अनुसंधान की चूक ने खोली जेल की सलाखें, और SSP जागुनाथ रेड्डी जलारेड्डी ने निलंबन की स्याही से लिखा जवाब जयश्री राम पर प्रशासनिक एक्शन
समय से न पहुँचा न्याय भी अन्याय होता है। परंतु जब उस अन्याय की ज़मीन कोई अपराधी नहीं, बल्कि वह पुलिस अधिकारी तैयार करता है, जो स्वयं न्याय का प्रहरी माना जाता है तब यह केवल लापरवाही नहीं, जनविश्वास की हत्या बन जाती है। दरभंगा की शांत, सांस्कृतिक और बौद्धिक धरती पर एक प्रशासनिक आंच आज उठी है, जो भविष्य के लिए चेतावनी है अनुसंधान में देरी अब अपराध के समकक्ष खड़ी की जाएगी. पढ़े पुरी खबर........

दरभंगा: समय से न पहुँचा न्याय भी अन्याय होता है। परंतु जब उस अन्याय की ज़मीन कोई अपराधी नहीं, बल्कि वह पुलिस अधिकारी तैयार करता है, जो स्वयं न्याय का प्रहरी माना जाता है तब यह केवल लापरवाही नहीं, जनविश्वास की हत्या बन जाती है। दरभंगा की शांत, सांस्कृतिक और बौद्धिक धरती पर एक प्रशासनिक आंच आज उठी है, जो भविष्य के लिए चेतावनी है अनुसंधान में देरी अब अपराध के समकक्ष खड़ी की जाएगी।
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हम बात कर रहे हैं लहेरियासराय थाना में प्रतिनियुक्त पुलिस अवर निरीक्षक (पुअनि) जयश्री राम की, जिन्हें दरभंगा पुलिस अधीक्षक कार्यालय द्वारा तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। निलंबन का कारण बना अनुसंधान में विलंब, आरोप पत्र के समय पर दाखिल नहीं किए जाने की गंभीर त्रुटि, और अंततः अभियुक्त की 167(2) दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत न्यायालय द्वारा रिहाई।
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प्रशासनिक दस्तावेज़ बताते हैं कि लहेरियासराय थाना क्षेत्र के कांड संख्या 14/25 और 452/23 दोनों ही मामलों में पुअनि जयश्री राम को अनुसंधानकर्ता अधिकारी के रूप में प्रतिनियुक्त किया गया था। कांडों की गंभीरता का आकलन इस बात से लगाया जा सकता है कि इनकी प्राथमिकताएँ पहले से ही चिन्हित थीं। परंतु जब फाइलें धूल खाती रहीं, न्यायालय की तारीखें बदलती रहीं, और अभियुक्त न्यायिक हिरासत में सांसें गिनता रहा तब भी अनुसंधानकर्ता द्वारा आरोप पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया।
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"यदि किसी अभियुक्त के विरुद्ध तय समय-सीमा में चार्जशीट दायर नहीं की जाती, तो उसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के तहत जमानत दी जाएगी।" और हुआ भी यही अभियुक्त को अदालत ने बेल दे दी।
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पुअनि जयश्री राम निलंबन से जुड़ी कार्रवाई: दरभंगा वरीय पुलिस अधीक्षक कार्यालय द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, पुअनि जयश्री राम को अनुसंधान में लापरवाही के आधार पर तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। उन्हें केवल सामान्य जीवन भत्ता पर रखा गया है तथा निलंबन अवधि के लिए उनका मुख्यालय पुलिस केंद्र, दरभंगा निर्धारित किया गया है। यह प्रशासनिक कार्यवाही जहाँ एक ओर तत्काल निर्णय का संकेत देती है, वहीं दूसरी ओर इस बात की भी चुगली करती है कि अनुसंधान तंत्र में कहीं न कहीं कोई गहरी दरार है।
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सवालों की चादर में लिपटी पुलिस व्यवस्था: अब सवाल यह नहीं कि पुअनि जयश्री राम दोषी हैं या नहीं वह तो तय हो चुका। अब असली सवाल यह है: क्या किसी एक अधिकारी के निलंबन से पूरा अनुसंधान तंत्र निर्दोष हो गया? क्यों समय-सीमा में फाइलें न्यायालय तक नहीं पहुँच पा रहीं? क्या थाना स्तर पर 'केस मॉनिटरिंग' की व्यवस्था सिर्फ रजिस्टरों तक सीमित है? और सबसे महत्वपूर्ण जब अभियुक्त बेल पर बाहर आता है, तो उस पीड़िता की आँखों में उठता हुआ विश्वास किसे ढांढस देगा?
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जब बेल से ज़्यादा खतरनाक हो जाए जांच में देरी: धारा 167(2) भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता का एक ऐसा संवैधानिक सुरक्षा कवच है, जिसे संविधान निर्माताओं ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा हेतु जोड़ा था। परंतु जब यही धारा पुलिस की ढिलाई के कारण अपराधियों के लिए कानूनी वरदान बन जाए तब यह पूरी व्यवस्था पर कलंक बन जाता है। यह स्थिति दरभंगा पुलिस के लिए एक चेतावनी है। क्योंकि न्यायालय ने जो बेल दी, वह न्यायपालिका की मर्यादा थी परंतु उसके पीछे की लापरवाही किसी प्रशासनिक अपवित्रता से कम नहीं।
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यह घटना हमें एक बार फिर सोचने को विवश करती है कि क्या हमारी विवेचना प्रक्रिया, जो किसी भी आपराधिक न्याय प्रणाली की रीढ़ होती है, अब केवल तारीख़ों, नोट शीटों और खानापूर्ति में सिमट गई है? "समय पर आरोप पत्र दायर न करना केवल लापरवाही नहीं, यह पीड़ित के न्याय के अधिकार की हत्या है।"
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स्थानीय प्रतिक्रिया चुप प्रशासन, चौकन्ना समाज: दरभंगा शहर के प्रबुद्धजनों, अधिवक्ताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस मामले को गंभीर मानते हुए कहा है कि अधिवक्ता अरविंद शंकर कहते हैं, "यह कोई सामान्य केस नहीं है। अभियुक्त को बेल मिलना अपराध की न्यायिक ढाल बन गया है। प्रशासन को चाहिए कि थाने से लेकर अनुमंडल स्तर तक सभी अनुसंधानकर्ताओं की केस लिस्ट की ऑडिट कराए।"
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सामाजिक कार्यकर्ता भावना मिश्रा का मानना है, "अगर अनुसंधानकर्ता लापरवाह हैं तो उनके ऊपर निगरानी रखनेवाले अफसर क्या कर रहे थे? एक अधिकारी का निलंबन पर्याप्त नहीं है, पूरी प्रक्रिया में सुधार चाहिए।"
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न्यायालय की प्रत्यक्ष फटकार नहीं, लेकिन अप्रत्यक्ष सज़ा गूंज रही है: अदालत ने अभियुक्त को बेल दी यह तो कानूनी प्रक्रिया थी। परंतु इसका नैतिक दबाव पुलिस तंत्र पर अब तक महसूस हो रहा है। संवेदनशील मामलों में जब आरोपी बेल पर बाहर होता है, तो थाना क्षेत्र की सामाजिक शांति भी खतरे में रहती है। यही कारण है कि पुअनि जयश्री राम का निलंबन एक प्रतीकात्मक कार्रवाई बनकर उभरा है। यह वह संकेत है जिसे न केवल दरभंगा, बल्कि समूचे बिहार की पुलिस व्यवस्था को समझना चाहिए।
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पुअनि जयश्री राम की निलंबन सूचना भले एक प्रेस विज्ञप्ति में सिमट गई हो, पर इसका प्रतिध्वनि पूरे प्रशासनिक गलियारों में गूंज रही है। यह घटना बताती है कि पुलिस अनुसंधान में देरी अब "चूक" नहीं, बल्कि "अपराध" के तौर पर देखी जाएगी। आने वाले दिनों में यदि दरभंगा पुलिस को सच में पारदर्शिता, संवेदनशीलता और गति की ओर बढ़ना है, तो न केवल लापरवाह अफसरों पर कार्रवाई करनी होगी, बल्कि हर थाने में केस ट्रैकिंग सिस्टम सशक्त बनाना होगा, अनुसंधान में देरी के लिए जवाबदेही तय करनी होगी,और सबसे बढ़कर जनता का विश्वास दोबारा अर्जित करना होगा। क्योंकि पुलिस की वर्दी सिर्फ पहरा नहीं देती वह भरोसे का प्रतीक होती है। और जब भरोसा डगमगाता है, तो समाज अपराधियों से नहीं, व्यवस्था से डरने लगता है।