दरभंगा के एनएच-27 पर स्कॉर्पियो की भीषण दुर्घटना मधुर मातृ-सेवा से लौटते सात लोगों पर वज्रपात, तीन की तत्काल मृत्यु; चार गंभीर घायल और मृत्युपथ पर चल रहे इन क्षणों में हाईवे इंस्पेक्टर शशिभूषण सिंह बने जीवन-रक्षक, जिन्होंने लोहे में पिसे शवों और घायल परिजनों को अपनी तत्परता से बाहर निकाला।

धुंध से ढकी भोर की नीरवता को चीरते हुए रविवार की सुबह दरभंगा–मुजफ्फरपुर एनएच-27 पर जो दृश्य उभरा, वह किसी जीवित व्यक्ति के मन-मस्तिष्क में सदियों तक न मिटने वाली कंपकंपी भर देने वाला था। सदर थाना क्षेत्र के दिल्ली मोड़ बस स्टैंड के समीप एक तेज़ रफ़्तार स्कॉर्पियो अनियंत्रित होकर एक लेन से दूसरी लेन में उछलती हुई डिवाइडर से टकरा गई ऐसे जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने उसे अचानक मृत्यु-गर्त में धकेल दिया हो। टक्कर इतनी प्रचंड, इतनी दारुण, इतनी मर्मांतक थी कि तीन लोगों ने वहीं, सड़क पर ही अंतिम श्वास ले लिया, जबकि चार जीवन मृत्यु और वेदना के बीच झूलते हुए डीएमसीएच के आपातकालीन वार्ड तक पहुँचे. पढ़े पूरी खबर.......

दरभंगा के एनएच-27 पर स्कॉर्पियो की भीषण दुर्घटना मधुर मातृ-सेवा से लौटते सात लोगों पर वज्रपात, तीन की तत्काल मृत्यु; चार गंभीर घायल और मृत्युपथ पर चल रहे इन क्षणों में हाईवे इंस्पेक्टर शशिभूषण सिंह बने जीवन-रक्षक, जिन्होंने लोहे में पिसे शवों और घायल परिजनों को अपनी तत्परता से बाहर निकाला।
दरभंगा के एनएच-27 पर स्कॉर्पियो की भीषण दुर्घटना मधुर मातृ-सेवा से लौटते सात लोगों पर वज्रपात, तीन की तत्काल मृत्यु; चार गंभीर घायल और मृत्युपथ पर चल रहे इन क्षणों में हाईवे इंस्पेक्टर शशिभूषण सिंह बने जीवन-रक्षक, जिन्होंने लोहे में पिसे शवों और घायल परिजनों को अपनी तत्परता से बाहर निकाला।

दरभंगा: धुंध से ढकी भोर की नीरवता को चीरते हुए रविवार की सुबह दरभंगा–मुजफ्फरपुर एनएच-27 पर जो दृश्य उभरा, वह किसी जीवित व्यक्ति के मन-मस्तिष्क में सदियों तक न मिटने वाली कंपकंपी भर देने वाला था। सदर थाना क्षेत्र के दिल्ली मोड़ बस स्टैंड के समीप एक तेज़ रफ़्तार स्कॉर्पियो अनियंत्रित होकर एक लेन से दूसरी लेन में उछलती हुई डिवाइडर से टकरा गई ऐसे जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने उसे अचानक मृत्यु-गर्त में धकेल दिया हो। टक्कर इतनी प्रचंड, इतनी दारुण, इतनी मर्मांतक थी कि तीन लोगों ने वहीं, सड़क पर ही अंतिम श्वास ले लिया, जबकि चार जीवन मृत्यु और वेदना के बीच झूलते हुए डीएमसीएच के आपातकालीन वार्ड तक पहुँचे, जहाँ डॉक्टरों ने उनकी स्थिति को “अत्यंत चिंताजनक” बताकर पूरे परिवेश को स्तब्ध कर दिया।

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यह कोई साधारण वापसी नहीं थी यह वह यात्रा थी, जिसमें मधेपुरा ज़िले के रैभी गाँव निवासी प्रमोद यादव के पुत्र गुड्डू कुमार अपनी बीमार माँ को पटना के IGIMS अस्पताल में जांच व उपचार करवाकर घर ला रहे थे। मातृ-सेवा के पवित्र दायित्व को निभाकर लौटते परिवार पर जब यह महावज्रपात हुआ, तो किस्मत की यह निर्ममता पूरे परिवेश को निःशब्द कर देने के लिए पर्याप्त थी।

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मामा, मौसा और चालक तीन दीपक एक ही क्षण में बुझ गए: स्कॉर्पियो में कुल सात लोग सवार थे। लौटते समय मातृ-धर्म की तपस्या लिए बैठे गुड्डू की आँखों के सामने दुर्घटना ने वह सब कुछ लील लिया, जिसकी कल्पना भर से आत्मा काँप उठे। उनके मामा, मौसा, और वाहन चालक तीनों ने मौके पर ही असमय, असहनीय, अनिर्वचनीय मृत्यु का दंश झेलकर दुनिया को अलविदा कह दिया। गाड़ी के भीतर फंसे लोगों की चीखें, धुएँ से भरी हवा, क्षत-विक्षत ढांचा… सब कुछ इतना भयावह था कि राह से गुजरते लोग भी सहम उठे।

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ट्रक चालक की मानवीयता ने बचाई चार जानें हाईवे इंस्पेक्टर शशिभूषण सिंह का अदम्य प्रयास: इस आपाधापी, रक्त और चीखों से भरे माहौल के बीच एक ट्रक चालक ने मानवीयता का परिचय देते हुए तुरंत हाइवे मोबाइल को सूचना दी। सूचना मिलते ही हाईवे इंस्पेक्टर शशिभूषण सिंह अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुँचे, और बिना एक क्षण गंवाए गाड़ी का टूटा ढांचा तुड़वाया, अंदर फँसे लोगों को खींच-खींचकर बाहर निकाला, कुछ को सीधा एम्बुलेंस में, और कुछ को प्राथमिक उपचार के बाद डीएमसीएच रेफर कराया। यदि यह तत्परता न होती, तो शायद मृतकों की संख्या और भयावह होती।

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घायल माँ का पैर टूटा, बाकी चार लोग निराशा की गहन खाई में: दुर्घटना में गुड्डू की बीमार माँ, जिन्हें वह पटना से दवा कराकर ला रहे थे, उनके पैर में गंभीर फ्रैक्चर हो गया है। बाकी तीन घायलों की हालत इतनी गंभीर है कि डॉक्टर अभी तक बयान देने की स्थिति में नहीं आए हैं। हाईवे पुलिस का कहना है घायलों की मानसिक व शारीरिक स्थिति संवाद योग्य नहीं है। उनका जीवन जैसे धागे की अंतिम कड़ी पर टिका हुआ है।

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धुंध, तेज़ रफ़्तार और सड़क सुरक्षा की उपेक्षा मौत का त्रिकोण: हालांकि जांच जारी है, पर प्रारंभिक सूचना यह दर्शाती है कि घना कोहरा, सड़क पर फिसलन, और वाहन की तेज़ रफ़्तार इन तीनों ने मिलकर इस बर्बादी का बीज बोया। एनएच-27 पर लगातार बढ़ रही दुर्घटनाओं पर प्रशासन की निश्चेतना और सतही मॉनिटरिंग एक बार फिर कटघरे में है।

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मातृ-सेवा से लौटते परिवार पर दुःख का महासमर गाँव में कोहराम, घरों में चित्कार: मधेपुरा के रैभी गाँव में यह खबर पहुँचते ही जैसे पूरा गाँव एक साथ शोक-सिंधु में डूब गया। किसी के आंगन में करुण विलाप, किसी के द्वार पर स्तब्धता की चादर, किसी के घर से मातमी चीत्कार, तो कहीं परिजनों का धरती पर सिर पटककर रोना… गाँव के बुजुर्ग कहते हैं इतना एक साथ तीन-तीन जनों का जाना… यह तो मानों ईश्वर के भी हृदय पर कठोरता की स्याही चढ़ने जैसा प्रतीत होता है।

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प्रशासन के लिए करारी चेतावनी कितनी और मौतें चाहिए जागने के लिए?

एनएच-27 की यह दुर्घटना कोई आकस्मिक घटना भर नहीं, बल्कि हमारी सड़क संरचनाओं, यातायात नियंत्रण की निष्क्रियता और आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली की अपर्याप्तता का सजीव सबूत है। कब तक लोग इसी तरह मरते रहेंगे? कब तक सड़कें चिताओं का मार्ग बनती रहेंगी? कब तक परिजन इलाज कराकर लौटते समय कफ़न में बदले घर पहुँचेंगे?

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इस त्रासदी का अंत नहीं यह एक प्रश्न है, एक पुकार है, एक चेतावनी है: दरभंगा की यह भयावह दुर्घटना केवल तीन मौतों का आँकड़ा नहीं यह मानवीय पीड़ा का वह दस्तावेज़ है जिसमें सड़क सुरक्षा की विफलता, प्रशासनिक शिथिलता और नियति की निर्ममता तीनों एक साथ दर्ज हैं। परिवार टूट गया। गाँव रो पड़ा। माँ की गोद और बेटे की आँखें दोनों आज खामोश हैं। और एनएच-27 का यह खंड आज भी उस चीख को याद कर काँप रहा है, जो तीन मृतकों ने अंतिम बार दुनिया को सुनाई थी।