प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी से पहले मिथिला की चौखट पर मत्था टेकने की घोषणा: संजय सरावगी का पहला फैसला बना संदेश सत्ता से पहले आस्था, पद से पहले धरती, राजनीति से पहले जिम्मेदारी; श्यामा माई से कुशेश्वरस्थान तक चली वह यात्रा जिसने बता दिया कि यह अध्यक्ष केवल आदेश नहीं, संस्कार से चलेगा....
प्रदेश अध्यक्ष पद की घोषणा के तुरंत बाद संजय सरावगी ने किसी मंच, किसी औपचारिक अभिनंदन या राजनीतिक भाषण को प्राथमिकता नहीं दी। उन्होंने सबसे पहले उस धरती को नमन किया, जहां से उनका राजनीतिक जीवन शुरू हुआ मिथिला। भारतीय जनता पार्टी के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष संजय सरावगी ने पद संभालते ही जो कदम उठाया, वह केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं थी, बल्कि संगठन, कार्यकर्ताओं और जनता के लिए एक साफ संदेश था सत्ता की शुरुआत जमीन से होती है, और जमीन मिथिला है. पढ़े पूरी खबर......
दरभंगा: प्रदेश अध्यक्ष पद की घोषणा के तुरंत बाद संजय सरावगी ने किसी मंच, किसी औपचारिक अभिनंदन या राजनीतिक भाषण को प्राथमिकता नहीं दी। उन्होंने सबसे पहले उस धरती को नमन किया, जहां से उनका राजनीतिक जीवन शुरू हुआ मिथिला। भारतीय जनता पार्टी के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष संजय सरावगी ने पद संभालते ही जो कदम उठाया, वह केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं थी, बल्कि संगठन, कार्यकर्ताओं और जनता के लिए एक साफ संदेश था सत्ता की शुरुआत जमीन से होती है, और जमीन मिथिला है।

श्यामा माई मंदिर से शुरू हुई जिम्मेदारी की यात्रा: प्रदेश अध्यक्ष बनने की घोषणा के बाद श्री सरावगी सबसे पहले दरभंगा स्थित प्रसिद्ध श्यामा माई मंदिर पहुंचे। उन्होंने विधिवत पूजा-अर्चना कर मां श्यामा से आशीर्वाद लिया। इस दौरान मंदिर परिसर में बड़ी संख्या में कार्यकर्ता और स्थानीय लोग मौजूद थे। पूजा के बाद उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह धरती मेरे लिए माता के समान है। मेरी राजनीति, मेरी पहचान और मेरी ताकत यहीं से आई है।यह बयान सिर्फ भावनात्मक नहीं था, बल्कि यह उस राजनीतिक सोच को दर्शाता है, जिसमें नेतृत्व जनता से कटकर नहीं, बल्कि जनता के बीच रहकर किया जाता है।

शहर से गांव तक, हर जगह स्वागत लेकिन कोई शक्ति प्रदर्शन नहीं: दरभंगा पहुंचते ही शहर का माहौल बदला हुआ था। ढोल-नगाड़े बजे, फूल बरसे, नारे लगे लेकिन कहीं भी शक्ति प्रदर्शन या दिखावे की कोशिश नहीं दिखी। साफ नजर आया कि यह स्वागत किसी आदेश से नहीं, बल्कि स्वाभाविक उत्साह से हुआ।

आवास पर उमड़ी भीड़: मिथिला का बेटा, प्रदेश का अध्यक्ष: मंगलवार को दरभंगा स्थित उनके आवास पर सुबह से देर रात तक लोगों का आना-जाना लगा रहा। भाजपा कार्यकर्ता, सामाजिक प्रतिनिधि, व्यापारी, बुद्धिजीवी और आम नागरिक सब एक ही बात कह रहे थे: यह सिर्फ संजय सरावगी की जीत नहीं, पूरे मिथिला की जीत है। यह भीड़ किसी सरकारी आदेश से नहीं, बल्कि क्षेत्रीय गर्व और राजनीतिक स्वीकार्यता का प्रमाण थी।

बाबा कुशेश्वरस्थान: शिव के चरणों में संगठन की जिम्मेदारी: बुधवार की सुबह श्री सरावगी बाबा कुशेश्वरस्थान पहुंचे। यह वही स्थान है, जिसे मिथिला में बाबाधाम कहा जाता है। हजारों कार्यकर्ताओं के बीच उन्होंने भगवान शिव का जलाभिषेक किया और प्रदेश की शांति, संगठन की मजबूती और जनता के हित की कामना की। यहां उन्होंने कोई लंबा भाषण नहीं दिया, लेकिन उनका मौन ही बहुत कुछ कह गया यह यात्रा प्रचार की नहीं, प्रतिज्ञा की थी।

रास्ते भर स्वागत, लेकिन फोकस सिर्फ एक मिथिला: कुशेश्वरस्थान जाते समय रास्ते में दर्जनों जगहों पर कार्यकर्ताओं ने वाहन रोका, फूल-मालाएं पहनाईं, नारे लगाए। इसके बाद उन्होंने ज्वालामुखी मंदिर, नवादा भगवती मंदिर और हजारीनाथ मंदिर में दर्शन किए। हर मंदिर, हर पड़ाव एक ही बात दोहरा रहा था प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद भी संजय सरावगी खुद को सबसे पहले मिथिला का सेवक मानते हैं।

राजनीतिक संदेश साफ है और असरदार है: लगातार छह बार विधायक रह चुके और मंत्री पद संभाल चुके संजय सरावगी की यह पहली यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण है: यह संगठन को संकेत है कि नेतृत्व जमीन से जुड़ा रहेगा यह कार्यकर्ताओं को भरोसा है कि उनकी आवाज सुनी जाएगी यह जनता को संदेश है कि मिथिला हाशिये पर नहीं है यह यात्रा दिखावे की नहीं थी, बल्कि जिम्मेदारी की शुरुआत थी। प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद संजय सरावगी की यह पहली यात्रा बताती है कि आने वाला समय केवल कार्यालयों और मंचों तक सीमित नहीं रहेगा। यह राजनीति मंदिरों की सीढ़ियों से शुरू होकर जनता के दरवाजे तक जाएगी। मिथिला की मिट्टी को पहला प्रणाम यह सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि राजनीतिक दिशा का ऐलान है।
