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दरभंगा
राजा सलहेस की पूजा नहीं, समाज की आत्मा का उत्सव था सिनुआर गोपाल का यह आयोजन सावन की अंधेरी रात में जब दीपक बने श्रद्धालु, और कुलदेवता के चरणों में उतर आई पीढ़ियों की परंपरा, तो गूंज उठा वह राग जो केवल आस्था की थाह जानता है…..

राजा सलहेस की पूजा नहीं, समाज की आत्मा का उत्सव था सिनुआर...

दरभंगा की ज़मीन केवल धान की बालियों से नहीं महकती, वह सदा से आस्था की आँच, लोकगाथाओं...