कागजों में गायब हुआ ट्रक चालक, पुलिस दैनिकी से भी नदारद! यातायात थाना में अनुसंधान की जगह खेल? SSP दरभंगा के निर्देश पर एक अधिकारी सस्पेंड, थानाध्यक्ष पर लटक रही गाज
ट्रैफिक थाने में चल रहे तथाकथित अनुसंधान की परतें अब एक-एक कर खुलने लगी हैं और इसके नीचे से उठ रही लापरवाही की दुर्गंध ने पूरे महकमे को झकझोर कर रख दिया है। कांड संख्या 32/25, जो कि महज एक मामूली ट्रैफिक केस माना जा रहा था, दरअसल पुलिसिया कार्यशैली की बदहाली का जीवंत उदाहरण बन चुका है. पढ़े पुरी खबर.....

दरभंगा:- ट्रैफिक थाने में चल रहे तथाकथित अनुसंधान की परतें अब एक-एक कर खुलने लगी हैं और इसके नीचे से उठ रही लापरवाही की दुर्गंध ने पूरे महकमे को झकझोर कर रख दिया है। कांड संख्या 32/25, जो कि महज एक मामूली ट्रैफिक केस माना जा रहा था, दरअसल पुलिसिया कार्यशैली की बदहाली का जीवंत उदाहरण बन चुका है।
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2 मार्च 2025 को दर्ज हुआ यह मामला अब तूल पकड़ चुका है, क्योंकि इस केस में अभियुक्त ट्रक चालक लालबाबू यादव को बहेड़ी थाना पुलिस ने ट्रक सहित धर दबोचा, लेकिन जब उसे नियमानुसार यातायात थाना को सुपुर्द किया गया—तो वहां उसकी आमद ही दर्ज नहीं की गई! जवाबदेही की बात तो दूर, ट्रक चालक मानो पुलिस दैनिकी से ही गायब कर दिया गया। और यही नहीं, जाँच अधिकारी ने न केवल अभियुक्त को बिना किसी ठोस साक्ष्य निर्दोष साबित करने की कोशिश की, बल्कि न्यायालय में अजीबोगरीब बयान देकर दूसरे व्यक्ति ताबजुद्दीन को रिहा करने की अनुमति भी दे दी—यह कहकर कि "आपत्ति नहीं है!"
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यह कैसा अनुसंधान था जिसमें दोषी कौन है—इसका कोई प्रमाण नहीं, लेकिन रिहाई की अनुशंसा जरूर है?
दरअसल ये कोई साधारण भूल नहीं, बल्कि आपराधिक स्तर की लापरवाही है, जिसकी पुष्टि खुद पुलिस उपाधीक्षक (यातायात), दरभंगा ने अपने विस्तृत जाँच प्रतिवेदन में की है। उन्होंने इस पूरे मामले को अनुसंधानकर्ता पु0अ0नि0 शशिभूषण रजक और थानाध्यक्ष यातायात पु0नि0 कुमार गौरव की मिलीभगत या घोर कर्तव्यहीनता का परिणाम बताया है।
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इसके बाद एसएसपी दरभंगा जगुनाथ रेड्डी एक्शन में आए और तत्काल अनुसंधानकर्ता को सस्पेंड कर दिया। वहीं, यातायात थानाध्यक्ष के खिलाफ निलंबन एवं विभागीय कार्रवाई के लिए पुलिस उपमहानिरीक्षक, मिथिला क्षेत्र को अनुशंसा भेज दी गई है।
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प्रश्न यह है कि: क्या दरभंगा की यातायात पुलिस अब कानून के रखवाले नहीं, व्यवस्था के दलाल बन चुकी है? क्या ट्रैफिक थानों में अनुसंधान नामक प्रक्रिया महज खानापूरी बनकर रह गई है?
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इस घटना ने दरभंगा पुलिस की साख पर बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। SSP का यह कठोर कदम निश्चित रूप से एक मिसाल है, लेकिन यह अकेला मामला नहीं हो सकता। यदि दैनिकी से अभियुक्त गायब किए जा सकते हैं और अदालत में मनमाने प्रतिवेदन दिए जा सकते हैं, तो आमजन की सुरक्षा और न्याय प्रक्रिया का क्या होगा?
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यह घटना न केवल थाने की कार्यशैली, बल्कि पूरे पुलिस तंत्र की साख को चोट पहुँचाने वाली है। आने वाले समय में दरभंगा पुलिस पर यह दबाव बढ़ेगा कि वह जनता को यह विश्वास दिला सके—कि पुलिस की वर्दी अब भी भरोसे की पहचान है, ना कि साजिशों की ढाल।