जब चुप्पी की चादर चीरकर सड़कों पर उतरीं माएं-बहनें: दरभंगा की धरती से उठी वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ एक ऐसी हुंकार, जो सिर्फ विरोध नहीं, इंकलाब की पहली दस्तक है
"जब चुप्पी की चादर चीरकर सड़कों पर उतरीं माएं-बहनें: दरभंगा की धरती से उठी वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ एक ऐसी हुंकार, जो सिर्फ विरोध नहीं, इंकलाब की पहली दस्तक है".... पढ़े पुरी खबर......

दरभंगा: वह धरती जो मिथिला की सांस्कृतिक चेतना की राजधानी कही जाती है, जहां हर आंदोलन में कलम ने तलवार का काम किया है — उसी दरभंगा की गलियों में शनिवार को एक ऐसा दृश्य उभरा जिसे नज़रों ने नहीं, इतिहास ने दर्ज किया। मदरसा हमीदिया किलाघाट से लेकर लहेरियासराय के जिला मुख्यालय तक, नारे नहीं… आवाज़ें थीं। तख्तियों पर लिखे अल्फ़ाज़ नहीं… दर्द के बयान थे। यह कोई आम विरोध नहीं था, यह वो सन्नाटा था जो सालों से दबाया जा रहा था, अब वो फट पड़ा। केंद्र सरकार द्वारा लाया गया वक्फ संशोधन कानून जैसे आग की चिंगारी बना, और दरभंगा की सड़कों पर वो चिंगारी मशाल बन गई।
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नेतृत्व कर रही थीं कांग्रेस नेत्री और डिप्टी मेयर नाजिया चेहरा दृढ़, आवाज़ बुलंद, और शब्दों में सियासी नहीं, इंसानी दर्द था। उन्होंने कहा — “यह कानून नहीं, एक साजिश है। हमारी जड़ों पर कुल्हाड़ी चलाने की तैयारी है, और हम खामोश नहीं रहेंगे।” उनकी बात में रोष नहीं, प्रतिरोध था। आंसू नहीं, संकल्प था। उन्होंने कहा — “पहले CAA, NRC, फिर तीन तलाक, और अब वक्फ — क्या इस देश में मुसलमान होना गुनाह है? क्या हमारी धार्मिक संपत्तियों पर हक जताना अब राजद्रोह है?”
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जो दृश्य सबसे अधिक चौंकाने वाला था — वो था मुस्लिम महिलाओं की भागीदारी। हिजाब, बुर्का, चुप्पी की कैद से निकलीं ये औरतें आज संविधान की प्रस्तावना अपने हाथों में थामे थीं। उन्हें न आरएसएस का डर था, न सत्ता की लाठी का। उन्हें सिर्फ यह कहना था — “हमसे हमारी ज़मीन, हमारी विरासत, हमारी वक्फ छीनने की हिमाकत मत करना।” सभा के संयोजक नफीसुल हक रिंकू ने जब माइक थामा, तो शब्द नहीं, लावा उगला। उन्होंने कहा — “यह बिल वक्फ नहीं, हमारी अस्मिता का सौदा है। अगर सरकार ने ये सोच रखा है कि हम सिर झुकाकर इसे स्वीकार कर लेंगे, तो वह हमारी माटी को नहीं जानती।”
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प्रदर्शनकारी जब जिला मुख्यालय पहुंचे, तो हर भाषण में एक ही भावना थी — यह सिर्फ विरोध नहीं, अस्तित्व की लड़ाई है। वक्ताओं ने समझाया कि यह कानून कैसे वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता को खत्म कर सरकारी दखल को वैध बनाता है। कैसे शरियत से टकराने की ये सरकारी कोशिश एक बड़े भूचाल की भूमिका है। बार-बार एक ही वाक्य गूंज रहा था — “मुसलमान अब चुप नहीं रहेगा।” यह गूंज किसी अल्पसंख्यक की नहीं थी, यह भारत के एक जिम्मेदार नागरिक की थी, जो अपने धर्म, अधिकार और इतिहास के लिए खड़ा हो चुका है।
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डिप्टी मेयर नाजिया की चेतावनी गूंजती रही — “अगर कानून वापस नहीं हुआ, तो यह आंदोलन दरभंगा से निकलकर दिल्ली की दीवारों तक जाएगा। औरतें अनिश्चितकालीन धरने पर बैठेंगी, सड़कों पर संविधान की पंक्तियाँ दोहराई जाएंगी।” दरभंगा ने आज बता दिया कि वह सिर्फ विद्यापति, राजा राघव, और कैडेट्स की धरती नहीं — वह सियासी सजगता और जन चेतना का धधकता उदाहरण भी है।