"बाल सुधार गृह की दीवारों के भीतर गूंजता एक मासूम की चीख… और अब जाँच के लिए खड़ा हुआ है कानून का सिपाही – दीपक कुमार"
दरभंगा की हवाओं में आज एक दर्द तैर रहा है। एक माँ की गोद सूनी हो गई, एक पिता की आँखों का तारा बुझ गया, और एक चाचा की चेतावनी—जो वक़्त रहते अनसुनी रह गई—आज पूरे तंत्र पर सवाल खड़ा कर रही है। यह कोई साधारण मौत नहीं थी, यह एक सिस्टम की चूक थी। और यह चूक हुई वहाँ, जहाँ बच्चों को सुधारने की जिम्मेदारी थी—बाल सुधार गृह में. पढ़े पुरी खबर......

दरभंगा। मिथिला जन जन की आवाज प्रधान संपादक आशिष कुमार की विशेष रिपोर्ट: दरभंगा की हवाओं में आज एक दर्द तैर रहा है। एक माँ की गोद सूनी हो गई, एक पिता की आँखों का तारा बुझ गया, और एक चाचा की चेतावनी—जो वक़्त रहते अनसुनी रह गई—आज पूरे तंत्र पर सवाल खड़ा कर रही है। यह कोई साधारण मौत नहीं थी, यह एक सिस्टम की चूक थी। और यह चूक हुई वहाँ, जहाँ बच्चों को सुधारने की जिम्मेदारी थी—बाल सुधार गृह में।
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घटना का क्रूरतम सच: समस्तीपुर जिले के रोसड़ा थाना क्षेत्र के टेहटा गांव का रहने वाला 17 वर्षीय अमरजीत कुमार, बीते कई दिनों से दरभंगा के लहेरियासराय थाना क्षेत्र स्थित बाल सुधार गृह में बंद था। शुक्रवार की शाम वह गंभीर रूप से घायल अवस्था में डीएमसीएच लाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। लेकिन मौत से पहले अमरजीत की चीखें, उसकी घबराई हुई कॉल्स, और बार-बार भेजे गए पैसे की मांग आज हर आम आदमी के रोंगटे खड़े कर रही है।
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“मुझे यहां से निकालिए, नहीं तो कुछ अनहोनी हो सकती है…” ये वो शब्द थे, जो अमरजीत ने अपने पिता और चाचा से कई बार कहे थे। लेकिन उसकी आवाज़ सीमेंट की दीवारों में कहीं गुम हो गई। जब परिजनों ने उसे भेजे गए नंबर पर दो बार पैसे भेजे, तब किसी को अंदेशा नहीं था कि यह उसकी ज़िन्दगी के आखिरी प्रयास हैं।
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शुक्रवार को एक अनजान नंबर से कॉल आता है—“आपका बेटा बीमार है, डीएमसीएच में भर्ती है।” लेकिन जब उसी नंबर पर परिजन ने दोबारा कॉल किया, तो जवाब आया—“अब इस नंबर पर कॉल मत करिए।”
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क्या यह कोई संगठित साज़िश थी? क्या बाल सुधार गृह के भीतर हो रहे काले कारनामों को छिपाने की कोशिश थी? सवाल कई हैं, पर जवाब अब तक धुंध में हैं।
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टूटा हुआ CCTV, टूटी हुई व्यवस्था: सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बाल सुधार गृह का CCTV कैमरा लंबे समय से खराब पड़ा था—या यूँ कहें, उसे 'खराब कर दिया गया था'। यह महज़ इत्तेफाक नहीं हो सकता। यह दर्शाता है कि वहां कुछ ऐसा चल रहा था, जिसे कैमरे की नज़रों से छुपाना जरूरी था।
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अब मैदान में उतरे हैं थानाध्यक्ष दीपक कुमार: जब बात बच्चों की हो, जब बात न्याय की हो, तो किसी भी जिले की उम्मीदें टिकती हैं ऐसे अफसरों पर जो न झुकते हैं, न बिकते हैं। लहेरियासराय के थानाध्यक्ष दीपक कुमार—जो बिहार पुलिस के उन गिने-चुने अधिकारियों में हैं जो अपनी तेज़तर्रार कार्यशैली और ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं—अब इस केस की कमान संभाल चुके हैं। दीपक कुमार की सबसे बड़ी ताकत है सच को सलीके से खोजना, और फिर उसे कानून के तराजू पर कस कर दोषियों को निचोड़ना। ऐसे अफसरों की मौजूदगी में व्यवस्था का भरोसा बना रहता है, और पीड़ितों को न्याय मिलने की उम्मीदें जागती हैं।
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दीपक कुमार की लाठी अब बोलेगी… जो भी इस अपराध में शामिल था, जिसने अमरजीत की जान ली—चाहे वह गार्ड हो, स्टाफ हो या कोई ऊँचा रसूखदार—दीपक कुमार की ‘लाठी’ अब उस पर टूटने वाली है। वह लाठी, जो अपराधी के झूठ और सत्ता के परदे को चीर कर रख देगी।
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परिवार की पुकार, जनता की नज़रें: परिजन इस वक़्त टूट चुके हैं, लेकिन उनकी आँखों में एक उम्मीद बची है—कि दीपक कुमार जैसे जाबांज़ अफसर उनके बेटे को मरने के बाद भी इंसाफ़ दिलाएंगे।
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और इस बार न सिर्फ दरभंगा, बल्कि पूरा बिहार इस केस की जांच पर नज़र रखे है। क्योंकि ये मामला अब एक परिवार का नहीं रहा, ये हर उस घर का सवाल है जो सोचता है कि "बाल सुधार गृह" बच्चों के सुधार के लिए होते हैं, न कि उनकी कब्रगाह बनने के लिए। ये खबर सिर्फ एक बच्चे की मौत की कहानी नहीं है, ये उस व्यवस्था का आईना है जो बंद दरवाज़ों में कैद मासूमों की चीखें सुन नहीं पाती। लेकिन जब दीपक कुमार जैसे अफसर कानून के मैदान में उतरते हैं, तो यक़ीन होता है—अंधेरे की दीवार कितनी भी मोटी हो, सच्चाई की रौशनी उसे चीर ही देती है।