दरभंगा की नदी में घटी हृदयविदारक घटना ने पूरे इलाके को स्तब्ध कर दिया है, दर्द और आंसुओं से भीगा यह मंज़र महज़ एक हादसा नहीं बल्कि हमारे समाज की संवेदनहीनता और प्रशासनिक सुस्ती का आईना है… इस पर हमारे विस्तृत और निष्पक्ष रिपोर्ट को अवश्य पढ़ें, क्योंकि सच जानना ही समाधान की पहली सीढ़ी है।
समाचार लिखने वाला अक्सर अपनी कलम को मजबूत मानता है। लेकिन कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जहाँ कलम काँप जाती है, शब्द असहाय हो जाते हैं और आंसू हर वाक्य को बहा ले जाते हैं। गौड़ाबौराम प्रखंड क्षेत्र के बेलाही घाट पर कमला नदी में शनिवार को जो घटा, वह केवल एक हादसा नहीं था, बल्कि चार परिवारों की दुनिया उजड़ने की कथा थी। यह वह त्रासदी थी जिसने पूरे बसौली गांव को मातमी सन्नाटे में डुबो दिया. पढ़े पुरी खबर......

दरभंगा: समाचार लिखने वाला अक्सर अपनी कलम को मजबूत मानता है। लेकिन कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जहाँ कलम काँप जाती है, शब्द असहाय हो जाते हैं और आंसू हर वाक्य को बहा ले जाते हैं। गौड़ाबौराम प्रखंड क्षेत्र के बेलाही घाट पर कमला नदी में शनिवार को जो घटा, वह केवल एक हादसा नहीं था, बल्कि चार परिवारों की दुनिया उजड़ने की कथा थी। यह वह त्रासदी थी जिसने पूरे बसौली गांव को मातमी सन्नाटे में डुबो दिया।
नदी किनारे का दृश्य : खेलते-खेलते मौत की गोद में: शनिवार की दोपहर लगभग बारह बजे का समय। बसौली गांव के आठ बच्चे, जिनकी हंसी गांव की गलियों में गूंजती थी, अपने साथियों के साथ कमला नदी में स्नान करने चले आए। नदी किनारे हंसी-ठिठोली, पानी में छींटाकशी और मस्ती का माहौल था। किसी ने नहीं सोचा था कि अगले कुछ मिनटों में यह हंसी मातमी चीत्कार में बदल जाएगी। तेज धार से खेलते-खेलते चार बच्चे गहरे पानी की ओर बढ़ गए। उनकी चीखें और हाथ-पैर मारने की कोशिशें बाकी बच्चों की आंखों के सामने थीं। लेकिन नदी की धारा इतनी निर्मम थी कि कुछ ही पलों में वह मासूमों को अपने आगोश में समेटने लगी।
खोए हुए फूल : जिनके चेहरे अब गांव की स्मृति में
धारा में समा गए बच्चे थे
शीतला कुमारी (14), पुत्री चंदू देवी
लक्ष्मी कुमारी (13), पुत्री नारायण मुखिया
अंशु कुमारी (14), पुत्री प्रमोद मुखिया
रोहित कुमार (14), पुत्र जयशंकर तांती
ये चारों ही कसरौड़ मध्य विद्यालय के कक्षा आठवीं के छात्र थे। वे कल तक पेंसिल से भविष्य की तस्वीर बना रहे थे, आज गांव का इतिहास उनके नाम शोकगीत लिख रहा है।
रोहित की वीरता : गांव का नन्हा नायक: सबसे मार्मिक और हृदय विदारक प्रसंग रोहित कुमार का है। जब उसने देखा कि उसकी सहेलियाँ धारा में बह रही हैं, तो उसने बिना देर किए खुद नदी में छलांग लगा दी। उसके छोटे-छोटे हाथ पानी को चीरते हुए उन साथियों तक पहुंचे। वह सरस्वती कुमारी (15), पुत्री नारायण मुखिया और अनीशा कुमारी (14), पुत्री संतोष मुखिया को किनारे तक लाने में सफल हुआ। लेकिन जब उसने बाकी बच्चों को बचाने की कोशिश की, तो खुद गहरे पानी में समा गया। गांव का हर बुजुर्ग, हर बच्चा और हर महिला अब उसे "गांव का वीर" कह रही है। रोहित ने शब्दों में नहीं, अपने कर्म से यह गाथा लिखी कि सच्चा नायक वह नहीं जो अपने लिए जिए, बल्कि वह है जो दूसरों की जान बचाने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दे।
गांव का मातम : जब हर घर चीखने लगा: जैसे ही गांव में खबर फैली कि चार बच्चे नदी में डूब गए, बसौली की गलियों में मातमी सन्नाटा छा गया। कहीं माँ अपने खोए हुए बच्चे का नाम पुकारते हुए बेहोश हो रही थी। कहीं पिता अपने सीने को पीटकर रो रहे थे। बहनें और सहेलियाँ अपने आंसुओं से धरती को भिगो रही थीं। गांव का माहौल ऐसा हो गया मानो पूरा गांव ही एक श्मशान में बदल गया हो। जिन गलियों में कल तक बच्चों की खिलखिलाहट थी, आज वहां सिर्फ़ सिसकियाँ गूंज रही थीं।
स्थानीय लोग और प्रयास : शव निकालने की जद्दोजहद: आपदा मित्र मनोज शर्मा और कुछ स्थानीय तैराकों ने पूरी ताक़त लगाकर शवों को बाहर निकाला। एक-एक कर जब चार मासूमों के शव किनारे लाए गए तो गांव का धैर्य टूट गया। हर शव के साथ चीखों का एक नया तूफ़ान उठता। लोग एक-दूसरे को संभालने की कोशिश करते, लेकिन हर आंख गीली थी।
प्रशासनिक पहल और देरी: सूचना मिलते ही घनश्यामपुर थाना की पुलिस घटनास्थल पर पहुंची। सभी शवों को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया। लेकिन इस बीच ग्रामीणों का गुस्सा एनडीआरएफ की देरी पर फूट पड़ा। टीम चार घंटे बाद पहुंची। लोग आक्रोशित थे कि जब सब कुछ खत्म हो गया तब मदद क्यों आई? यह सवाल प्रशासन के लिए अब भी गूंज रहा है।
जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी: गांव में मुखिया रंजीत कुमार झा, सरपंच शंकर झा और पंचायत समिति सदस्य प्रतिनिधि पवन कुमार झा पहुंचे। उन्होंने पीड़ित परिवारों को सांत्वना देने की कोशिश की, परंतु ऐसे समय में दिलासा के शब्द भी बेबस हो जाते हैं। लोगों का कहना था कि जिन घरों के चिराग बुझ गए, उनके लिए सांत्वना शब्द मात्र एक औपचारिकता बनकर रह जाते हैं।
थानाध्यक्ष का बयान: घनश्यामपुर थाना अध्यक्ष अजीत कुमार ने कहा: यह घटना अत्यंत दुखद है। चार-चार मासूम जिंदगियाँ कमला की धारा में समा गईं। पुलिस ने तुरंत घटनास्थल पर पहुंचकर शवों को कब्जे में लिया और पोस्टमार्टम की प्रक्रिया शुरू की। प्रशासन लगातार पीड़ित परिवारों के साथ खड़ा है। हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि उन्हें किसी प्रकार की परेशानी न हो। उनकी आंखों और आवाज़ में भी घटना की पीड़ा झलक रही थी।
मेरी संवेदना : जब मेरे शब्द भी कांप उठे: एक पत्रकार होने के नाते मैंने अनेक घटनाएँ देखी और लिखी हैं। परन्तु बसौली गांव की इस त्रासदी ने मेरे शब्दों की भी नींव हिला दी। कलम थरथराने लगी, अक्षर धुंधले हो गए और शब्द आंसुओं में भीगते चले गए। क्योंकि यह केवल चार बच्चों की मौत नहीं थी। यह एक पूरे गांव की मासूमियत का अंत था। यह रोहित की बहादुरी की शहादत थी। यह माताओं के टूटे हुए सपनों की दास्तान थी।
शब्दों से परे एक दर्दनाक इतिहास: कमला नदी की यह घटना आने वाली पीढ़ियों को हमेशा याद दिलाएगी कि एक गांव का वीर रोहित अपने प्राणों की आहुति देकर दूसरों की जिंदगी बचा गया। यह घटना प्रशासन को भी चेतावनी है कि नदी किनारे सुरक्षा उपाय और एनडीआरएफ की तत्परता केवल कागज़ों में नहीं, जमीन पर भी दिखनी चाहिए। आज बसौली गांव में हर आंख नम है, हर दिल आह भर रहा है और हर परिवार रोहित की बहादुरी को याद कर रहा है। इतिहास जब इस गांव का जिक्र करेगा, तो लिखेगा बसौली का वह दिन जब चार मासूम कमला की लहरों में समा गए और रोहित ने अपने बलिदान से गांव की आत्मा में अमरत्व पा लिया।