केवटी थाना फिर विवादों के घेरे में रिश्वतखोरी का वीडियो बना सुबूत, थानाध्यक्ष राहुल कुमार और चौकीदार राहुल राजा निलंबित; एसएसपी जगुनाथ रेड्डी जलारेड्डी की कार्रवाई से खाकी में हड़कंप, पढ़िए हमारी विस्तृत और धारदार रिपोर्ट…

दरभंगा की हवा में इन दिनों एक ही सिसकारी तैर रही है न्याय की चौखट पर नोटों की सरसराहट। सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो ने केवटी थाना की दीवारों से वह परदा हटाया है, जिसके पीछे कथित सौदे, पद का दुरुपयोग और कर्तव्य-विहीनता की पूरी मशीनरी चल रही थी। इसी वीडियो और जांच रिपोर्ट के आधार पर वरीय पुलिस अधीक्षक जगुनाथ रेड्डी जलारेड्डी ने थानाध्यक्ष राहुल कुमार तथा चौकीदार राहुल राजा (चौकीदार संख्या 6/8) दोनों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर विभागीय कार्रवाई का आदेश दे दिया है. पढ़े पुरी रिपोर्ट......

केवटी थाना फिर विवादों के घेरे में रिश्वतखोरी का वीडियो बना सुबूत, थानाध्यक्ष राहुल कुमार और चौकीदार राहुल राजा निलंबित; एसएसपी जगुनाथ रेड्डी जलारेड्डी की कार्रवाई से खाकी में हड़कंप, पढ़िए हमारी विस्तृत और धारदार रिपोर्ट…
खाकी वर्दी में बाएँ: थानाध्यक्ष राहुल कुमार खाकी वर्दी में दाएँ: चौकीदार राहुल राजा

दरभंगा की हवा में इन दिनों एक ही सिसकारी तैर रही है न्याय की चौखट पर नोटों की सरसराहट। सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो ने केवटी थाना की दीवारों से वह परदा हटाया है, जिसके पीछे कथित सौदे, पद का दुरुपयोग और कर्तव्य-विहीनता की पूरी मशीनरी चल रही थी। इसी वीडियो और जांच रिपोर्ट के आधार पर वरीय पुलिस अधीक्षक जगुनाथ रेड्डी जलारेड्डी ने थानाध्यक्ष राहुल कुमार तथा चौकीदार राहुल राजा (चौकीदार संख्या 6/8) दोनों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर विभागीय कार्रवाई का आदेश दे दिया है। पुलिस मुख्यालय ने भी संदेश साफ़ किया है जो खाकी को दागदार करेगा, वह दंड से नहीं बचेगा।

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वायरल वीडियो की काली परत: “बस दस हज़ार और…”: सूत्र बताते हैं कि यह वीडियो करीब पाँच महीने पुराना है। दृश्य थाने के परिसर का है जहाँ चौकीदार राहुल राजा एक शिक्षक से 10,000 रुपये लेते दिखाई देते हैं। कथित पृष्ठभूमि यह कि धनोरा वास्तु विहार के पास आपत्तिजनक स्थिति में एक शिक्षक-शिक्षिका पकड़े गए थे; दोनों को थाने लाया गया। शिक्षिका की ओर से कोई लिखित शिकायत नहीं होने पर क़ानूनी रूप से उन्हें छोड़ दिया गया यही वह मोड़ था जहाँ क़ानून पीछे हटता दिखा और सौदेबाज़ी आगे बढ़ती गई। आरोप है कि थानाध्यक्ष ने शिक्षक से मोटी रकम लेकर मामला रफा-दफा कर दिया; उधर चौकीदार ने भी अलग से 15,000 रुपये की मांग ठोंक दी। वायरल दृश्य में शिक्षक हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाता दिख रहा है “अब और पैसे नहीं दे सकता।”

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असल मामला क्या था? जांच की सुई “बैट्री बकाये” पर अटकती है: एसएसपी ने जांच का दायित्व अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी (सदर-2) शुभेन्द्र कुमार सुमन को सौंपा। उनकी रिपोर्ट में एक अलग परत उभरती है यह प्रकरण ग्राम छतवन निवासी मो. एनायतुल्ला उर्फ गुड्डू से जुड़ा था, जिस पर 80,000 रुपये की बैट्री का बकाया भुगतान नहीं करने का आरोप था। इस संबंध में आवेदक आकाश कुमार गुप्ता तथा उनके रिश्तेदार चंदन कुमार गुप्ता थाने पहुँचे। परन्तु थानाध्यक्ष ने आवेदन लेकर वरीय अधिकारियों को संज्ञान दिलाने के बजाय आवेदकों को सीधे चौकीदार के पास भेज दिया और पूरा लेन-देन वहीं से संचालित हुआ। कथित समझौते के तहत तुरंत 10,000 रुपये दिए गए, जिसे चौकीदार ने अपने पास रख लिया।

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“कर्तव्य-विहीन और संदिग्ध” एसडीपीओ की कड़ी टिप्पणी: एसडीपीओ की रिपोर्ट स्पष्ट करती है: चौकीदार की भूमिका पूरी तरह कर्तव्य-विहीन और संदिग्ध रही।किसी भी आपराधिक/दीवानी विवाद में जांच, समझौता, वसूली उसके अधिकार क्षेत्र में आते ही नहीं। थानाध्यक्ष की भूमिका समान रूप से प्रश्नों के घेरे में है: उन्हें आवेदन लेना, विधि-सम्मत कार्रवाई शुरू करना और आवश्यकता अनुसार वरीय अधिकारी को अवगत कराना चाहिए था ना कि आवेदकों को चौकीदार की दलाली के हवाले करना। इसी रिपोर्ट पर सहमति जताते हुए एसएसपी ने थानाध्यक्ष राहुल कुमार को निलंबित कर विभागीय कार्रवाई की संस्तुति पुलिस उप-महानिरीक्षक, मिथिला रेंज को भेज दी है। चौकीदार राहुल राजा को भी निलंबित कर विभागीय जांच की अनुशंसा जिला पदाधिकारी, दरभंगा से की गई है।

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“जीरो टॉलरेंस” पर क्या व्यवस्था सुधरेगी?

पुलिस मुख्यालय का रुख़ साफ़ है ऐसे मामलों में लिप्त किसी भी पुलिसकर्मी या सहयोगी को बख्शा नहीं जाएगा। कानून-व्यवस्था को चोट पहुँचाने और खाकी की छवि धूमिल करने वालों पर कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी। लेकिन जनता का सुलगता हुआ सवाल भी उतना ही साफ़ है क्या निलंबन से तंत्र की बीमारी का इलाज हो जाएगा?

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बार-बार सुर्खियों में केवटी थाना: “घड़ी की सूई वहीं अटकी”: यह कोई पहला दाग नहीं। केवटी थाना का इतिहास हालिया महीनों में कई बदरंग पन्नों से भरा है। 24 अगस्त 2024: तत्कालीन थानाध्यक्ष रंजीत शर्मा फर्जी हस्ताक्षर के मामले में निलंबित। उसी केस में प्रशिक्षु एसआई विकास मंडल और चौकीदार सुभाष यादव भी निलंबित।

22 अगस्त 2024: हरिजन कॉलोनी परिसर में शराब पार्टी और बार-बालाओं के साथ चौकीदारों का वीडियो वायरल जांच के बाद ओमप्रकाश और सोनू पासवान निलंबित।

24 जून 2024: चौकीदार संजय पासवान का शराब पीते वीडियो वायरल सत्यापन के बाद निलंबित कर जेल भेजा गया। इन कड़ियों से एक पैटर्न बनता है थाने की प्रवेश-द्वार पर ही एक गैर-औपचारिक दलाली तंत्र पनपता है, जहाँ चौकीदार पहला गेटकीपर बन जाता है; और अगर थानाध्यक्ष की निगाहें मुँद जाएँ, तो कानून की फाइल से पहले नकदी का नोट चलता है।

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कानून की पाठशाला: क्या होना चाहिए था और क्या हुआ: जो होना चाहिए था: शिकायत/आवेदन का औपचारिक रिसीव, डीडी एंट्री, केस की कानूनी योग्यता का परीक्षण, फिर आईओ को नियमावली के अनुसार सौंपना; समझौता तभी, जब क़ानून इसकी अनुमति दे और वरिष्ठ की जानकारी में। जो हुआ: आवेदकों को चौकीदार के पास धकेलना, कथित रकम तय कराना, तुरंत नकद लेना और मामले का हवा हो जाना। यह न सिर्फ़ दंड प्रक्रिया संहिता की आत्मा के विपरीत है, बल्कि पुलिस मैनुअल की नीतिगत भावना का भी हनन है।

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जनता बनाम थाना: भरोसे का लेखा-जोखा: जब कोई शिक्षक थाने में हाथ जोड़कर कहता है “अब और नहीं दे सकता”, तो यह सिर्फ़ एक व्यक्ति की लाचारी नहीं; यह उन हज़ारों नागरिकों की सामूहिक पीड़ा है जो थाने की दहलीज़ पर न्याय माँगने आते हैं और बदले में मोल-भाव का तराजू उन्हें नापने लगता है। खाकी जब किरच-किरच होकर गिरती है, तो उसकी चोट जन-संविधान पर पड़ती है और राज्य की रीढ़ कमज़ोर होती है।

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अब क्या? तीन कड़े, लेकिन जरूरी नुस्ख़े:

1.चौकीदार-रोल का सीमांकन: सभी थानों में स्पष्ट आदेश कोई भी चौकीदार आवेदन/समझौता/वसूली से दूर रहेगा; उल्लंघन पर तुरंत बर्खास्तगी तक की कार्रवाई।

2.प्रोटोकॉल-बॉडीकैम/सीसीटीवी अनिवार्यता: थाना परिसर में हर पूछताछ/समझौते की वीडियो-रिकॉर्डिंग; फुटेज का सुरक्षित आर्काइव, और साप्ताहिक ऑडिट।

3.लेख-रजिस्टर/रसीद-शून्यता पर सख्ती: किसी भी नकद लेन-देन पर जीरो टॉलरेंस यदि रसीद/आधिकारिक प्रक्रिया के बिना पैसा मिला, तो निलंबन नहीं, सीधे मुकदमा।

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एसएसपी जगुनाथ रेड्डी जलारेड्डी का तत्काल निलंबन और विभागीय जांच का निर्णय समय पर, कड़ा और संदेशवाहक है। पर केवटी थाना का दागदार इतिहास बताता है कि यह व्यक्तियों का नहीं, एक संस्थागत रोग का मामला है। वर्दी की इज़्ज़त उसी दिन लौटेगी, जब थाने के भीतर की अनौपचारिक दलाली का मुंह हमेशा के लिए सील कर दिया जाएगा और जनता बिना रुपये, सिर्फ़ अधिकार के बल पर न्याय लेकर लौटेगी।