दरभंगा राजमहल में फिर गूंजी पुरखों की परंपरा: युवराज कपिलेश्वर सिंह ने किया माँ श्यामा और माँ कंकाली का पूजन
मिथिला की सांस्कृतिक राजधानी दरभंगा इस वर्ष चैत्र नवरात्रि के अवसर पर एक ऐतिहासिक पुनर्जागरण की साक्षी बनी। वर्षों से सुप्त पड़ी राजपरंपरा को पुनर्जीवित करते हुए राज दरभंगा के युवराज कपिलेश्वर सिंह ने महानवमी के दिन राजमहल परिसर में माँ श्यामा (काली) की पूजा और राजकिला स्थित माँ कंकाली मंदिर में विशेष अर्चना कर मिथिला की आस्था और इतिहास में नया अध्याय जोड़ दिया. पढ़े पुरी खबर......

दरभंगा | चैत्र नवरात्रि 2025 | विशेष रिपोर्ट: मिथिला की सांस्कृतिक राजधानी दरभंगा इस वर्ष चैत्र नवरात्रि के अवसर पर एक ऐतिहासिक पुनर्जागरण की साक्षी बनी। वर्षों से सुप्त पड़ी राजपरंपरा को पुनर्जीवित करते हुए राज दरभंगा के युवराज कपिलेश्वर सिंह ने महानवमी के दिन राजमहल परिसर में माँ श्यामा (काली) की पूजा और राजकिला स्थित माँ कंकाली मंदिर में विशेष अर्चना कर मिथिला की आस्था और इतिहास में नया अध्याय जोड़ दिया।
माँ श्यामा की पूजा: जब परंपरा ने फिर से श्वास ली: राज दरभंगा में यह श्यामा पूजा कभी महारानी स्वयं तांत्रिक विधानों के अनुसार करती थीं। कालांतर में यह परंपरा इतिहास के पन्नों में सिमट गई थी। लेकिन इस बार युवराज ने उसी आदर्श को अपनाते हुए पूरे वैदिक और तांत्रिक विधानों से यह पूजा संपन्न की।
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राजसभा प्रांगण में नवकुंडीय हवन, चामुंडा सप्तशती का पाठ, बलि प्रतीक अर्पण, और शंखध्वनि के मध्य: युवराज कपिलेश्वर सिंह की उपस्थिति ने उस माहौल को जीवंत कर दिया, जिसे कभी मिथिला की दिव्यता कहा जाता था। यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि एक राजवंशीय उत्तरदायित्व का निर्वहन था।
माँ कंकाली मंदिर में अर्चना: कुलदेवी के श्रीचरणों में समर्पण: इसके पश्चात युवराज ने राजकिला परिसर स्थित माँ कंकाली मंदिर में विशेष पूजा अर्पित की। माँ कंकाली दरभंगा राजघराने की कुलदेवी मानी जाती हैं। गर्भगृह में दीपदान, अभिषेक और साष्टांग दंडवत कर युवराज ने न केवल कुल परंपरा को निभाया, बल्कि उस आध्यात्मिक परंपरा को फिर से जीवित किया, जो सदियों से राजवंश की आत्मा रही है।
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एक दिन, दो पूजा, और मिथिला की पुनरजागृति: यह दिन केवल धार्मिक अनुष्ठानों का संगम नहीं था, यह था मिथिला की संस्कृति, शक्ति और स्मृति का पुनर्जन्म। युवराज का यह प्रयास बताता है कि परंपरा केवल अतीत नहीं होती — वह वर्तमान की जड़ और भविष्य की नींव होती है।
जनमानस में उत्साह, बुजुर्गों में भावुकता: पूरे आयोजन में सैकड़ों श्रद्धालु, विद्वान, ब्राह्मण और आमजन उपस्थित रहे। किसी ने कहा, “आज जैसे राजदरबार फिर जीवित हो उठा।” तो किसी ने भावुक होकर कहा, “बचपन में जो पूजा देखी थी, आज वर्षों बाद फिर वही दिव्यता लौटी है।”
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संस्कृति की लौ फिर जली: युवराज कपिलेश्वर सिंह ने जो दीप इस महानवमी को प्रज्वलित किया है, वह केवल एक पूजा की लौ नहीं है। यह मिथिला के सांस्कृतिक आत्मबल, पारिवारिक गौरव और ऐतिहासिक चेतना का दीपक है, जो अब आने वाले समय में और भी तेज़ प्रकाश देगा। दरभंगा का यह दिन अब केवल एक तिथि नहीं रहा, यह बन गया है एक प्रतीक — उस परंपरा का, जो मिटने नहीं दी गई; उस आस्था का, जो युगों के बाद भी अमर है।