"शब्दों की बारात और उद्घाटन का शोर, पर दरभंगा के अस्पतालों में अब भी दर्द का ही राजपाट: मंत्री मंगल पाण्डेय के सपनों की पट्टिका और ज़मीनी सच्चाई के बीच झूलता बिहार"

जननायक कर्पूरी ठाकुर चौक की धरती पर रविवार को शब्दों की बारात निकली। मंच सजा, माइक गूंजा, मंत्रीगण आए, उद्घाटन पट्टिकाएं चमकीं और अस्पतालों के नाम पर 29 करोड़ रुपये के सपने जनता को सौंप दिए गए। बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने गर्व से कहा “बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था बदल रही है।” शायद सच कहा उन्होंने। पर सवाल ये है कि कहां और कितना?..... पढ़े पुरी खबर.......

"शब्दों की बारात और उद्घाटन का शोर, पर दरभंगा के अस्पतालों में अब भी दर्द का ही राजपाट: मंत्री मंगल पाण्डेय के सपनों की पट्टिका और ज़मीनी सच्चाई के बीच झूलता बिहार"
"शब्दों की बारात और उद्घाटन का शोर, पर दरभंगा के अस्पतालों में अब भी दर्द का ही राजपाट: मंत्री मंगल पाण्डेय के सपनों की पट्टिका और ज़मीनी सच्चाई के बीच झूलता बिहार"

दरभंगा: जननायक कर्पूरी ठाकुर चौक की धरती पर रविवार को शब्दों की बारात निकली। मंच सजा, माइक गूंजा, मंत्रीगण आए, उद्घाटन पट्टिकाएं चमकीं और अस्पतालों के नाम पर 29 करोड़ रुपये के सपने जनता को सौंप दिए गए। बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने गर्व से कहा “बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था बदल रही है।” शायद सच कहा उन्होंने। पर सवाल ये है कि कहां और कितना?

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भाषण में बिहार चमक रहा था, लेकिन अस्पताल की असलियत पसीने से भीगी थी: डीएमसीएच परिसर में रविवार को जब मंत्री पांडेय 10 ऑपरेशन थियेटर का उद्घाटन कर रहे थे, तभी उसी भवन के दूसरे छोर पर एक बुजुर्ग महिला फर्श पर पड़ी कराह रही थी। बिस्तर नहीं मिला था। बेटा पर्ची के लिए लाइन में था। ऑक्सीजन मास्क एक ही था जो कभी इस मरीज के मुंह पर लगता, कभी पास के दूसरे मरीज के।

मंत्री ने कहा, “आज गांव-गांव अस्पताल खुल रहे हैं।” शायद आंकड़ों में ऐसा हो रहा हो। लेकिन ज़मीन पर हकीकत यह है कि कई पीएचसी भवनों में डॉक्टर नहीं, दवा नहीं, यहां तक कि दरवाज़े तक नहीं।

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विकास का उद्घाटन या अनदेखे दर्द पर पर्दा? 29.17 करोड़ की योजनाओं का शिलान्यास हुआ, जिनमें जीएनएम छात्रावास, सर्जिकल ब्लॉक, हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर जैसे नाम शामिल थे। पर सवाल ये नहीं है कि क्या बन रहा है, सवाल ये है कि जो बना है, वो चल रहा है क्या?

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गांवों में जो अस्पताल खुले हैं, वहां अगर कोई बच्चा बुखार से तप रहा हो, तो डॉक्टर कहता है “पटना दिखाइए, यहां मशीन नहीं है।” अगर कोई महिला प्रसव के दर्द से कराहे, तो एएनएम कहती है “गाड़ी का इंतज़ाम कीजिए, रेफर कर रहे हैं।”

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हॉस्पिटल या प्रतीक्षालय 'चारपाई' बिहार का स्टेचर है: डीएमसीएच में भले ही मंत्री पांडेय ने 10 ऑपरेशन थियेटर का उद्घाटन किया, लेकिन अंदर आज भी स्टेचर की जगह परिजन मरीज को खींचते दिखते हैं। कुछ वार्डों में बेड तो हैं, लेकिन गद्दे फटे हुए। कुछ में डॉक्टर हैं, लेकिन दवा नहीं। कुछ में ऑपरेशन थिएटर है, लेकिन सर्जन नहीं। क्या इसे ही 'परिवर्तन' कहा जाएगा?

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हकीकत ये है कि दरभंगा अब भी “सुपरस्पेशियलिटी” शब्द को तरस रहा है: स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि “2005 में मातृ मृत्यु दर बहुत अधिक थी, आज कम है।” ये बात सही है। लेकिन सिर्फ टीकाकरण के आंकड़ों से कोई समाज स्वस्थ नहीं, बल्कि सजग बनता है और सजगता तब आती है जब इलाज विश्वास से जुड़ता है। आज भी दरभंगा का कोई मरीज अगर गंभीर हो जाए, तो AIIMS पटना, IGIMS, PMCH की तरफ रेफर किया जाता है।

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“पैसे का संकल्प, लेकिन निगरानी का अभाव”: राज्य सरकार हर साल करोड़ों रुपये अस्पतालों के नाम करती है, लेकिन सवाल ये है कि इन पैसों का इस्तेमाल कैसे हो रहा है? क्या इन योजनाओं की ऑडिट रिपोर्ट सार्वजनिक होती है? क्या उद्घाटन के बाद कभी कोई मंत्री जाकर देखता है कि जिस भवन का उद्घाटन किया गया, वो चालू भी है या नहीं? दरभंगा ज़िले के कई ग्रामीण हेल्थ सेंटरों में भवन तो खड़े हैं, लेकिन ताले लटके हैं। एएनएम आती नहीं, नर्सिंग सपोर्ट नहीं, दवा स्टॉक नहीं।

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बीजेपी का मंच, स्वास्थ्य सेवा का संकट: कार्यक्रम में मंत्री संजय सरावगी, मदन सहनी, सांसद गोपालजी ठाकुर समेत कई नेता मौजूद थे। हर किसी ने एनडीए सरकार की पीठ थपथपाई। बोला गया कि “बिहार आत्मनिर्भर हो रहा है स्वास्थ्य में।” लेकिन सवाल यह है क्या आत्मनिर्भरता तब भी कहलाएगी, जब मरीज को ऑपरेशन के लिए 20 हज़ार की किट खुद खरीदनी पड़े? जब रेफरल का मतलब मौत का बुलावा बन जाए?

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सरकार की योजना सराहनीय हो सकती है, लेकिन जमीनी सच्चाई को स्वीकारना भी ज़रूरी है। बिहार को न उद्घाटन की राजनीति चाहिए, न गिनती का गर्व उसे ज़रूरत है ईमानदार चिकित्सा व्यवस्था की! परिवर्तन की नींव पट्टिका से नहीं, पसीने से रखी जाती है। मंत्री पांडेय को चाहिए कि वे एक दिन बिना गाड़ी, बिना लाव-लश्कर के किसी पीएचसी में चले जाएं तब समझ आएगा कि “बदलाव” का मतलब सिर्फ उद्घाटन नहीं, संवेदनशीलता की पुनर्स्थापना भी होता है।