अनुसंधान की अलमारी में धूल, कर्तव्य की किताबें बंद: लहेरियासराय थाना के पु.अ.नि. प्रशांत कुमार को निंदन की सजा, अगली समीक्षा में विभागीय कार्रवाई तय!
दरभंगा की मिट्टी में गूंजती मिथिला की मर्यादा, और प्रशासन की आंखों में उतरती जवाबदेही इन दोनों के बीच लहेरियासराय थाना के एक अनुसंधानकर्ता के लचर आचरण ने कानून की गरिमा को गहरी ठेस पहुंचाई है। दिनांक 7 मई 2025, स्थान वरीय पुलिस अधीक्षक कार्यालय, दरभंगा। एक सामान्य-सी प्रतीत होती बैठक, लेकिन परिणाम इतना असामान्य कि अब तक थाने की दीवारें भी कानाफूसी कर रही हैं. पढ़े पुरी खबर........

दरभंगा की मिट्टी में गूंजती मिथिला की मर्यादा, और प्रशासन की आंखों में उतरती जवाबदेही इन दोनों के बीच लहेरियासराय थाना के एक अनुसंधानकर्ता के लचर आचरण ने कानून की गरिमा को गहरी ठेस पहुंचाई है। दिनांक 7 मई 2025, स्थान वरीय पुलिस अधीक्षक कार्यालय, दरभंगा। एक सामान्य-सी प्रतीत होती बैठक, लेकिन परिणाम इतना असामान्य कि अब तक थाने की दीवारें भी कानाफूसी कर रही हैं।
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कर्तव्य से विमुख, अनुसंधान से विचलित: पुलिस अवर निरीक्षक प्रशांत कुमार, जो लहेरियासराय थाना के एक अनुभवी अनुसंधानकर्ता माने जाते थे, उनकी लापरवाही की परतें उस समय खुलती गईं जब Investigation Supervision टीम ने उनके द्वारा लंबित कांडों की समीक्षा की। परिणामस्वरूप, यह स्पष्ट हुआ कि श्रीमान प्रशांत ने न केवल गिरफ्तारी में देर की, बल्कि न्याय की बुनियाद मानी जाने वाली Chain of Custody की प्रक्रिया तक का पालन नहीं किया। यह किसी मामूली चूक की बात नहीं थी, यह प्रशासनिक पवित्रता से गद्दारी थी।
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जिस प्रमाण को मोहरबंद होना चाहिए था, वह बिखरी हुई स्याही बन चुका था। जो संदिग्ध जेल की सलाखों के पीछे होने चाहिए थे, वे अब भी समाज में खुलेआम घूम रहे हैं केवल इसलिए क्योंकि अनुसंधानकर्ता ने अपनी भूमिका को हल्के में लिया।
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समीक्षा में खुला पोल, कलम ने कहा ‘निंदन’: जब वरीय पुलिस अधीक्षक दरभंगा ने पूरे प्रतिवेदन को पढ़ा, तो न्यायप्रियता ने चुप रहना उचित नहीं समझा। प्रशांत कुमार की सेवा पुस्तिका में "निंदन" (Censure) की सजा दर्ज की गई जो सिर्फ़ काली स्याही की एक लकीर नहीं, बल्कि एक सख्त प्रशासनिक तमाचा है। इतना ही नहीं, उन्हें सशक्त चेतावनी भी दी गई कि अगली बार यदि अनुसंधान में सुधार नहीं हुआ, तो सीधे विभागीय कार्रवाई प्रारंभ की जाएगी, जो निलंबन से लेकर बर्खास्तगी तक की राह खोल सकती है।
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कहां गया वो जुनून? एक समय था जब पुलिस अवर निरीक्षक होना मिशन माना जाता था। अब यह 'सरकारी नौकरी' बनकर रह गई है। प्रशांत कुमार जैसे अधिकारियों से सवाल पूछना ज़रूरी है क्या आपने कभी पीड़िता की आंखों का डर पढ़ा है? क्या आप जानते हैं कि एक मां अपने बेटे के लिए कोर्ट के दरवाजे तक कैसे जाती है? क्या आपके लिए फाइलें ही सब कुछ हैं, या न्याय भी कोई चीज़ है?
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थाना नहीं, यह तो उत्तरदायित्व का मंदिर है: लहेरियासराय थाना कोई शौकिया मंच नहीं है। यह एक ऐसा मंच है जहाँ संविधान की आत्मा गूंजती है। यहाँ कांड संख्या केवल अंक नहीं होते वे किसी की टूटी उम्मीदें, किसी की लुटी अस्मिता, किसी की बुझती साँसें होती हैं। जब ऐसे मामलों की फाइलें अधिकारी की टेबल पर धूल खा रही हों, तो यह चूक नहीं बल्कि अपराध है।
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जनता पूछ रही है अब किस पर भरोसा करें? जब अनुसंधानकर्ता स्वयं अपने कार्य में रूचि नहीं रखते, तो आमजन कहां जाएं? दरभंगा की जनता के पास अब केवल यही सवाल है कि क्या हर बार उन्हें रिपोर्टर से ही न्याय मिलेगा? क्या प्रशासनिक जवाबदेही केवल कागजों तक सीमित है?
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प्रशांत कुमार जैसे अधिकारी अगर अब भी सचेत नहीं हुए, तो यह तय मानिए कि जनता का भरोसा केवल खोएगा नहीं, वह विद्रोह में तब्दील होगा। और तब कोई 'निंदन' नहीं, बल्कि निष्कासन का समय होगा।
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न्याय की थाली में जूठन नहीं चाहिए: आज प्रशांत कुमार की सेवा पुस्तिका पर "निंदन" की मुहर लगी है, कल किसी और की भी लग सकती है। मगर क्या यह महज़ कागज़ी कार्रवाई बनकर रह जाएगी, या फिर दरभंगा पुलिस वाकई अपने सिस्टम में झाड़ू चलाएगी? वरिष्ठ अधिकारी अब निर्णय के मोड़ पर हैं। या तो वे इसे उदाहरण बनाएं, या फिर यह लापरवाही की लंबी परंपरा में एक और अध्याय बनकर रह जाएगी। दरभंगा के लोग देख रहे हैं, प्रशासन क्या जवाब देता है।