रामबाग के संस्कृति इंटरनेशनल स्कूल का छात्र आदित्य फिर लापता! वही आदित्य, जिसे कुछ महीने पहले ‘मिथिला जन जन की आवाज’ की एक रिपोर्ट ने छपरा जंक्शन से खोज निकाला था... अब 16 दिनों से गुम, परिजनों का आक्रोश “हम मंत्री के वोटर हैं, फिर भी उन्होंने संवेदना तक नहीं जताई”... आंदोलन में गूंजा ‘संजय सरावगी मुर्दाबाद’ का नारा, दिन में मंत्री पहुंचे घर, कहा “बच्चा ज़रूर मिलेगा”!
रामबाग की गलियों में फिर मातम पसरा है। वही मोहल्ला, जहाँ कुछ महीने पहले एक बच्चे के लौटने की खुशी में दीप जले थे, अब उसी बच्चे आदित्य खंडेलवाल की गुमशुदगी पर सन्नाटा पसरा हुआ है। संस्कृति इंटरनेशनल स्कूल, रामबाग का 9वीं कक्षा का छात्र आदित्य अब लगातार 16 दिनों से लापता है। परिवार की आंखें सूख चुकी हैं, मां की आवाज़ थम चुकी है और पिता के पास अब सिर्फ़ एक उम्मीद बची है शायद कोई पत्रकार या भगवान फिर से उसे लौटा दे. पढ़े पूरी खबर.......

दरभंगा। रामबाग की गलियों में फिर मातम पसरा है। वही मोहल्ला, जहाँ कुछ महीने पहले एक बच्चे के लौटने की खुशी में दीप जले थे, अब उसी बच्चे आदित्य खंडेलवाल की गुमशुदगी पर सन्नाटा पसरा हुआ है। संस्कृति इंटरनेशनल स्कूल, रामबाग का 9वीं कक्षा का छात्र आदित्य अब लगातार 16 दिनों से लापता है। परिवार की आंखें सूख चुकी हैं, मां की आवाज़ थम चुकी है और पिता के पास अब सिर्फ़ एक उम्मीद बची है “शायद कोई पत्रकार या भगवान फिर से उसे लौटा दे।”
पहले भी गुम हुआ था आदित्य, और तब बचाया था ‘मिथिला जन जन की आवाज’ ने: यह वही आदित्य है, जो कुछ महीना पहले भी अचानक अपने घर से लापता हो गया था। उस समय परिवार की हालत बिल्कुल यही थी अफरा-तफरी, बेचैनी, और दरभंगा पुलिस की सुस्त कार्यशैली। पर हालात तब बदले, जब ‘मिथिला जन जन की आवाज समाचार’ ने प्रधान संपादक आशिष कुमार की कलम से एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की जिसने प्रशासनिक तंत्र को हिला दिया। सिर्फ़ 12 घंटे के भीतर छपरा जंक्शन से आदित्य को पुलिस ने बरामद किया था। परिजन खुद मिथिला जन जन की आवाज़ के कार्यालय पहुंचे थे, और उसी रिपोर्ट की तारीफ़ करते हुए कहा था अगर ‘मिथिला जन जन की आवाज’ वह खबर नहीं चलाता, तो शायद हमारा बेटा आज भी नहीं मिलता। आज वही परिवार फिर से उसी कड़वी स्थिति में है फर्क सिर्फ़ इतना है कि अब उम्मीदों की जगह सन्नाटा है, और दर्द कहीं ज़्यादा गहरा।
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धरना में फूटा आक्रोश, मंत्री के खिलाफ नारेबाज़ी: रविवार को दरभंगा टावर चौक पर जब आदित्य की बरामदगी की मांग को लेकर सैकड़ों लोग धरने पर बैठे, तो हवा में सिर्फ़ एक ही नाम गूंज रहा था “आदित्य को वापस लाओ।” धरने का नेतृत्व महानगर युवा राजद के अध्यक्ष राकेश नायक ने किया। धरने में शामिल परिजनों और स्थानीय नागरिकों ने आरोप लगाया कि पुलिस की कार्यशैली बेहद लचर है। परिजन ने बताया की हम दरभंगा के डीएम, एसएसपी और सभी वरीय अधिकारियों से मिल चुके हैं, पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। पुलिस कहती है कि अगर कोई सूचना मिले तो बताइए। आखिर हम ही क्यों खोजें? प्रशासन क्या कर रहा है? आंदोलन के दौरान एक क्षण ऐसा भी आया जब भीड़ ने नारे लगाने शुरू कर दिए “संजय सरावगी मुर्दाबाद!” पूरा टावर चौक इस नारे से गूंज उठा।
परिजनों का दर्द “वोट मांगने आए, पर संवेदना जताने नहीं”: आदित्य के पिता और परिजनों ने कहा कि नगर विधायक सह भूमि सुधार मंत्री संजय सरावगी उनके घर से कुछ ही दूरी पर रहते हैं। उन्होंने कहा हम लोग उनके वोटर हैं। जब चुनाव आता है तो वे खुद घर आकर वोट मांगते हैं, लेकिन इस दुःख की घड़ी में उन्होंने एक बार भी हमारे घर आकर हमारी स्थिति नहीं पूछी। क्या आम आदमी का दर्द इतना भी छोटा हो गया है? धरने में मौजूद महिलाओं की आंखों में गुस्सा और दर्द दोनों थे। कई ने कहा अगर यही बच्चा किसी नेता का होता, तो 48 घंटे में पूरी बिहार पुलिस लग जाती। पर एक आम आदमी का बेटा गुम हो जाए, तो सब चुप हैं।
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मंत्री पहुंचे पीड़ित परिवार के घर: आंदोलन की तीव्रता और जनता के उबाल को देखते हुए, सोमवार को मंत्री संजय सरावगी खुद गाँधी चौक स्थित पीड़ित परिवार के घर पहुंचे। उन्होंने आदित्य की गुमशुदगी पर गहरा दुख व्यक्त किया और कहा मैं परिवार के साथ हूं। दरभंगा पुलिस को सख्त निर्देश दिया गया है कि बच्चे की सुरक्षित बरामदगी के लिए हर संभव संसाधन लगाए जाएं। मैं खुद इस मामले की निगरानी कर रहा हूं। मंत्री के इस कदम से परिवार को कुछ राहत ज़रूर मिली, पर शहर में यह सवाल अब भी गूंज रहा है क्या दिन की संवेदना उस अंधेरे को मिटा सकती है जो हर रात इस परिवार की चौखट पर उतर आता है?
संस्कृति इंटरनेशनल स्कूल से भी उठे सवाल: आदित्य संस्कृति इंटरनेशनल स्कूल का छात्र था। लोगों का कहना है कि स्कूल प्रशासन को भी यह बताना चाहिए कि आदित्य का व्यवहार पिछले दिनों कैसा था क्या वह किसी मानसिक तनाव में था या किसी दबाव का शिकार? इस सवाल का जवाब अब तक स्कूल प्रबंधन ने सार्वजनिक रूप से नहीं दिया है। पत्रकारिता के तौर पर यह भी महत्वपूर्ण होगा कि स्कूल के प्रिंसिपल से यह पूछा जाए कि क्या स्कूल को पहले से कोई संकेत था कि बच्चा किसी परेशानी में है?
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दरभंगा प्रशासन की कार्यशैली पर बड़ा सवाल: पिछले 16 दिनों में पुलिस की कार्रवाई नाममात्र की रही है। कई बार परिजनों ने कहा कि “थाना में जाकर बस एक ही जवाब मिलता है ‘जानकारी मिले तो बताइए।’धरना स्थल पर एक बुज़ुर्ग ने कहा “जब तक अखबार और मीडिया नहीं लिखता, तब तक प्रशासन की नींद नहीं टूटती। दरभंगा अब संवेदना नहीं, व्यवस्था के पत्थर में बदल गया है।”
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‘मिथिला जन जन की आवाज’ फिर मैदान में: जैसे पहले की बार, इस बार भी ‘मिथिला जन जन की आवाज समाचार’ इस मामले को प्रमुखता से उठा रहा है। प्रधान संपादक आशिष कुमार ने कहा यह मामला सिर्फ़ एक परिवार का नहीं, बल्कि पूरे समाज की संवेदनशीलता की परीक्षा है। जब एक बच्चा गायब होता है, तो पूरा शहर जिम्मेदार होता है। हम पत्रकारिता को न्याय की आवाज़ बनाकर इस बार भी आदित्य को लौटाने की कोशिश करेंगे।
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रामबाग की गलियों में अब भी आदित्य के नाम की पुकार है। उसके स्कूल बैग पर धूल जम चुकी है, पर मां अब भी दरवाज़े की आहट पर चौंक जाती है “शायद आदित्य आया हो…” दरभंगा का यह मामला अब केवल एक बच्चे का नहीं यह पूरे सिस्टम का आईना है। जहाँ नेता संवेदना जताने देर करते हैं, पुलिस कार्रवाई में सुस्त रहती है, और पत्रकार ही आखिरी उम्मीद बन जाते हैं।