चार दशकों बाद भी जीवित है कलम की ज्वाला और समाज सेवा का जज़्बा स्व. चंद्रदेव नारायण सिन्हा ‘चंदर बाबू’ की 40वीं पुण्यतिथि पर दरभंगा ने मूर्ति अनावरण से लेकर मर्चरी दान तक उन्हें किया नमन, पत्रकारों, साहित्यकारों, जनप्रतिनिधियों और समाजसेवियों की ऐतिहासिक उपस्थिति में यह आयोजन बन गया पत्रकारिता की विरासत और आदर्शों को पुनः याद करने का महापर्व
पत्रकारिता केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि समाज के हक़ और सच्चाई के लिए लड़ी जाने वाली एक जंग है। इसी जंग के सच्चे सिपाही, मिथिला की धरती पर अपनी कलम और अपने व्यक्तित्व से अमिट छाप छोड़ जाने वाले जाने-माने पत्रकार स्व. चंद्रदेव नारायण सिन्हा उर्फ चंदर बाबू की 40वीं पुण्यतिथि शुक्रवार को भगवान दास मोहल्ला स्थित उनके ही आवास पर बड़े ही गरिमामय और भावुक माहौल में मनाई गई। यह आयोजन श्रद्धांजलि सभा से आगे बढ़कर एक आत्मिक संगम बन गया जहाँ पत्रकारिता, साहित्य, समाजसेवा और जनकल्याण, सब एक साथ उपस्थित होकर स्व. चंदर बाबू को याद कर रहे थे. पढ़े पूरी खबर......

दरभंगा। पत्रकारिता केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि समाज के हक़ और सच्चाई के लिए लड़ी जाने वाली एक जंग है। इसी जंग के सच्चे सिपाही, मिथिला की धरती पर अपनी कलम और अपने व्यक्तित्व से अमिट छाप छोड़ जाने वाले जाने-माने पत्रकार स्व. चंद्रदेव नारायण सिन्हा उर्फ चंदर बाबू की 40वीं पुण्यतिथि शुक्रवार को भगवान दास मोहल्ला स्थित उनके ही आवास पर बड़े ही गरिमामय और भावुक माहौल में मनाई गई। यह आयोजन श्रद्धांजलि सभा से आगे बढ़कर एक आत्मिक संगम बन गया जहाँ पत्रकारिता, साहित्य, समाजसेवा और जनकल्याण, सब एक साथ उपस्थित होकर स्व. चंदर बाबू को याद कर रहे थे।
पत्रकारिता की मशाल थे चंदर बाबू: श्रद्धांजलि सभा की अध्यक्षता एक साथ दो वरिष्ठ हस्तियों ने की पत्रकार मदन मोहन चौधरी और प्रो. हरि नारायण सिंह कपूर। अपने अध्यक्षीय संबोधन में प्रो. हरि नारायण सिंह कपूर ने कहा: "स्वर्गीय चंद्रदेव नारायण सिन्हा की पत्रकारिता आज भी अनुकरणीय है। समाज बदलता गया, परिस्थितियाँ बदलीं, लेकिन सच्चाई की लड़ाई लड़ने वाले पत्रकारों का उदाहरण यदि कहीं है, तो वह चंदर बाबू हैं। आज पत्रकारिता में मूल्यों की जो कमी दिखती है, वह हमें उनकी याद दिलाती है।"
गाँव-समाज के भी पैरोकार थे: इस अवसर पर साहित्यकार मणिकांत झा ने चंदर बाबू के बहुआयामी जीवन को रेखांकित करते हुए कहा कि वह न केवल एक तेज़तर्रार पत्रकार थे, बल्कि अपने गाँव चतरिया के मुखिया के रूप में समाज सेवा की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले कर्मयोगी भी थे। संसाधनों का अभाव होते हुए भी उन्होंने अपने पंचायत को आगे बढ़ाने में जो योगदान दिया, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए सबक है। पत्रकार चाहे तो समाज की दशा बदल सकता है, बस कलम चलाने की जरूरत है।
मूर्ति अनावरण और सेवा कार्य: इस अवसर पर स्व. चंद्रदेव नारायण सिन्हा और उनकी पत्नी स्व. कृष्णा देवी की मूर्ति का भी अनावरण किया गया। जैसे ही परदा हटाया गया, पूरा वातावरण भावनाओं से भर गया। पत्रकार और निगम पार्षद नवीन सिन्हा ने समाज सेवा की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए कबीर सेवा संस्थान को तीसरा मर्चरी (शव वाहन) प्रदान किया। यह क्षण न केवल पुण्यतिथि को अर्थवान बना गया, बल्कि यह संदेश भी दे गया कि पत्रकारिता और समाजसेवा एक-दूसरे से अलग नहीं, बल्कि एक ही धरातल पर खड़े हैं।
पत्रकारों और साहित्यकारों की भावभीनी श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करने वालों में कई प्रतिष्ठित नाम शामिल रहे: संतोष दत्त झा ने कहा कि चंदर बाबू जैसे पत्रकारों ने मिथिला की पत्रकारिता को नई पहचान दी। प्रवीण बब्लू ने उनकी ईमानदारी और साहस को पत्रकारिता की रीढ़ बताया। संजय कुमार राय ने कहा कि चंदर बाबू की पत्रकारिता में न तो भय था, न ही समझौता। प्रहलाद कुमार कीलू ने भावुक स्वर में कहा कि चंदर बाबू अपने गाँव और समाज के लिए समर्पित योद्धा थे। अरुण शर्मा ने याद किया कि उनकी सरलता और सहजता सबके दिलों को छू लेती थी। कार्यक्रम का संचालन पत्रकार और निगम पार्षद नवीन सिन्हा ने किया। अतिथियों का स्वागत पत्रकार पुनीत कुमार सिन्हा ने किया।
गणमान्य अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति: श्रद्धांजलि सभा में पत्रकारिता, साहित्य, राजनीति और समाजसेवा से जुड़े कई गणमान्य लोग मौजूद रहे। उनमें प्रमुख थे:
पूर्व निगम पार्षद मधुबाला सिन्हा,
पत्रकार मनीष कुमार,
सरोज सिन्हा,
प्रदीप गुप्ता,
नासिर हुसैन,
सरफराज आलम,
संजय कुमार दास,
मनोज कुमार झा,
लक्ष्मण कुमार,
इरफान अहमद पैदल,
विपिन कुमार दास,
अरुण शर्मा,
सुनील भारती,
अमरेश्वरी चरण सिन्हा,
शशि मोहन भारद्वाज,
रितेश कुमार सिन्हा,
अब्दुल कलाम गुड्डू,
अविनाश कुमार मिश्रा,
माया शंकर सिन्हा,
गिरीश कुमार,
अमित कुमार,
नीरज कुमार राय,
जितेंद्र कुमार सिंह,
सचिन राम,
राजकुमार नायक,
मो. उमर,
प्रमोद कुमार गुप्ता,
प्रवीर कुमार मेहरोत्रा,
प्रशांत कुमार,
पद्मेश्वर सौरभ,
सुनील भारती,
राकेश कुमार नीरज,
अजय मोहन प्रसाद,
विपिन कुमार दास,
मुकेश कुमार,
सुभाष शर्मा,
अरविंद कुमार सिन्हा,
शशि कुमार नीलू,
राकेश कुमार,
आफताब जिलानी,
चंद्रजीत कुमार,
अब्दुल्ला अहमद,
दिलीप कुमार झा,
सुधांशु सिन्हा इत्यादि।
इन सभी की उपस्थिति ने इस आयोजन को और अधिक ऐतिहासिक और भावुक बना दिया।
पत्रकारिता का क़फ़िला और चंदर बाबू की यादें: पुण्यतिथि का यह आयोजन केवल एक औपचारिकता नहीं था। यह उस पीढ़ी को याद करने का अवसर था जिसने पत्रकारिता को मिशन माना, और समाज के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। आज जब पत्रकारिता पर सवाल उठते हैं, तो चंदर बाबू जैसे नाम हमें याद दिलाते हैं कि सच्ची पत्रकारिता वही है, जो आमजन के दुःख-दर्द की आवाज़ बने। इस तरह यह आयोजन पत्रकारिता और समाजसेवा दोनों का संगम बन गया। चंदर बाबू भले ही हमारे बीच शारीरिक रूप से नहीं हैं, पर उनकी कलम की ताक़त, उनकी ईमानदारी और उनकी आत्मीयता आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा प्रेरणा बनी रहेगी।