हें घेर लिया। FIR के मुताबिक, गालियों की बौछार के बाद जब उमेश मिश्र ने विरोध किया, तब विधायक मिश्रीलाल यादव ने उनके सिर पर फरसे से वार कर दिया वह वार केवल सिर पर नहीं, बल्कि लोकतंत्र के मस्तक पर भी था।

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सिर फट गया, खून बहा, और मौके पर सुरेश यादव ने जेब से 2300 रुपये भी निकाल लिए। ये सिर्फ पैसे नहीं थे, एक नागरिक की गरिमा को नोंचने वाला घिनौना दुस्साहस था। उमेश मिश्र पहले केवटी पीएचसी और फिर डीएमसीएच में इलाज के लिए भर्ती हुए। इसके बाद 30 जनवरी 2019 को रैयाम थाना में FIR दर्ज कराई गई कांड संख्या 4/19।

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न्याय की सीढ़ियाँ, सत्ता की गिरावट: इस मामले में विचारण वाद सं. 884/23 के तहत न्यायिक प्रक्रिया चली। 21 फरवरी 2025 को तत्कालीन न्यायाधीश करुणानिधि प्रसाद आर्य ने भारतीय दंड संहिता की धारा 323 (मारपीट) में दोषी ठहराते हुए विधायक यादव और सुरेश यादव को 3 माह की जेल और 500 रुपये जुर्माना की सजा सुनाई। लेकिन जब कुर्सी की ताकत कमजोर पड़ती है, तब अपील की चादर फैलानी पड़ती है। यही किया अपील वाद सं. 03/25 में मिश्रीलाल यादव और सुरेश यादव ने सजा के खिलाफ दरभंगा एमपी/एमएलए कोर्ट में अपील दायर की।

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गुरुवार, 22 मई को विशेष न्यायाधीश सुमन कुमार दिवाकर ने अपील पर सुनवाई के बाद दोनों दोषियों को न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश पारित कर दिया। अब शुक्रवार को इस अपील पर अंतिम फैसला सुनाया जाएगा।

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क्या ये सिर्फ हमला था, या राजनीतिक सत्ता का उन्माद? जो विधायक जनता के दुःख को दूर करने के लिए चुना गया था, वो अब खुद दूसरों को लहूलुहान करने के आरोप में जेल की हवा खा रहा है। सवाल है क्या जनादेश का मतलब अब लाठी-फरसा और जेबकतरी है? भाजपा विधायक की यह घटना यह साबित करती है कि सत्ता जब ज़िम्मेदारी से विमुख होती है, तब वह अपराध में परिणत होती है। और यह सिर्फ एक विधायक की बात नहीं यह पूरे राजनीतिक व्यवस्था के उस चेहरे को बेनकाब करता है, जहाँ वोट मांगने वाले हाथ, फरसा उठाने में भी नहीं हिचकते।

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राजनीतिक बयानबाज़ी का इंतज़ार? अब तक न तो भाजपा की ओर से कोई आधिकारिक बयान आया है, न ही अलीनगर क्षेत्र से कोई समर्थन या विरोध। जनता सवाल कर रही है क्या विधायक जी को कानून के कठघरे से ऊपर समझा गया था? अगर नहीं, तो 6 वर्षों तक ये मामला दबा क्यों रहा? क्या राजनीति अब केस-मुकदमों की ढाल बन गई है?

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अदालत का अगला कदम निर्णायक होगा: विशेष लोक अभियोजक रेणु झा ने जानकारी दी है कि शुक्रवार को इस अपील वाद पर अंतिम फैसला सुनाया जाएगा। यानी या तो विधायक को राहत मिलेगी, या कानून का परचम और ऊँचा फहराएगा। दरभंगा जेल की सलाखें अब कुछ देर के लिए विधायी सत्ता के पहरेदार बन गई हैं। लेकिन इस सत्ता की शर्मिंदगी की गूंज बहुत दूर तक जाएगी संसद से सड़क तक, और न्याय से जनता तक।

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राजनीति को सजा की ज़रूरत है, पार्टी को आत्ममंथन की: विधायक चाहे किसी भी दल का हो जब वह जनता पर हाथ उठाए, तो उसे कानून की मुट्ठी में कसना ही चाहिए। मिश्रीलाल यादव का जेल जाना एक चेतावनी है कि सत्ता अगर मर्यादा तोड़ेगी, तो न्याय उसे घसीट कर सलाखों के पीछे ले जाएगा। आज अदालत ने सिर्फ एक फरसे की चोट पर फैसला नहीं सुनाया, उसने यह भी तय किया कि लोकतंत्र में जनता का खून बहाने वालों को, आखिर कानून नहीं बख्शता।