सिमरी थाने की अंधेरी कोठरी में मरा पंकज या मारा गया? बीमारी का बहाना बना 'सिस्टम', लेकिन पोस्टमार्टम की चीत्कारों ने उधेड़ दी इंसाफ की लाश! चार साल आठ महीने बाद जब उठी कानून की गर्दन, तो थानेदार से जवान तक हर चेहरा बेनकाब अब नहीं छुपेगा कोई!

मिथिला की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक राजधानी। जहां साहित्य की आत्मा बसती है, वहीं कुछ कोने ऐसे भी हैं जहां अब भी न्याय की चीखें दबा दी जाती हैं। ऐसा ही एक कोना है सिमरी थाना जहां एक 28 वर्षीय नौजवान पंकज कुमार महतो की संदिग्ध मौत ने पूरे पुलिस तंत्र की संवेदनहीनता को उजागर कर दिया। अगस्त 2020 की वह काली रात अब सरकारी फाइलों से निकलकर जनस्मृति में प्रवेश कर चुकी है। यह रिपोर्ट केवल एक घटना नहीं, एक आंदोलन है. पढ़े पुरी खबर......

सिमरी थाने की अंधेरी कोठरी में मरा पंकज या मारा गया? बीमारी का बहाना बना 'सिस्टम', लेकिन पोस्टमार्टम की चीत्कारों ने उधेड़ दी इंसाफ की लाश! चार साल आठ महीने बाद जब उठी कानून की गर्दन, तो थानेदार से जवान तक हर चेहरा बेनकाब अब नहीं छुपेगा कोई!
सिमरी थाने की अंधेरी कोठरी में मरा पंकज या मारा गया? बीमारी का बहाना बना 'सिस्टम', लेकिन पोस्टमार्टम की चीत्कारों ने उधेड़ दी इंसाफ की लाश! चार साल आठ महीने बाद जब उठी कानून की गर्दन, तो थानेदार से जवान तक हर चेहरा बेनकाब अब नहीं छुपेगा कोई!

दरभंगा: मिथिला की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक राजधानी। जहां साहित्य की आत्मा बसती है, वहीं कुछ कोने ऐसे भी हैं जहां अब भी न्याय की चीखें दबा दी जाती हैं। ऐसा ही एक कोना है सिमरी थाना जहां एक 28 वर्षीय नौजवान पंकज कुमार महतो की संदिग्ध मौत ने पूरे पुलिस तंत्र की संवेदनहीनता को उजागर कर दिया। अगस्त 2020 की वह काली रात अब सरकारी फाइलों से निकलकर जनस्मृति में प्रवेश कर चुकी है। यह रिपोर्ट केवल एक घटना नहीं, एक आंदोलन है।

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गिरफ्तारी से मौत तक सिर्फ 9 दिन में न्याय का खून: 16 अगस्त 2020: सिमरी थाना क्षेत्र के कंसी-शोभन के पास एक पिकअप वैन की लूट होती है। पीड़ित मुजफ्फरपुर निवासी था। मामला दर्ज हुआ कांड संख्या 167/20।

19 अगस्त: पुलिस कार्रवाई करती है। मुजफ्फरपुर के कुढ़नी से पंकज कुमार महतो और दो अन्य युवकों को गिरफ्तार किया जाता है। उनके पास से लूटा गया मोबाइल और पिकअप वैन की बरामदगी होती है।

25 अगस्त: तीनों को सिमरी थाना लाया जाता है। पूछताछ होती है।

27 अगस्त: अचानक सूचना मिलती है कि पंकज की तबीयत खराब है। पहले सिंहवाड़ा पीएचसी, फिर डीएमसीएच, अंततः पीएमसीएच रेफर किया जाता है।

3 सितंबर: पंकज की मौत हो जाती है।

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मृत्यु के बाद जो दस्तावेज तैयार हुए, उनमें लिखा गया: "बीमारी से मौत हुई। कोई चोट का निशान नहीं।" परंतु यही वह झूठ था, जिसने पूरे पुलिस तंत्र को झकझोर कर रख दिया।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट और न्याय की पहली चीख: पांच साल बाद जब न्याय की पहली खिड़की खुली, तब पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने न्यायपालिका को झकझोर दिया।

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रिपोर्ट कहती है: सिर पर भारी और कठोर वस्तु से वार,

नाक में पाइप डालने जैसा निशान, पीठ पर पट्टियों से ढंके गहरे घाव, शरीर पर कई जगह पुरानी चोट के निशान। तो अब सवाल उठता है अगर ये बीमारी थी, तो शरीर पर इतनी चोटें क्यों थीं? क्या वाकई पंकज को सिर्फ पूछताछ के लिए बुलाया गया था या ये 'हवालात का हत्याकांड' था?

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एफआईआर से न्याय की मशाल जलती है: मृतक के भाई और परिवार वालों ने अब 2025 में हत्या की प्राथमिकी दर्ज कराई है। उन्होंने साफ कहा है कि पुलिस ने पंकज को बर्बरता से पीटा, यातनाएं दी और झूठी मेडिकल रिपोर्ट बनवाकर मौत को 'प्राकृतिक' साबित करने का प्रयास किया। एफआईआर में उन सभी पुलिसकर्मियों के नाम हैं जो उस समय थाना में मौजूद थे

तत्कालीन थानाध्यक्ष: हरिकिशोर यादव (अब इंस्पेक्टर)

भरत राय (पुलिस पदाधिकारी)

शाहिद मोमीन (पुलिसकर्मी)

अन्य लगभग 9 से 10 वर्दीधारी

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प्रमोशन के पीछे दबा दर्द: जिस दिन पंकज की मां उसकी लाश के पास बैठकर रो रही थीं, उसी दिन कुछ पुलिसकर्मी 'अच्छे कार्य' के लिए प्रमोशन की तैयारी कर रहे थे। हरिकिशोर यादव आज किसी और जिले में इंस्पेक्टर हैं। भरत राय अब भी सेवा में हैं। शाहिद मोमीन का भी ट्रांसफर हो चुका है। कोई दंडित नहीं हुआ, कोई निलंबित नहीं हुआ। क्योंकि 'पंकज' गरीब था, पिछड़े वर्ग से था, और पुलिस के अनुसार 'आरोपी' था।

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एसएसपी जगुनाथ रेड्डी का आदेश अब बचेगा कोई नहीं: अब जब रिपोर्ट बाहर आई, तब वर्तमान एसएसपी जगुनाथ रेड्डी जलारेड्डी ने तेज कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा: "उस समय जो भी पुलिस पदाधिकारी और जवान थाना में मौजूद थे, उन्हें चिन्हित कर सूची बनाएं। पहले निलंबन, फिर विभागीय और कानूनी कार्रवाई की जाएगी।"

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इस आदेश के बाद पुलिस विभाग में हड़कंप है।

स्टेशन डायरी, उपस्थिति रजिस्टर, गार्ड की रिपोर्ट, जीडी एंट्री, मेडिकल रजिस्टर सब खंगाले जा रहे हैं।

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मां का बयान "अगर वो दोषी था, तो कोर्ट ले जाते, पीट पीटकर क्यों मारा?"

उसकी मां ने कहा: "हम गरीब लोग हैं। अगर मेरा बेटा दोषी था, तो कोर्ट ले जाते। केस चलता। लेकिन थाना में मार-मार कर मार डालना, और फिर बीमारी का बहाना बनाना—क्या यही है बिहार पुलिस का न्याय?"

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दबे दस्तावेज, झूठी मेडिकल रिपोर्ट और पुलिसिया लीपापोती: मामले की शुरुआती जांच में ही स्पष्ट हो गया था कि: मेडिकल रिपोर्ट में चोटों का जिक्र नहीं किया गया

पुलिस डायरी में 'बीमारी' शब्द का बार-बार उपयोग हुआ

पंकज की हालत बिगड़ने के बाद भी इलाज में देरी की गई

परिजनों को अंतिम समय तक सूचना नहीं दी गई

यानी पूरा मामला ‘प्रायोजित लीपापोती’ का था।

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क्या कहता है बिहार पुलिस मैनुअल?

बिहार पुलिस मैनुअल के अनुसार:

गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर कोर्ट में पेशी अनिवार्य है

आरोपी के स्वास्थ्य की निगरानी थाना स्तर पर अनिवार्य है

पूछताछ के समय वीडियो रिकॉर्डिंग व मेडिकल जांच अनिवार्य है

इनमें से एक भी प्रावधान का पालन नहीं हुआ।

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जनता पूछ रही है अब तक कार्रवाई क्यों नहीं?

अगर पोस्टमार्टम रिपोर्ट में चोटें थीं, तो UD केस क्यों बनाया गया?

प्रमोशन देने से पहले विभागीय जांच क्यों नहीं की गई?

चार साल तक केस को क्यों दबाया गया?

क्या पूरे तंत्र ने मिलकर एक हत्या को 'बीमारी' बना दिया?

ये खबर नहीं,इंसाफ की आवाज है: यह रिपोर्ट सिर्फ पंकज की हत्या नहीं, उन हजारों निर्दोषों की आवाज है जिन्हें थाने की चारदीवारी में कानून के नाम पर मारा गया।

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अब मांग है: सभी दोषियों की गिरफ्तारी हो

आईपीसी की धारा 302 के तहत मुकदमा चले

झूठी मेडिकल रिपोर्ट बनाने वाले डॉक्टर पर भी कार्रवाई हो

प्रमोशन निरस्त कर विभागीय जांच चले

इस रिपोर्ट को लिखते हुए ‘मिथिला जन जन की आवाज़’ का यह संकल्प और भी दृढ़ हुआ है कि हम अन्याय के विरुद्ध, चाहे वह वर्दी में छुपा हो या कुर्सी के पीछे, पूरी ताकत से बोलते रहेंगे। पंकज कुमार महतो की मौत को किसी केस फाइल की धूल में दबने नहीं दिया जाएगा। यह सिर्फ एक परिवार की नहीं, समाज की आत्मा पर लगे घाव की कहानी है। इस रिपोर्ट को पढ़ने के बाद अगर कोई जिम्मेदार अब भी चुप है, तो वह भी इस हत्या के नैतिक दोषी हैं।

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जिन्होंने जुल्म किया, वे तो दोषी हैं ही, पर जो खामोश रहे, वे भी अपराध के हिस्सेदार हैं। मिथिला की ज़मीन पर पनपे अन्याय की हर कहानी को हम आवाज़ देंगे जब तक आखिरी न्याय नहीं हो जाता।