प्रीति झा की लाश पलंग पर, गले पर फांसी के निशान, आंखों में अंतिम सिसकियां दस दिन बीत गए, पति अब भी गायब, SDPO बोले 'जांच गंभीर है', पर अमरनाथ झा की आंखें पूछ रही हैं... क्या किसी बेटी की मौत के बाद भी कानून इतना सुस्त हो सकता है? क्या पुलिस का भरोसा सिर्फ बयानों तक सीमित है? क्या एक पिता का टूटा विश्वास कभी फिर से जुड़ पाएगा?
दरभंगा की शहरी भीड़-भाड़ में शामिल एनपी मिश्रा चौक की एक गली, जो आमतौर पर चाय की दुकानों, साइकिलों की घंटियों और बच्चों की किलकारियों से गूंजती रहती है, 13 मई 2025 को उस वक़्त खामोश हो गई, जब खबर आई "प्रीति झा की लाश उसके घर में पलंग पर मिली है।" उम्र थी सिर्फ 38 वर्ष। गले पर रस्सी के गहरे निशान थे और आंखें ऐसी जिन्हें देखकर लगता था, कि उन्होंने मौत से पहले बहुत कुछ देखा है. पढ़े पुरी खबर........

दरभंगा की शहरी भीड़-भाड़ में शामिल एनपी मिश्रा चौक की एक गली, जो आमतौर पर चाय की दुकानों, साइकिलों की घंटियों और बच्चों की किलकारियों से गूंजती रहती है, 13 मई 2025 को उस वक़्त खामोश हो गई, जब खबर आई "प्रीति झा की लाश उसके घर में पलंग पर मिली है।" उम्र थी सिर्फ 38 वर्ष। गले पर रस्सी के गहरे निशान थे और आंखें ऐसी जिन्हें देखकर लगता था, कि उन्होंने मौत से पहले बहुत कुछ देखा है।
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वो घर, जो कब्रगाह बन गया: प्रीति झा की शादी को 19 साल हो चुके थे। पति संतोष झा दरभंगा का ही निवासी है। उनके दो बच्चे हैं एक 16 वर्षीय बेटी और 9 साल का बेटा। एक आम परिवार की तरह दिखने वाले इस घर में अंततः जो हुआ, वो आम नहीं था। मृतका के पिता अमरनाथ झा का बयान रोंगटे खड़े कर देने वाला है। उन्होंने कहा "संतोष झा शराब का आदी था। अपराधियों के साथ बैठकर दिन-रात शराब पीता था। बेटी इसका विरोध करती थी, तो उस पर हाथ उठाता था। जमीनें और संपत्ति बेच डाली, बेटी मना करती रही, लेकिन उसने सबकुछ लूटा और अंत में बेटी की जान ले ली।"
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प्रशासन पर अविश्वास, न्यायिक जांच की मांग: घटना के दस दिन बाद भी आरोपी पति की गिरफ्तारी न होने पर परिजन का धैर्य जवाब दे गया। उन्होंने दरभंगा डीएम कार्यालय के समक्ष एक दिवसीय धरना दिया। हाथों में पोस्टर और आंखों में आंसू थे। पिता अमरनाथ झा ने कहा "हमें प्रशासन पर नहीं, न्यायपालिका पर भरोसा है। पुलिस क्या करेगी, जब दस दिन में आरोपी अब भी खुलेआम घूम रहा है। हम न्यायिक जांच चाहते हैं, ताकि सच सामने आए।"
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पुलिस की प्रतिक्रिया: जांच चल रही है, साक्ष्य संकलित: एसडीपीओ अमित कुमार ने मीडिया को बताया "घटना की सूचना मिलते ही लहेरियासराय थाना की टीम, महिला अधिकारी और मैं स्वयं मौके पर पहुंचे। प्रारंभिक पूछताछ हुई। फॉरेंसिक जांच करवाई गई। मृतका के दुपट्टे और नाखूनों के सैंपल सुरक्षित रखे गए हैं। बच्ची से भी दो-तीन बार बातचीत की गई है। उसने महत्वपूर्ण जानकारियां दी हैं।" पुलिस के अनुसार पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट 20 मई को प्राप्त हुई। रिपोर्ट के आधार पर संतोष झा को मुख्य आरोपी माना गया है। पुलिस कहती है कि टेक्निकल सेल की मदद ली जा रही है और छापेमारी जारी है।
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शराब के साए और पारिवारिक बर्बादी की पटकथा: अमरनाथ झा के अनुसार, "संतोष झा बेटी को बार-बार मारता था। छोटी-छोटी बातों पर हाथ उठाता था। नशे की हालत में कई बार जान लेने की धमकी दी थी। हमने बेटी को समझाया भी कि कहीं चली जाए, लेकिन वो बच्चों की खातिर रुकी रही। आज वो चली गई हमेशा के लिए।" पुलिस का कहना है कि घटनास्थल से शराब से जुड़ा कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं मिला, लेकिन परिजनों के आरोपों की जांच की जा रही है।
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बेटी जो सबसे बड़ा गवाह बन गई: प्रीति की 16 साल की बेटी इस मामले की सबसे बड़ी चश्मदीद हो सकती है। उससे कई बार पूछताछ की गई। पुलिस के अनुसार उसने काफी कुछ विस्तार से बताया है, जो जांच की दिशा तय कर रहा है। लेकिन सवाल ये है कि इतने अहम बिंदुओं के बावजूद गिरफ्तारी में देरी क्यों?
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धरना, दुख और सिस्टम की नपुंसकता पर सवाल: धरना सिर्फ एक दिन का था, पर उस एक दिन में सैकड़ों सवाल हवा में तैरते रहे। क्या सिस्टम इतना लाचार है कि एक औरत की मौत के बाद भी आरोपी खुलेआम घूमता रहे? क्या दो मासूम बच्चों की आंखों का आँसू पुलिस की प्राथमिकता नहीं बन पाता?
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आख़िरी सवाल: प्रीति झा की मौत या हत्या? प्रीति झा की मौत किसी अकेली औरत की निजी त्रासदी नहीं है। यह हमारे समाज की उस विफलता की कहानी है, जिसमें एक औरत अपने ही घर में असुरक्षित है। यह पुलिसिया तंत्र की परीक्षा है और कानून के उस न्याय-ध्वज की परीक्षा भी, जिस पर हम सब विश्वास करते हैं। अगर यह हत्या है, तो संतोष झा अब तक जेल में क्यों नहीं है? और अगर आत्महत्या है, तो उसके पीछे के कारणों की जांच कौन करेगा? प्रीति की मौत हमें टटोलती है हमारे समाज को, हमारी संवेदनाओं को, और हमारे सिस्टम को। यह खबर यहीं खत्म नहीं होती, यह एक शुरुआत है न्याय की तलाश की।
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प्रीति की मौत एक सवाल जो हम सबसे है: यह सिर्फ एक महिला की मौत नहीं है। यह न्याय की दुर्दशा, कानून की सुस्ती और संवेदनाओं की निर्जीवता का मुकदमा है। क्या कोई सुन रहा है? क्या कोई देख रहा है?
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अगर यह हत्या है तो न्याय कहाँ है? अगर आत्महत्या है तो परिस्थितियाँ कौन सी थीं, जिन्होंने एक मां को इतना मजबूर कर दिया? प्रीति झा अब इस दुनिया में नहीं हैं, पर उनकी कहानी एक दस्तक है हर उस घर के दरवाज़े पर, जहाँ स्त्रियाँ अब भी चुप हैं। उनकी मौत हमारे समाज की चुप्पी पर सबसे बड़ा आरोप है। और जब तक इस मामले में न्याय नहीं मिलता, यह कहानी जिंदा रहेगी हर आहट में, हर सवाल में।