एक सांसद का बेटा, एक गुमशुदा पहचान, और एक जिले की रात-दिन एक करती पुलिस जब SDPO अमित कुमार और ‘मिथिला जन जन की आवाज’ ने मिलकर लिखा एक वापसी का महाकाव्य!

रविवार की वह सुबह सामान्य नहीं थी। दरभंगा की हवाओं में एक अजीब सी खामोशी थी। सियासत के गलियारों में गूंजने वाली बातें उस दिन किसी और चिंता में गुम थीं। मधुबनी सांसद अशोक यादव का पुत्र, विभूति कुमार यादव, अचानक लापता हो गया। वह जो अभी जीवन की युवा धारा में बह रहा था, वह अचानक ग़ायब हो गया बिना कोई संदेश, बिना कोई सुराग। न मोबाइल साथ था, न पर्स, न ही कोई संकेत. पढ़े पुरी खबर......

एक सांसद का बेटा, एक गुमशुदा पहचान, और एक जिले की रात-दिन एक करती पुलिस जब SDPO अमित कुमार और ‘मिथिला जन जन की आवाज’ ने मिलकर लिखा एक वापसी का महाकाव्य!
एक सांसद का बेटा, एक गुमशुदा पहचान, और एक जिले की रात-दिन एक करती पुलिस जब SDPO अमित कुमार और ‘मिथिला जन जन की आवाज’ ने मिलकर लिखा एक वापसी का महाकाव्य!

दरभंगा: रविवार की वह सुबह सामान्य नहीं थी। दरभंगा की हवाओं में एक अजीब सी खामोशी थी। सियासत के गलियारों में गूंजने वाली बातें उस दिन किसी और चिंता में गुम थीं। मधुबनी सांसद अशोक यादव का पुत्र, विभूति कुमार यादव, अचानक लापता हो गया। वह जो अभी जीवन की युवा धारा में बह रहा था, वह अचानक ग़ायब हो गया बिना कोई संदेश, बिना कोई सुराग। न मोबाइल साथ था, न पर्स, न ही कोई संकेत।

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जो शहर कल तक चुनावी नारों से गूंजता था, वह अब पोस्टरों से पट गया "यदि किसी को यह युवक दिखे..."। पर यह सिर्फ एक युवक की गुमशुदगी की सूचना नहीं थी, यह एक पिता के अधूरे वाक्य की पुकार थी, यह एक परिवार के संतुलन से डगमगाए पल थे।

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गुमशुदगी की खबर और तात्कालिक हरकतें: विभूति कुमार यादव, जो दिल्ली स्थित जिंदल लॉ स्कूल में LLB के द्वितीय वर्ष के छात्र हैं, कुछ दिन पहले ही दिल्ली से दरभंगा लौटे थे। रविवार सुबह आठ बजे वे अपने बंगाली टोला स्थित घर से निकले और फिर कभी वापस नहीं लौटे। न कोई फोन कॉल, न संदेश, न कोई भाव। उनके पीछे छूट गया एक ग़मगीन घर, एक परेशान पिता और एक बेचैन शहर।

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जब सांसद अशोक यादव ने लहेरियासराय थाना में बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई, तो पूरा पुलिस महकमा हरकत में आ गया। दरभंगा पुलिस, मधुबनी, समस्तीपुर, और मुजफ्फरपुर के सीमाई क्षेत्रों में भी सतर्कता बढ़ा दी गई। पुलिस की आंखें अब सिर्फ एक ही चेहरे को ढूंढ़ रही थीं विभूति कुमार यादव।

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साइबर सेल की भूमिका: डिजिटल सुरागों की खोज: जब युवक का मोबाइल घर पर ही पड़ा मिला, तब यह मामला और भी संवेदनशील हो गया। कोई लोकेशन नहीं, कोई कॉल लॉग नहीं। फिर भी साइबर सेल की टीम ने हार नहीं मानी। यह वह टीम थी जो शून्य से सुराग बुनती है, और हवा में भटके कणों को भी पहचान लेती है।

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CCTV फुटेज की पड़ताल प्रारंभ हुई। दरभंगा शहर के कोने-कोने में लगे कैमरों की निगाहें अब विभूति की परछाईं ढूंढ़ने लगीं। बैंक, पेट्रोल पंप, दुकानों और गलियों हर दृश्य को खंगाला गया। यह सिर्फ तकनीकी जांच नहीं थी, यह एक युवा को जीवन की मुख्यधारा में वापस लाने की जद्दोजहद थी।

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SDPO अमित कुमार की अगुवाई में चला अभियान: इस पूरे घटनाक्रम में एक नाम विशेष रूप से सामने आया दरभंगा के अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी (SDPO) अमित कुमार। उन्होंने न सिर्फ पुलिस बल को संगठित किया, बल्कि स्वयं इस खोजी अभियान की कमान संभाली। अमित कुमार की टीम ने रात भर जागकर, बिना थके, सीमावर्ती सड़कों पर निगरानी रखी।

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हर संभावित मार्ग समस्तीपुर, मधुबनी, मुजफ्फरपुर की ओर जाने वाली सड़कें, चौक, पुल, स्टेशन हर स्थान पर चौकसी बढ़ा दी गई। आखिरकार, शोभन मोड़, जो सिमरी थाना क्षेत्र में आता है, वहां से युवक को बरामद किया गया। वह शारीरिक रूप से कमजोर था, शरीर पर मच्छरों के काटने के निशान थे, और आँखों में थकान के बादल थे। लेकिन वह जीवित था, सुरक्षित था।

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एक पिता की पीड़ा और संतोष: सांसद अशोक यादव ने कहा, "बेटा रातभर सोया नहीं है। शरीर पर मच्छरों के काटने के निशान हैं। पता नहीं कुछ खाया भी है या नहीं। फिलहाल उससे कोई गंभीर बातचीत नहीं हुई है, लेकिन इतना निश्चित है कि वह डरा हुआ है, थका हुआ है।"

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यह बयान सिर्फ एक राजनेता का नहीं था, यह एक पिता के टूटते-बिखरते मन का सजीव प्रतिबिंब था। अशोक यादव ने यह भी कहा कि वे स्वयं पुलिस के साथ गए थे और उनके बेटे को पुलिस की गाड़ी में देखकर ही उनकी आंखें नम हो गई थीं। यह दृश्य एक पिता की व्यथा और पुलिस की सफलता का समन्वय था।

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राजनीतिक परिवार की संवेदनशीलता: विभूति का परिवार राजनीति के गलियारों का जाना-पहचाना नाम है। उनके दादा, हुक्मदेव नारायण यादव, देश के प्रतिष्ठित सांसदों में से एक रहे हैं, जिन्हें 2019 में पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया। अशोक यादव स्वयं दो बार केवटी विधानसभा से विधायक और अब दूसरी बार मधुबनी से सांसद हैं। ऐसे परिवार के सदस्य का अचानक ग़ायब हो जाना यह न केवल व्यक्तिगत पीड़ा थी, बल्कि राजनीतिक चेतना को भी झकझोर देने वाला प्रसंग था।

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भाजपा संगठन की सक्रियता: जैसे ही यह खबर फैली, भाजपा के स्थानीय एवं प्रांतीय संगठन सक्रिय हो गए। नेताओं ने प्रशासन से त्वरित कार्रवाई की मांग की, लेकिन उन्होंने संयम भी बरता। कोई राजनीतिक दबाव नहीं बनाया गया, जिससे पुलिस स्वतंत्र रूप से कार्य कर सके।

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वापसी: भावनाओं का ज्वार: जब विभूति वापस लौटे, तो शहर में राहत की लहर दौड़ गई। वह दृश्य, जब एक थका हुआ बेटा अपने घर पहुंचा, और पिता के कंधे पर सिर रख कर अंदर चला गया यह दृश्य लाखों शब्दों से अधिक वजनी था। यह वह क्षण था जब दरभंगा की जनता ने राहत की सांस ली, और पुलिस की कर्तव्यपरायणता को सलाम किया।

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पुलिस बल को सलामी: इस पूरे घटनाक्रम में दरभंगा पुलिस, विशेषकर SDPO अमित कुमार, साइबर सेल की टीम और फील्ड में कार्य कर रहे हर जवान ने जो सतर्कता, संवेदनशीलता और तत्परता दिखाई वह निस्संदेह एक मिसाल बन गई। यह वही पुलिस थी जो आलोचना की शिकार बनती है, लेकिन इस बार उसने यह सिद्ध कर दिया कि जब इरादे सच्चे हों और नेतृत्व दृढ़ हो, तो असंभव कुछ भी नहीं।

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यह सिर्फ एक खोज नहीं थी, यह भरोसे की पुनर्स्थापना थी: विभूति कुमार यादव की वापसी केवल एक युवक की घरवापसी नहीं थी, यह एक पिता के टूटते विश्वास का पुनर्निर्माण था। यह पुलिस और जनता के रिश्ते में भरोसे की नई ईंट थी। यह उस युवा की मानसिक यात्रा की शुरुआत भी थी, जिसने 32 घंटे अपनी दुनिया से परे बिताए। अब वह सिर्फ एक छात्र नहीं रहा, वह एक अनुभव का वाहक बन गया है।

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इस कथा को सिर्फ अखबारों के पन्नों तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि इसे हर पुलिस ट्रेनिंग अकादमी, हर प्रशासनिक संवाद, और हर जनप्रतिनिधि की डायरी में दर्ज होना चाहिए। क्योंकि यह घटना बताती है कि जब सिस्टम और संवेदना साथ-साथ चलें, तब एक खोई उम्मीद भी वापस लौट सकती है।