"जब दरभंगा की धरती से उठी दीयों की बग़ावत... और दीपक झा की हुंकार बन गई युवाओं की मशाल — पहलगाम के शहीदों के नाम एक दर्द भरा संकल्पनामा"

24 अप्रैल 2025 की संध्या... दरभंगा की हवाओं में कुछ अलग था। वो शोक का वक़्त था, मगर उसमें आक्रोश की चिनगारी भी थी। वह केवल कैंडल मार्च नहीं था, बल्कि एक पूरी पीढ़ी की चीख थी, जिसने अपने दिलों से निकली आग को मोमबत्तियों की लौ में बदल डाला. पढ़े पुरी खबर........

"जब दरभंगा की धरती से उठी दीयों की बग़ावत... और दीपक झा की हुंकार बन गई युवाओं की मशाल — पहलगाम के शहीदों के नाम एक दर्द भरा संकल्पनामा"
"जब दरभंगा की धरती से उठी दीयों की बग़ावत... और दीपक झा की हुंकार बन गई युवाओं की मशाल — पहलगाम के शहीदों के नाम एक दर्द भरा संकल्पनामा"

दरभंगा/बिहार: 24 अप्रैल 2025 की संध्या... दरभंगा की हवाओं में कुछ अलग था। वो शोक का वक़्त था, मगर उसमें आक्रोश की चिनगारी भी थी। वह केवल कैंडल मार्च नहीं था, बल्कि एक पूरी पीढ़ी की चीख थी, जिसने अपने दिलों से निकली आग को मोमबत्तियों की लौ में बदल डाला। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए नृशंस आतंकी हमले के विरोध में दरभंगा के छात्रों एवं युवाओं ने विश्वविद्यालय परिसर से लेकर भोगेंद्र झा चौक तक जो दीप यात्रा निकाली, वह इतिहास में दर्ज की जाएगी—एक जनांदोलन के पहले अध्याय की तरह।

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दीपक झा: वह दीपक, जो अंधेरे से लड़ने निकला: इस मौन में सबसे मुखर थे छात्र युवा नेता दीपक झा, जिनकी आवाज़ में सिर्फ शब्द नहीं थे, बल्कि एक ज्वाला थी। उन्होंने न केवल छात्रों को एकजुट किया, बल्कि पूरे आंदोलन को दिशा दी। सभा को संबोधित करते हुए दीपक झा की आँखों में आंसू थे, और शब्दों में अंगार। उन्होंने कहा: "यह हमला केवल उन शहीदों पर नहीं हुआ, यह हमला हमारे भरोसे पर, हमारे संविधान पर और हमारी मिट्टी की अस्मिता पर हुआ है। देश की आत्मा रो रही है... और जब आत्मा रोती है, तब क्रांति जन्म लेती है। अब खामोश रहना भी पाप है।"

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भीड़ उनकी बातों से नहीं, उनके जज़्बे से जुड़ी। दीपक झा ने वो कहा, जो एक सच्चा जननेता कहता है “आतंकवाद के खिलाफ अगर सरकार एक कदम चलेगी, तो हम नौजवान सौ कदम चलेंगे। मातृभूमि की रक्षा के लिए हर छात्र अब सैनिक है।”

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प्रियंका झा की पीड़ा: 'यह समय मातम का नहीं, प्रतिशोध का है': समाजसेवी प्रियंका झा ने कहा, “हम सिर्फ दीये नहीं जला रहे, हम भारत के शहीदों की आत्मा को आश्वस्त कर रहे हैं कि उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। देश बदल चुका है, अब आंख में आंसू के साथ-साथ लहू में ज्वालामुखी है।”

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युवाओं की हुंकार: अब हर हाथ में तिरंगा, हर दिल में प्रतिशोध: युवा नेता सोनू तिवारी ने कहा, “जब किसी मज़हब के नाम पर खून बहाया जाता है, तो वो खुदा का नहीं, शैतान का चेहरा होता है। हम ऐसे शैतानों को उनके अंजाम तक पहुंचा कर ही सांस लेंगे।”

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कुनाल पांडे ने सिंधु समझौते के रद्दीकरण को बताया 'जल युद्ध' की शुरुआत, तो वहीं निरुपम सिंह ने पाकिस्तान को 'आतंकी पालक' कहते हुए वैश्विक कार्रवाई की मांग की।

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श्रद्धांजलि से प्रतिज्ञा तक का रास्ता: श्याम मंदिर से शुरू हुआ कैंडल मार्च जब भोगेंद्र झा चौक पहुंचा, तो वह एक भीड़ नहीं, बलिदान की लौ बन चुका था। ‘शहीदों अमर रहें’, ‘भारत माता की जय’ और ‘आतंकवाद मुर्दाबाद’ के नारों से गूंजती दरभंगा की रात, जैसे शहीदों की आत्माओं को साक्षात नमन कर रही थी।

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उपस्थित छात्र नेता: शरद सिंह, मणिकांत यादव, समीर दयाल, संजय कुमार सुमन, गंधर्व झा, महानंदा झा, अमन मिश्रा, नीलेश श्रीवास्तव, चंदन कुमार, गिरीश झा, रौशन झा, सारंग राजपूत, साईनाथ, मनोज कुमार, सोनाली सिंह, विवेक कुमार, प्रभात कुमार, शोभित कुमार, विकास मिश्रा, शंकर कुमार, सोनू कुमार, अंकित कुमार, करण कुमार, अमित कुमार झा, विमल यादव, आनंद कुमार, नितीश कुमार, दिलखुश यादव समेत दर्जनों छात्र और युवा इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने।

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यह केवल कैंडल मार्च नहीं था, यह एक चेतावनी थी उन सबके लिए जो भारत की एकता, उसकी शांति और उसकी वीरता को ललकारने की भूल करते हैं। और यह दीपक झा जैसे युवाओं की चेतावनी थी—“अब सिर्फ़ दीये नहीं जलेंगे... अब ज्वालाएं उठेंगी।”